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तसलीमा की ताजा कविताएँ-2 (Latest Poems of Taslmia Nasreen-2)

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  (3) नो मेन्स लैंड अपना देश ही अगर तुम्हें न दे देश , तो दुनिया का कौन-सा देश है , जो तुम्हें देगा देश , बोलो। घ ू म-फिरकर सभी देश काफी कुछ ऐसे ही होते हैं , हुक्मरानों के चरित्र भी ऐसे ही। तकलीफ देने पर आयें , तो ऐसे ही देते हैं तकलीफ। इसी तरह उल्लास से चुभोएँगे सूइयाँ तुम्हारी कलाई के सामने , पत्थर-चेहरा लिए बैठे , मन ही मन नाच रहे होंगे। नाम-धाम में भले हो फर्क अँधेरे में भी पहचान लोगे उन्हें , सुनकर चीत्कार , खुसफुस , चलने-फिरने की आहट , तुम समझ जाओगे कौन हैं वे लोग। हवा जिस तरह , उनके लिए , उधर ही दौड़ पड़ने का समय। हवा भी तुम्हे बता देगी , कौन हैं वे लोग। हुक्मरान आखिर तो होते हैं हुक्मरान। चाहे तुम कितनी भी तसल्ली दो अपने को , किसी शासक की जायदाद नहीं- देश। देश होता है आम-जन का , जो देश को प्यार करते हैं , देश होता है उनका। चाहे तुम जितना भी किसी को समझाओ- यह देश तुम्हारा है , इसे तुमने रचा-गढ़ा है , अपने अन्तस में , अपनी मेहनत और सपनों की तूली में आँका है इसका मानचित्र। अगर शासक ही तुम्हे दुरदुराकर खदेड़ दें , कहाँ जाओगे तु

(तसलीमा की ताजा कविताएँ-1 (Latest Poems of Taslmia Nasreen)

तसलीमा नसरीन 'कैद' हैं। वह कहाँ रह रही हैं, किसी को पता नहीं। 'हिफ़ाजत' के इंतज़ाम इतने 'पुख्ता' हैं कि दोस्तों को भी उनसे मिलने की इजाज़त नहीं है। इसे 'कैद' ही जाएगा। भला हो तकनीक का, इसी कैद-ए-तनहाई से तसलीमा ने अपने दोस्तों को ये कविताएँ भेजी हैं। बांग्ला में लिखी कविताओं को हिन्दी में ढालने की कोशिश कृपाशंकर चौबे ने की है। उन्हीं से ये कविताएँ ढाई आखर को मिलीं। आप कविताएँ पढ़ें और ज़रा गौर करें कि हम किस दौर में रह रहे हैं। पहला हिस्से में दो कविताएँ (1) जिस घर में रहने को मुझे बाध्य किया जा रहा है इन दिनों मैं ऐसे एक कमरे में रहती हूँ, जिसमें एक बंद खिड़की है, जिसे खोलना चाहूँ, तो मैं खोल नहीं सकती,  खिड़की मोटे पर्दे से ढँकी हुई है, चाहूँ भी तो मैं उसे खिसका नहीं सकती। इन दिनों मैं ऐसे एक कमरे में रहती हूँ चाहूँ भी तो खोल नहीं सकती, उस घर के दरवाजे़,  लाँघ नहीं सकती चौखट। एक ऐसे कमरे में रहती हूँ मैं, जिसमें किसी जीव के नाम पर, दक्षिणी दीवार पर, चिपकी रहती हैं, दो अदद छिपकलियाँ। मनुष्य या मनुष्यनुमा किसी प्राणी को इस कमरे में नहीं है प्रवेशाधिकार।

साबरमती आश्रम में गाँधी जी के साथ एक दिन- 3 (One day in Sabarmati Ashram with Gandhi ji-3)

गाँधी जी के जीवन से जुड़ी तस्वीरों की तस्वीर की आखिरी कड़ी आज पेश है। उम्मीद है आपको पसंद आएगी। यह तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ कहती हैं। खास आरके लक्ष्मण के कार्टून गाँधी जी की शख्सियत के अलग-अलग पहलुओं को उजागर करते हैं।  यह भी देखें-  चित्रों में गाँधी जी -1  चित्रों में गाँधी जी-2

साबरमती आश्रम में गाँधी जी के साथ एक दिन- 2 (One day in Sabarmati Ashram with Gandhi ji-2)

गाँधी जी की जिंदगी की से जुड़ी तस्वीरों की दूसरी किस्त आज पेश है। तस्वीरों के बारे में जानने के लिए स्लाइड शो में बाएँ क्लिक करें। आप चाहें तो शो की गति अपने मुताबिक भी कर सकते हैं। गाँधी जी के शब्द '' मेरी लोकतंत्र की कल्पना ऐसी है कि उसमें कमजोर से कमजोर को उतना ही मौका मिलना चाहिए जितना कि समर्थ को।... आजकल सारे विश्व में कोई भी देश आश्रयदाता की नजर के बिना निर्बलों को देखता ही नहीं। ... पश्चिम के लोकतंत्र का जो स्वरूप आज विद्यमान है वह ... हलका फासीवाद जैसा है। ... सच्चा लो‍कतंत्र केन्द्र में बैठकर राज्य चलाने वाले बीस इन्सान नहीं चला सकते, वह तो प्रत्येक गाँव के हर इन्सान को चलाना पड़ेगा।''  '' (साबरमती) आश्रम जातिभेद नहीं मानता। आश्रम का मानना हे कि जातिभेद से हिन्दू धर्म को नुकसान हुआ है।'' पहली कड़ी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

साबरमती आश्रम में गाँधी जी के साथ एक दिन- 1 (One day in Sabarmati Ashram with Gandhi ji)

गाँधी जी की शहादत का यह साठवाँ साल है। मैं इस दौरान अहमदाबाद गया था और एक दिन साबरमती आश्रम में गुजारने का मौका मिला। गुजरात बापू का जन्म स्थान है। वही गुजरात, जहाँ बापू की अहिंसा को दरकिनार कर, पाँच साल पहले हिंसा का नंगा नाच देखने को मिला। बापू की याद की छाँव तले दिन गुजारना वाकई में एक यादगार तजुर्बा रहा। इस दौरान मैंने वहाँ की कुछ तस्वीर उतारने की कोशिश की। तस्वीरें आप सब से साझा कर रहा हूँ। ( तस्वीरों के बारे में जानने के लिए स्लाइड शो में बाएँ क्लिक करें। आप चाहें तो शो की गति अपने मुताबिक भी कर सकते हैं।)