कौन कह रहा है कि विरोध नहीं हुआ

तस्लीमा नसरीन पर हमले के बाद एक सुर चल रहा है कि कहां गये सेक्यूलरिस्ट... क्या वे सिर्फ हिन्दुत्वादियों के हमले का विरोध करेंगे। बड़े- बड़े नाम इस सुर में सुर मिला रहे हैं। इन का कहना है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों के बारे में सेक्‍यूलर लोग और समूह नहीं बोलते। उन सबसे विनम्र निवेदन है कि कृपया हमले की शाम के बाद से अब तक के अख़बार, इंटरनेट साइट देखें... पता करें... फिर बात करें... तो अच्छा रहेगा। हां, बड़े मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक चैनल को तब तक ख़बर नज़र नहीं आती है, जब तक कि उसमें कट्टरपंथियों के चेहरे और ज़हरीली ज़बान न हो। इसीलिए ऐसे विरोध के स्वर उन्हें कम ही सुनाई देते हैं। मैं हमले के विरोध के चंद उदाहरण दे रहा हूं-

गीतकार जावेद अख्तर का कहना है कि यह शर्मनाक घटना है। कट्टरपंथी दिनों दिन आक्रामक होते जा रहे हैं, और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है।

प्रख्यात अभिनेत्री शबाना आज़मी ने हमले को भयानक घटना बताया है। उन्‍होंने कहा कि मैं इसकी कड़े से कड़े शब्‍दों में भर्त्सना करती हूं। इस तरह के व्यक्तिगत हमले नाकाबिले बर्दाश्त हैं।

प्रख्‍यात नारीवादी लेखिका व प्रकाशक उर्वशी बुटालिया, अली असग़र, साहित्‍यकार अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती, आदित्‍य निगम, गौहर रज़ा, निवेदिता मेनन, शबनम हाशमी, अपूर्वानन्‍द ने अनहद के जरिये एक बयान जारी किया। इन्होंने घटना की सख्त निंदा करते हुए कहा कि जो लोग इस्लाम और मुसलमानों के नाम पर बोलने का दावा करते हैं, वे सबसे ज्‍यादा मुसलमानों का नुकसान कर रहे हैं। ये कट्टरपंथी संगठन भारत के उदार और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा हैं।

सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) ने तस्लीमा की हिफाज़त का पुख्ता इंतज़ाम करने की मांग की। इसने नफरत और हिंसा फैलाने वालों को दरकिनार करने के लिए धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी लोगों को एकजुट होने की अपील की है।

प्रख्यात संस्कृतिकर्मी विजय तेंदूलकर, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड, अरविंद कृष्णास्वामी, नंदन मालुस्ते, एलिक पदमसी, अनिल धरकर ने कहा कि हिंसा किसी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती। द सीटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की ओर से जारी किये गये बयान में इन सब ने मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के विधायकों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। इन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को हमलावरों के खि़लाफ सख्त कार्रवाई करने को भी लिखा है।

जमयित उलेमा ए हिन्द, महाराष्ट्र के सचिव मौलाना मुस्तकीम आज़मी ने कहा कि इस्लाम इस तरह के असहिष्णु व्‍यवहार की हिमायत नहीं कर सकता। मज़हब किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाज़त नहीं देता।

विधि आयोग के सदस्य और प्रख्यात कानूनविद ताहिर महमूद ने इन शब्दों में इस घटना की निंदा की, 'यह बर्बरता है। मज़हबी लोग कभी ये काम नहीं करेंगे। इस देश में इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती। यह सब राजनेताओं ने किया है।'

लखनऊ के मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली का कहना है कि तस्लीमा के विचार से वो भी सहमत नहीं है लेकिन विरोध जताने का यह तरीका भी सही नहीं है। उन्होंने कहा कि विरोध के वैधानिक तरीके अपनाये जाने चाहिए। बड़े शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने मुखालफत के इस तरीके को गैर वाजिब करार दिया।

हैदराबाद के इतिहासकार एम. सफीउल्लाह खान का कहना है कि तस्लीमा का लेखन मेरी नज़र में उकसावे वाला है लेकिन किसी औरत पर इस तरह हमला गलत है। अगर मुझे विरोध करना होता तो मैं बैनर लेकर खड़ा होता या नारे लगाता।

दिल्ली अल्पसंख्‍यक आयोग के अध्यक्ष कमाल फारूकी की नजर में तीन एमएलए के नेतृत्व में ऐसी घटना का होना शर्मनाक है।

सूचना और प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी ने इसे बहुत ही शर्मनाक घटना के रूप में तस्लीम किया। और कहा कि हम इसकी कड़े शब्दों में मज़म्मत करते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता-पत्रकार जावेद आनंद ने इस घटना पर अपना गुस्सा इज़हार करते हुए बताया कि इस हमले से विधायकों ने अपने को कानून का रखवाला होने की जगह कानून तोड़ने वाले के रूप में पेश किया है। ये हिन्दुस्तानी इस्लाम के बजरंग दल हैं। इनके व्यवहार बजरंग दल के हुसैन के खिलाफ किये जा रहे कार्रवाइयों की ही तरह हैं। मुस्लिम्स फॉर सेक्यूलर डेमोक्रेसी के उपाध्यक्ष साजिद रशीद ने तस्लीमा पर हमले के खिलाफ मौलानाओं के बयान की तारीफ की।

मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम के फिरोज़ मिठिबोरवाला, आसिफ खान, हनीफ लकड़वाला, आफाक आज़ाद, आरिफ कपाडिया, इरफान मुल्ला ने इस हमले को हिन्दुस्तान के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर हमले के रूप में देखा है।


यह महज़ चंद उदाहरण हैं, जो गिनाये गये हैं। इनके बयान और टिप्पणियों को भी कम जगह दी गयी है। इनके पूरे बयान अलग-अलग अखबारों और साइट पर देखें जा स‍कते हैं।

इसे भी पढ़ें

तस्लीमा नसरीन का इंटरव्यू और तस्लीमा, हम शर्मिंदा हैं

ये डरे हुए लोग हैं

टिप्पणियाँ

अनुनाद सिंह ने कहा…
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। इन सबको पढ़ने के बाद मानना पड़ेगा कि तसलीमा पर हुए हमले का सेक्युलरिस्टों ने उससे भी पुरजोर विरोध किया है जितना उन्होने परमाणु समझौते पर कांग्रेस का किया था।
Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…
किसी गलत बात को गलत कहना साहस की बात है। मैं उस साहस को सलाम करता हूं।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारतीय मुसलमानों का अलगाव (Alienation Of Indian Muslims)

चक दे मुस्लिम इंडिया

इमाम-ए-हिन्द हैं राम