बिलकिस को शुक्रिया (Thanks to Bilkis)
अपूर्वानन्द * गणतंत्र दिवस की सुबह धूप खिल आई है. मैं उनकी सूची देख रहा हूँ जिनको राज्य ने इस मौके पर अपना धन्यवाद देने के लिए अलग अलग उपाधियों से विभूषित किया है. अजीब सी इच्छा थी इस बार कि एक नाम होता इस सूची में कहीं तो शायद यह गणतंत्र बता पाता कि वह उनकी कद्र करता है जो उसे वैसा बनाए रखने के लिए अपने आप की बाजी लगा देते हैं जिसकी कल्पना आज से साठ साल पहले उसने की थी. यह मालूम है हम सबको कि यह एक व्यर्थ इच्छा है एक मामूली सी हिन्दुस्तानी शहरी बिलकीस बानो का नाम उनके बीच तलाश करने की जिन्हें यह गणतंत्र मानता है कि उन्होंने उसे प्राणवंत बनाए रखा है. बिलकीस आज कहाँ होगी, यह ख़बर हमें नहीं. क्या वह उस गुजरात को लौट गई जिसे वह अभी भी अपना वतन मानती है लेकिन जहाँ पिछले छः साल तक वह नहीं रह सकी थी ? उस गुजरात को जिसकी पुलिस ने यह रिपोर्ट दाखिल की कि उसे इसके पर्याप्त सबूत नहीं मिल सके जिससे वह बिलकीस की वह बात कानूनी तौर पर कबूल करने लायक मान सके कि २८ फरवरी , २००२ से गुजरात में मुसलमानों पर शुरू हुए हमलों के दौरान उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया , कि उसकी त