टोली 'भक्त' पत्रकारों की

पिछली पोस्ट से ढाई आखर पर गोरखपुर में हुई हिंसा और मीडिया की भूमिका पर हम चर्चा कर रहे हैं। 'मीडिया का योगी... योगी' इसकी पहली कड़ी थी। आज इसकी दूसरी और अंतिम कड़ी यहां पेश है। गोरखपुर के 'भक्त' पत्रकारों की मनोज कुमार सिंह की पड़ताल-
सर्कुलेशन बदाना है तो...
स्थानीय मीडिया और कुछ इलेक्ट्रॉनिक चैनलों ने गोरखपुर की घटना में जिस तरह की भूमिका निभाई उससे अब चिंता होने के बजाये डर लगने लगा है कि यही हालत रहे तो क्या होगा ? कुछ समाचार पत्रों को 30 जनवरी के बाद साम्प्रदायि हिंसा की घटनाओं में अपने आप कमी आने के बाद, अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का अहसास हुआ और उन्होंने गोरखपुर के सामाजिक सौहार्द्र और भाईचारे को लेकर कुछ प्रमुख लोगों के वक्तव्य छापे लेकिन इस बात पर किसी ने नहीं लिखा कि गोरक्षनाथ और नाथ सम्प्रदाय का दर्शन व परम्परा क्या है और वर्तमान में गोरखनाथ मन्दिर और उसके उत्तराधिकारी इस परम्परा, सिद्धान्त व दर्शन के अनुसार आचरण कर रहे हैं कि नहीं? लखनऊ से प्रकाशित एक समाचार पत्र 'इंडियन एक्सप्रेस' ने जरूर इस पर खबर छापी लेकिन इस खबर से बात ठीक से स्पष्ट नहीं हुई। एनडीटीवी ने भी इस पर अलग से स्टोरी की। दिल्ली से प्रकाशित हिन्दी साप्ताहिक 'आउटलुक' ने 19 फरवरी के अंक में 'सुलगाने की सियासत' शीर्षक स्टोरी में बॉक्स में गोरखवाणी 'मन मैं रहिला भेद न कहिणा' छापकर सवाल उठाया था कि धर्मावलम्बियों में इस बात को लेकर बहस चल रही है कि वर्तमान में गोरक्षपीठ इसका कितना पालन कर रही है? हां, स्थानीय मीडिया को इसे और समझने की जरूरत नहीं थी।
स्थानीय मीडिया योगी के जय...जयकार में इतना आगे निकल गया कि एक फरवरी को डीजीपी की प्रेस कान्फ्रेस में उसने योगी की भगवा ब्रिगेड 'हिन्दू युवा वाहिनी' के कार्यकर्ताओं की तरह सवाल पूछना शुरू कर दिया। सवाल इस प्रकार थे-...आखिर योगी जी को कब रिहा किया जाएगा ? योगी जी को छोड़ क्यों नहीं दिया जाता ? उनकी गिरफ्तारी क्या जरूरी थी ? सिर्फ गिरफ्तारी पर सवाल किये जाने तथा मीडिया का रवैया देख हतप्रभ डीजीपी ने कहा कि वह योगी की गिरफ्तारी का विश्लेसण करने नहीं आये हैं। वह कानून व्यवस्था की स्थिति का जायजा लेने आये हैं। अच्छा हो कि इस सम्बन्ध में ही सवाल किया जाये।
योगी और उनके प्रति आस्था को लेकर अतिश्योक्तिपूर्ण खबरें लिखने का सिलसिला तो लगातार चलता रहा। इसकी एक बानगी सात फरवरी को दैनिक जागरण के पृष्ठ संख्या पांच पर डबल कालम में 'मंदिर में गायों को भी है इंतजार' शीर्षक से छपी खबर है। इस खबर में स्टाफ रिपोर्टर ने लिखा है कि- 'गोरखनाथ मंदिर की गौशाला पर वह पहुंचा तो एक साथ कई गायें दौड़ती हुईं गेट तक आयीं। कुछ ने थोड़े से खुले गेट में मुंह डाला कर सूंघा और सिर नीचे कर लिया तथा वापस लौट गयीं। इन्हीं के पीछे गेट तक आयीं सारी गायें वापस लौट गयीं। काफी देर तक वृक्ष के नीचे खडी गायों की आंखों से आंसू गिरते रहे।' इस खबर में आगे लिखा गया है- 'यहां तक कि जब उन्हें (योगी आदित्यनाथ को) दो से अधिक दिन के लिए शहर से बाहर जाना पडता था तो उसके पहले गौशाला की गायों को यह बता कर जाते थे कि तीन दिन बाद भेंट होगी। बेजुबान गायें जैसे उनकी हर बात समझती थीं।'
गोरखपुर मण्डलीय कारागार में बंद योगी और उनके समर्थकों तथा मधुमिता काण्ड में पहले से बंद सपा नेता अमरमणि त्रिपाठी द्वारा जेल मैनुअल का खुला उल्लंघन कर दावत करने, भजन संध्या का आयोजन करने सम्बन्धी खबरों को भी अधिकतर समाचार पत्रों ने नजरअंदाज किया। जिन समाचार पत्रों ने इसे लिखा उसे उन्होंने इस तरह प्रस्तुत किया कि गोया कितनी सहज स्वभाविक घटना घटित हुई है। 'राष्ट्रीय सहारा' में एक फरवरी को पृष्ठ संख्या पांच पर 'नंदू मिश्रा के भजनों पर जेल में झूमे नेता' शीर्षक से प्रकाशित खबर गौर करने लायक है- 'गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी एवं सांसद सदर योगी आदित्यनाथ के जिला कारागार में जाने के बाद शताब्दी हाउस बैरक का वातावरण पूरी तरह धार्मिक बन गया है। जेल के शताब्दी हाउस में जहां सुबह शाम मानस मर्मज्ञ रामदास कोकिल का प्रवचन चल रहा है वहीं आज शाम नंदू मिश्रा के भजनों पर नेता भक्ति की गंगा में गोते लगाते रहे। बंद नेताओं के लिए भगवती जागरण का आयोजन विधायक अमरमणि त्रिपाठी ने किया था।' यहां तक तो ठीक था लेकिन इस समाचार में आगे रिपोर्टर ने किस तरह जेल में इस कृत्य को जायज ठहराया वह हैरतअंगेज है। रिपोर्टर ने लिखा-वैसे भी सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होने के कारण जेल का धार्मिक महत्व है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर पुलिस थानों में इसकी रस्म अदायगी होती रहती है। कारागारों में भी परम्परा का निर्वहन किया जाता है लेकिन कारागार के शताब्दी हाउस में पिछले पांच दिन से वास्तविक रूप से माहौल धार्मिक बना है। सुबह शाम मानस मर्मज्ञ रामदास कोकिल का प्रवचन सुनकर लोग समय काट रहे हैं। धार्मिक आयोजनों की इस कडी में आज मधुमिता हत्याकाण्ड के अभियुक्त विधायक अमरमणि त्रिपाठी ने शताब्दी हाउस में भजन गायक नंदू मिश्रा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। भजन का सदर सांसद सहित सभी जनप्रतिनिधियों, कार्यकर्ताओं ने आनंद लिया।'
'हिन्दुस्तान' में एक फरवरी को पृष्ठ चार पर 'भामाशाह की तरह खड़े हैं शहर के व्यापारी' और पृष्ठ 5 पर 'नेपाल और थाइलैण्ड में भी आक्रोश' शीर्षक से खबर भी इसी श्रेणी में आती हैं। नेपाल और थाइलैण्ड में आक्रोश खबर में सूचना का स्रोत का उल्लेख नहीं है बल्कि पत्रकार ने अपनी कही बात को योगी से ही पुष्ट होना बताया है। इस समाचार की भाषा ध्यान देने योग्य है-'गोरखपुर में साम्प्रदायिक तनाव के बीच गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी एवं भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी के विरोध में सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं सुलग रहा है बल्कि इस आग की चिंगारी पड़ोसी देश नेपाल व थाईलैण्ड में भी पहुंच चुकी है। न केवल वहां से तीव्र प्रतिक्रिया के संदेश यहां आ रहे हैं बल्कि प्रशासन के रवैये और शासन के तुष्टीकरण की नीति पर आक्रोश जताया जा रहा है। विश्व के हिन्दू संगठनों का महासंघ विश्व हिन्दू महासंघ के अन्तर्राष्ट्रीय इकाई अपनी भारत इकाई के अध्यक्ष और नेपाल के श्रद्धा के केन्द्र योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी के विरोध में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने के लिए रणनीति बना रही है। इस आशय की पुस्टि करते हुए मण्डलीय कारागार में निरूद्ध योगी आदित्यनाथ ने स्वीकार किया है कि महासंघ के थाईलैण्ड इकाई के प्रमुख ने उनसे कुशल क्षेम पूछा है और नाराजगी जाहिर की है।' इसी सामाचार में कहा गया है कि नेपाल की जनता गोरक्षपीठ की उत्तराधिकारी की गिरफ्तारी से हतप्रभ है और आक्रोश में है। इस समाचार में और भी तमाम बातें कही गईं हैं लेकिन सिर्फ इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि किन लोगों ने और किस माध्यम से योगी की गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया जाहिर की है। जाहिर है जिस बड़े पैमाने पर नेपाल और थाइलैण्ड में योगी की गिरफतारी पर आक्रोश व्यक्त करने की बात यह अखबार कर रहा है, यदि वाकई ऐसा हुआ होता तो दूसरे समाचार पत्रों, समाचार एजेन्सियों व समाचार चैनलों में यह खबर जरूर आयी होती। योगी के समर्थन में हर वर्ग का समर्थन दिखाने के लिए संघ की भाषा में 'छात्र शक्ति', 'मातृ शक्ति' के सामने आने का वर्णन किया गया है। 'दैनिक जागरण' में विकलांगों के भी आन्दोलन में उतरने का बात कहते हुए समाचार प्रकाशित किया गया।
इसी तरह योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी के विरोध में कुसम्ही बाजार में एक फरवरी से शुरू हुए सामूहिक अनशन के बारे में तीन फरवरी को 'हिन्दुस्तान' में पृष्ठ पांच पर लिखा गया कि अनशनकारियों में रामबदन और जितेन्द्र की दशा चिन्ताजनक हो गई है। दूसरे ही दिन अनशनकारियों की हालत चिन्ताजनक हो जाना दरअसल मीडिया के योगी प्रेम के 'चिन्ताजनक स्तर' पर पहुंच जाने का परिचायक था। गोरखपुर तथा दूसरे जिलों में जनसमस्याओं को लेकर होने वाले अनशन व आन्दोलन की भरपूर अनदेखी करने वाले मीडिया का यह रवैया किसी को भी आसानी से समझ में आ सकता है। कुशीनगर में मैत्रैय परियोजना से प्रभावित किसानों द्वारा 23 जनवरी से शुरू किये गये आन्दोलन के प्रति मीडिया की उपेक्षा इसका एक बढिया उदाहरण है।
मीडिया ने योगी के विराट स्वरूप को दिखाने के लिए न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण खबरें लिखी और दिखाईं बल्कि दूसरी आवाजों को दबाया और उपेक्षित किया। भाकपा माले ने 28 जनवरी को शांति मार्च निकालकर गांधी प्रतिमा के समक्ष दिन भर धरना दिया, हिन्दू युवा वाहिनी समेत सभी साम्प्रदायिक संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग को लेकर एक फरवरी को प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी दी लेकिन समाचार पत्रों में इसे सिर्फ महत्व नहीं मिला। कांग्रेसियों के गांधीगिरी यानि फूल बांटने को अलबत्ता महत्व दिया गया। एक चैनल ने इसे आम लोगों द्वारा अमन के लिए गांधीगिरी किये जाने की बात कहकर प्रसारित किया। इसी तरह कुछ अन्य संगठनों द्वारा गंभीर तरीके से अपनी बात कहे जाने को भी समाचार पत्रों ने महत्व नहीं दिया। दूसरी तरफ प्रशासन की थोड़ी सी सख्ती के बाद हिन्दू युवा वाहिनी और अन्य हिन्दू वादी संगठनों के हवन, कीर्तन, पूजन, बुद्धि शुद्धि यज्ञ जैसे आयोजनों को खूब प्रमुखता दी गयी।
गोरखपुर में और आस-पास के जिलों में इस बार जो कुछ हुआ, दरअसल वह नया नहीं था। यह जरूर था कि एक साथ कई जनपदों में आगजनी, तोडफोड, लूटपाट की घटनाएं घटीं लेकिन पूर्व में भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैं। स्थानीय मीडिया इससे भलीभांति परिचित था। सन् 1999 में पंचरूखिया काण्ड से लेकर अब तक पांच दर्जन से अधिक घटनाएं घट चुकी थीं। सन् 2004 में कुशीनगर जिले में मिश्रौली डोल प्रकरण के बाद पूरा जनपद इसी तरह हिंसक घटनाओं के चपेट में आ गया था। इसी वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान कई जनपदों में साम्प्रदायिक झडप की घटनाएं हुईं थी। मीडिया ने इन घटनाओं के विश्लेषण की जरूरत नहीं समझी कि आखिरकार एक दशक से ही इस तरह की घटनाओं की बाढ क्यों आ गई है? इसके पीछे कौन सी राजनीति कार्य कर रही है? ऐसा जानबूझकर किया गया क्योंकि इसके तह में जाने पर उस राजनीति का पर्दाफाश होता जो योगी आदित्यनाथ नेतृत्व में संघ सम्प्रदाय के समर्थन से पूर्वी उत्तरप्रदेश में किया जा रहा है। इससे बचने के लिए स्थानीय मीडिया ने हालिया घटनाओं के लिए प्रशासनिक चूक को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। एक क्षण के लिए मान लिया जाय कि गोरखपुर के प्रशासन से चूक हुई हो तो क्या पूर्व की सभी घटनाओं में प्रशासकीय चूक ही जिम्मेदार थी ? योगी और हिन्दू युवा वाहिनी की साम्प्रदायिक राजनीति को क्लीन चिट देने के इस अदा पर भला कौन नहीं कुर्बान होगा ? भला हो 'आउटलुक' का जिसने पूरी समग्रता में सभी पहलुओं को लेकर स्टोरी छापी और तथ्यों को दबाने, तोड़ने-मड़ोरने के प्रयास को असफल कर दिया। इसी कारण 'आउटलुक' के इस अंक (19 फरवरी) को इस क्षेत्र में जबर्दस्त लोकप्रियता मिली। आज भी लोग इस अंक में छपी गोरखपुर की खबर की फोटोस्टेट प्रतियां लेकर पढ़ रहे हैं।
गोरखपुर में 26 जनवरी की रात से जो कुछ हुआ उसने न सिर्फ साम्प्रदायिक तत्वों को बेनकाब किया वरन स्थानीय मीडिया के हिन्दूवादी चरित्र को भी पूरी तरह सामने ला दिया। साथ ही साथ इलेक्ट्रॉनिक चैनलों की हड़बड़ी में कुछ भी परोस देने तथा सुर्खी के लिए तथ्यों को तोड़ने-मड़ोरने की प्रवृत्ति का खुलासा कर दिया। अच्छी बात यह है की पाठक और दर्शक अब ठीक से इनके चरित्र और प्रवृत्ति को पहचानने लगे हैं इसलिए इन पर भरोसा कम ही करते हैं। यही कारण था कि मीडिया की उकसावेबाजी की हरकतों के कारण भी लोगों ने अपना संयम नहीं खोया और मीडिया द्वारा पहले ही दिन से गोरखपुर की घटना को दंगा करार देने के बावजूद दंगा नहीं हो सका। यही आम पाठक और आम दर्शक का जवाब था। (समाप्त)

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