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जून, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नारद गण के ब्लॉग पर टिप्पणी किया तो गये ...

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अब बेडरूम में नारद गण! आप सुनते रहते होंगे, पढ़ा होगा कि कोई सीधे आपके निजी कम्प्यूटर तक घुस सकता है। वहां से आपकी ज़रूरी सूचना गायब कर सकता है। अपने तरीके से उसे इस्तेमाल कर सकता है। सोमवार को नारद के एक वरिष्ठ साथी ने ऐसा ही किया जिससे हमारे जैसे लोग चौंक गये। वरिष्ठ साथी ने एक पोस्ट पेस्ट की और उसी बहाने हांक दिया असहमति जताने वालों को। असहमति जताने और हांकने का पूरा हक है, भई। (भई, मैं इनका नाम लेने में बहुत डरता हूँ। अभी इन्हीं के इलाके में हूँ। पकड़ लिया तो।) ख़ैर। कुछ लोग पोस्ट देखने गये और एक ने टिप्पणी कर दी। अपना नाम बताया, असली नारद मुनि। अभी तक आदमियों के नाम का कॉपीराइट, मेरी नज़र से नहीं गुज़रा है लेकिन यहां इसी नाम पर विवाद हो गया। अब जैसे इस नाम पर तो इन्होंने कॉपीराइट करा रखा हो। जब मैं वहां विचरण करते हुए पहुंचा तब तक वहां काफी कुछ हो चुका था। जो हुआ उसकी बानगी · असली नारद मुनि Says: जून 18th, 2007 at 5:13 pm इतने भोले न बन जाना साथी जैसे होते हं सर्कस के हाथी ये वीरेन डंगवाल की कविता का एक अंश है. तकनीकी गडबडी थी , कोई बात नहीं. पता नहीं चला , कोई बात नहीं.

फ्रॉड वैज्ञानिक निकला संघ का प्रचारक

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इंडियन एक्‍सप्रेस की रविवार की खास खबर चौंकाने वाली है। सेथुसमुंद्रम परियोजना का विरोध राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ ( आरएसएस ) कर रहा है। यह जग जाहिर है लेकिन जिस 'अंतरिक्ष वैज्ञानिक' का सहारा संघ ले रहा है , वह फर्जी निकला। वह संघ का प्रचारक है। मैं इस खबर को इंडियन एक्‍सप्रेस से साभार लेकर पूरा अंग्रेजी में ही पोस्‍ट कर रहा हूँ। ताकि कोई यह इल्‍जाम न लगा दे कि आप तथ्‍यों को तोडमरोड रहे हैं या आपने खबर बदल दी है। हां, इंडियन एक्‍सप्रेस पर अभी तक वामपंथी होने का भी आरोप नहीं है। तो पढिये संघ परिवार का एक और कारनामा। क्‍या इसे देश के साथ धोखा नहीं माना जायेगा। क्‍या इसे लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खेलने की साजिश में शुमार नहीं किया जायेगा। आप खुद पढें और तय करे EXPRESS EXCLUSIVE Fraud scientist takes RSS for a ride down Lord Ram’s bridge Shishir Gupta Posted online: Sunday, June 17, 2007 at 0000 hrs NEW DELHI, JUNE 16:The “space scientist” who, for two years, helped the Rashtriya Swayamsewak Sangh (RSS) formulate its opposition to the Sethusamudram projec

बिछुडना एक भतीजे का अपनी चाची से

भाई संजय बेगाणी ने कल एक पोस्ट लिखी। मैं कमेंट लिख रहा था लेकिन वो काफी बड़ा हो गया। मुझे लगा कि इस माहौल में अगर यह कमेंट भेजा, तो न जाने इसके कितने निहितार्थ निकाल लिये जायें। फिर इतने बडे़ कमेंट के लिए उनकी जगह क्यों बर्बाद की जाये। तो इसलिए ढाई आखर पर दे रहा हूं। मैं शीर्षक में "एक भतीजे" की जगह संजय लिखना चाह रहा था लेकिन लगा कि इस पर आपत्ति न हो जाये। संजय लिखते हैं_ ' फिर एक दिन चाची ने अपना घर बेच दिया . चाचा दुनिया में थे नहीं , कई जिम्मेदारियाँ थी . दो जवान बेटीयाँ थी , बेटे शायद अरब में कहीं गए हुए थे , तो बहूंए व पौते पौतियों की ज़िम्मेदारी भी थी . आर्थिक संकट रहा होगा . वे मुस्लिम बहूल मोहल्ले में छोटा घर लेकर रहने चले गए .' भाई संजय पहली बार आपके ब्लॉग पर टिप्पणी कर रहा हूँ। अन्यथा नहीं लेंगे। ज़रा सोचियेगा कि आपकी चाची मुस्लिम बहुल मोहल्ले में क्यों रहने चली गयीं? क्या सिर्फ इसलिए कि चाचा नहीं थे... क्या सिर्फ इसलिए कि आर्थिक संकट था... या जहां वो इतनी घुली

ये सूरत बदलनी चाहिए

मैंने सुना है , अपने बड़ों के मुँह से कि आपातकाल के दौर में वे सब दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों और शेरों को पोस्टर की शक्ल में, रात के अंधेरे में, पुलिस से बचते हुए विश्‍वविद्यालय की दीवारों पर चिपकाते थे। बाद के दिनों में अपने दोस्तों को नुक्कड़ नाटकों के प्रदर्शन के पहले दुष्यंत कुमार के शेर कई बार दुहराते सुना, गाते सुना। ताज्जुब यह है कि तीन दशक से भी ज्‍यादा पुरानी इन रचनाओं को आज के वक्‍त में भी ठीक वैसे ही महसूस किया जा सकता है, जैसे तीन दशक पहले। 'ढाई आखर' के पाठकों के लिए दुष्यंत कुमार की एक मशहूर ग़ज़ल : हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि यह बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर में, हर गांव में, हाथ लहराते हुए लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। जिन्हें दुष्यंत कुमार के बारे में जानकारी न हो , वो उन्हें गा

देखो रंग बदल रहा है आसमान का

आइये मौसम की बात करें

देखो रंग बदल रहा है आसमान का मौसम बदल रहा है। पिछले दिनों की तपिश, लू... पछिया और पुरवैया का ज़ोर... गर्मी के मारे घर के अंदर कुलबुलाते लोग... पसीने से तरबतर जिस्म। जगह-जगह से लू की वजह से लोगों के मरने की खबर। ... लेकिन मंगलावर की देर शाम और फिर बुधवार की भोर से मौसम ने अपना मिजाज़ बदला... और पिछले दो दिनों से लगातार बारिश हो रही है... एकाएक मौसम बदल गया ... हिन्दुस्तानी मौसम ऐसे भी एक जैसे कहाँ रहते हैं। जहाँ रहते हैं, वैसी जगहें आप उँगली पर गिन सकते हैं और उनके मिजाज़ को भी भाँप सकते हैं। मौसम बदला तो जहाँ पहले कूलर और एसी भी ठंडक पहुँचाने में नाकाम थे, वहीं गुरुवार को तो एक वक्त ऐसा आया कि पँखे की हवा में भी खुनकी का अहसास होने लगा। हालाँकि हम शहरी लोग जितनी तेज़ गर्मी से घबराते हैं, उतनी ही तेज बारिश से भी। जब तक बारिश नहीं हुई थी, सबको बारिश का इंतज़ार था... हाय गर्मी... हाय गर्मी... जिससे मिलो वही सवाल पूछ लेता... यार, मौनसून कब आ रहा है... केरल में आया क्या... कलकत्ता में तो बारिश हो गयी... यहाँ कब। और अब ... दो दिन की बारिश में लोग कहने लगे, ये बारिश कब बंद होगी... बहुत बारिश

नहीं रहना नारद के साथ, बाहर करें

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मेरे ब्‍लॉग को भी बाहर करें नारद से वह बात जिसका सारे फ़साने में जिक्र न था वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है यह सेंसरशिप नहीं, तानाशाही है। सत्ता की तानाशाही। तकनीक की सत्ता की तानाशाही। मानवीय इतिहास के सबसे लोकतांत्रिक ज़रिये इंटरनेट पर जानकारी के प्रवाह को अपनी मुट्ठी में करने की तानाशाही। पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ को भी ऐसी ही तानाशाही की सूझी है। सक्रिय ब्लॉगिंग के डेढ महीने में मैंने ऐसी कई तकलीफदेह चीज़ें देखीं। वरिष्ठ ब्लॉगरों से अपना दर्द भी बांटा। पर हालात दिन प्रति दिन बिगड़ते जा रहे हैं। नहीं तो यह कैसे सम्‍भव है कि कुछ लोग लगातार अनर्गल प्रलाप करें। खुलेआम लोगों को देख लेने की धमकी दें। कुछ लोग ऐसे ब्लॉगर को उकसाने में लगे रहे, उन पर 'बिलो द बेल्‍ट' हमला करें, जो खामख्‍वाह की ओछी व्‍ यक्तिगत राजनीति का हिस्‍सा नहीं बनना चाह रहे... कुछ लोग किसी भी लेखक-साहित्‍यकार की आलोचना करना तो दूर उसे सारी दुनिया के सामने नंगा कर दें ... कोई किसी की उपमा राखी सावंत से दे दे... कोई किसी का नाम देखकर उसे कट्टरपंथियों की जमात में खड़ा कर दे तो कोई एक नौजवान को अबू सलेम और दाऊद का

भोमियो की मदद करें

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भोमियो पर उर्दू से हिन्दी लिप्यंतरण की प्रक्रिया चल रही है । उस प्रक्रिया में भोमियो को आपकी मदद की जरूरत है । भोमियो पर कुछ दिनों पहले उर्दू से हिन्दी लिप्यंतरण की पहल शुरू हुई है । उर्दू के शब्द विन्यास को देखते हुए यह ज ‍ टिल काम था फिर भी जिस मेहनत से भोमियो ने यह काम किया , वह काबिले तारीफ है । इस शुरुआती कोशिश में जाहिर है , ढेर सारी चीजें छूट गयी हैं । भोमियो ने हार न मानते हुए , उसे और बेहतर करने की कोशिश शुरू कर दी है । इसमें उन्हें उन सब लोगों के साथ की जरूरत है , जो उर्दू - हिन्दी पढ और समझ लेते हैं । भोमियो ने अपनी वेबसाइट पर उर्दू अल्फाज की एक लम्बी फेहरिस्त दी है साथ में उसका हिन्दी रूप , जो भोमियो ने लिप्यंतरित किया है , उसकी फेहरिस्त भी साथ में दी गयी है । आपको यह बताना कि यह लिप्यंतरण कैसा है यानी ठीक है ... गलत है ... या सही क्या होगा । उसी आधार पर नया कैरेक्टर मैप तैयार करने की कोशिश होगी । उर्दू में एक बडी दिक्कत मात्राओं क

टोली 'भक्त' पत्रकारों की

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पिछली पोस्ट से ढाई आखर पर गोरखपुर में हुई हिंसा और मीडिया की भूमिका पर हम चर्चा कर रहे हैं। 'मीडिया का योगी... योगी' इसकी पहली कड़ी थी। आज इसकी दूसरी और अंतिम कड़ी यहां पेश है। गोरखपुर के 'भक्त' पत्रकारों की मनोज कुमार सिंह की पड़ताल- सर्कु लेशन बदाना है तो ... स्थानीय मीडिया और कुछ इलेक्ट्रॉनिक चैनलों ने गोरखपुर की घटना में जिस तरह की भूमिका निभाई उससे अब चिंता होने के बजाये डर लगने लगा है कि यही हालत रहे तो क्या होगा ? कुछ समाचार पत्रों को 30 जनवरी के बाद साम्प्रदायि क हिंसा की घटनाओं में अपने आप कमी आने के बाद, अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का अहसास हुआ और उन्होंने गोरखपुर के सामाजिक सौहार्द्र और भाईचारे को लेकर कुछ प्रमुख लोगों के वक्तव्य छापे लेकिन इस बात पर किसी ने नहीं लिखा कि गोरक्षनाथ और नाथ सम्प्रदाय का दर्शन व परम्परा क्या है और वर्तमान में गोरखनाथ मन्दिर और उसके उत्तराधिकारी इस परम्परा, सिद्धान्त व दर्शन के अनुसार आचरण कर रहे हैं कि नहीं? लखनऊ से प्रकाशित एक समाचार पत्र 'इंडियन एक्सप्रेस' ने जरूर इस पर खबर छापी लेकिन इस खबर से बात ठीक से स्पष्ट नह