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नवंबर, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तसलीमा को भारत की नागरिकता मिले

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बंगाल की प्रगतिशील और वाममोर्चा सरकार ने जिस तरह तसलीमा को राज्य से बाहर किया, उससे उसका धर्मनिरपेक्ष मुखौटा सबके सामने आ गया है। 'हिन्दुस्तान' में इसी टिप्पणी के साथ आज प्रख्यात साहित्यकार और आंदोलनों की अगुवा महाश्वेता देवी की टिप्पणी छपी है। हिन्दुस्तान से साभार ढाई आखर के पाठकों के लिए पेश है महाश्वेता देवी के विचार - तसलीमा को भारत की नागरिकता मिले बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन का वीसा रद्द करने और नंदीग्राम के सवाल को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय का एक संगठन कोलकाता में बुधवार को सड़क पर उतरा था। मुझे नहीं समझ में आता कि सड़क पर उतरे लोग नंदीग्राम को लेकर सरकार की भूमिका के प्रति अपना प्रतिवाद जता रहे थे या तसलीमा के भारत में रहने के प्रति अपनी आपत्ति जता रहे थे। मुझे लगता है कि धार्मिक कट्टरता का विरोध करने की जो कीमत 13 वर्षों से निर्वासित रहकर तसलीमा नसरीन ने चुकाई है, वह विरल है और इसीलिए मैं तसलीमा नसरीन के इस संग्राम को सलाम करती हूं। मैं चाहती हूं कि उन्हें भारत सरकार नागरिकता दे। वे एक लेखिका हैं। वे एक स्त्री हैं। मैं भी एक लेखिका और स्त्री हूं, इस नाते

नन्दीग्राम और मुसलमान

कोलकाता में दो दिन पहले हुए प्रदर्शन से कई लोगों की पेशानी पर चिंता की लकीर खिंच गई है। जिस तरह से वह प्रदर्शन होने दिया गया। पहले से पता होने के बाद सुरक्षा बलों का एहतियाती इंतजाम नहीं किया गया और उसके बाद सेना बुला ली गई... पहले सच्चर कमेटी और उसके बाद नन्दीग्राम ने पश्चिम बंगाल के मुसलमानों की बदतर हालत और सरकार का उनके प्रति नजरिया, उजागर कर दिया है। ऐसे में संगठित होते मुसलमान स‍रकार के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं... इसलिए नौजवान पत्रकार और www.twocircles.net के सम्पादक काशिफ उल हुदा की सलाह है कि भावनात्‍मक मुद्दों के बजाय मुसलमान अपने को सामाजिक आर्थिक मुद्दों की लड़ाई पर ही केन्द्रित रखें तो अच्‍छा है। ढाई आखर की गुजारिश पर उन्होंने हिन्दी में यह टिप्पणी भेजी है। हिन्दी में यह उनकी पहली औपचारिक टिप्पणी है। मुसलामानों की तरक्की के लिए जरूरी है शांतिपूर्ण समाजी और सियासी तहरीक काशिफ उल हुदा 1977 से वाम मोर्चा पश्विम बंगाम की सत्ता पर काबिज़ है. चुनाव के जरिये सत्‍ता में रहने वाली ये दुनिया की सबसे लंबी कम्युनिस्ट सरकार है. वाम मोर्चे के 30 साल तक सत्ता पर

यह किसकी लड़ाई है दोस्तो

नन्‍दीग्राम में जो कुछ हुआ, उसने बड़ी तादाद में देश के प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष लोगों को काफी परेशान कर दिया है। आत्‍ममंथन भी चल रहा है। कई लोगों के लिए यह आंख खोलने वाला है तो कई इसे सबक के रूप में ले रहे हैं। ऐसे में यह सवाल भी उभर रहा है कि जिस तरह गुजरात की साम्‍प्रदायिक हिंसा को वहां का मुखिया जायज ठहराता रहा, क्‍या ठीक उसी तरह नन्‍दीग्राम की हिंसा को वहां का मुखिया जायज नहीं ठहरा रहा। बलात्‍कार, हिंसा, लूट, आगजनी और अब वसूली... यह क्‍या है। आज के नवभारत टाइम्‍स में दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में प्राध्‍यापक अपूर्वानन्‍द का एक लेख प्रकाशित हुआ है। ढाई आखर के पाठकों के लिए यह लेख, नवभारत टाइम्‍स से साभार पेश है- यह किसकी लड़ाई है दोस्‍तो अपूर्वानंद बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने नंदीग्राम पर कब्जे के लिए शासक दल के हिंसक अभियान पर जो बयान दिया, उसने सन 2002 में गोधरा के बाद गुजरात में भड़के दंगों का औचित्य ठहराने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की याद दिला दी। 'उन्हें उन्हीं की जुबान में जवाब दिया गया है' और 'हर क्रिया की प्रतिक्रिया

बंधु बुद्धदेव और भाई नरेन्द्र

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अंतर बताओ तो जानें ! सत्या सागर ने‍ कोशिश की है, आप भी कुछ कोशिश करें। तलाशें करें कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बंधु बुद्धदेव भट्टाचार्य और गुजरात के मुख्‍यमंत्री भाई नरेन्‍द्र मोदी कितने पास, कितने दूर हैं। पार्टी के वफादार कारकुन पार्टी के वफादार कारकुन रहन सहन का तरीका आम रहन सहन का तरीका आम नन्‍दीग्राम में नरसंहार के लिए कुख्‍यात नरोदा पाटिया में नरसंहार के लिए कुख्‍यात कैडर-पुलिस-माफिया की मदद से राज्य की शासन व्‍यवस्‍था चलाते कैडर-पुलिस-माफिया की मदद से राज्य की शासन व्‍यवस्‍था चलाते भारतीय पूंजीपति के दुलारे भारतीय पूंजीपति के दुलारे वैश्विक पूंजीपति के दुलारे वैश्विक पूंजीपति के दुलारे 'सेज' के चैम्पियन 'सेज' के चैम्पियन लोकतंत्र में यकीन नहीं रखते लोकतंत्र में यकीन नहीं रखते इनके पार्टी कार्यकर्ता 'शत्र

नंदीग्राम में बहुत हो चुका

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किसी भी प्रगतिशील व्‍यक्ति के लिए, जिसने दशकों से पश्चिम बंगाल की वाम सरकार की हिमायत की हो, हाल की घटनाएं शर्मसार करने के लिए काफी है। तीन दशकों के शासन की जड़ किस दलदल पर तामीर की गई है, वो नंदीग्राम, रिजवानुर की हत्‍या और फिर अनाज के लिए हो रहे दंगों से साफ है। लेकिन हमारा विरोध उन लोगों के विरोध से बिल्‍कुल अलग है, जो गुजरात की हिंसा में तो राष्‍ट्रवाद देखते हैं और बंगाल में तानाशाही। दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में प्राध्‍यापक अपूर्वानन्द‍ लगातार नंदीग्राम की हिंसा पर लिख रहे हैं। उनकी यह टिप्‍पणी ढाई आखर के पाठकों के लिए- नंदीग्राम में बहुत हो चुका अपूर्वानन्द जब दीपावली कि रात हम सब दिए जला रहे थे, बंगाल के नंदीग्राम में सीपीएम के हमलावर उनके घर जला रहे थे, जिन्हें वे अपना दुश्मन मानते हैं. कहा जा रह है कि सोनाचुरा पर कब्जे की पूरी तैयारी हो चुकी है और बडे़ हमले होने वाले हैं. राज्यपाल गोपाल कृष्ण गाँधी ने एक असाधारण कदम उठाते हुए 700 शब्दों का बयान जारी किया है जिसमें उन्‍होंने कहा कि नंदीग्राम पर नियंत्रण हासिल करने के लिए जो हिंसक अभियान सीपीएम ने चलाया है, वह पूरी तरह ग

क्या रवीश पैसे के लिए सेक्यूलर हैं

बड़ा आसान होता है किसी की ईमानदारी और विचार पर सवाल खड़े करना। अपने विचार को ‍ सर्वश्रेष्ठ मानना भी बड़ा आसान होता है और सबसे आसान होता है कि किसी की धर्मनिरपेक्षता पर ताने कसना। इस तरह के विचार छिपाते-छिपाते काफी कुछ कह जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माहिर सहाफी रवीश कुमार ने काफी पहले (22 अगस्‍त 2007) 'चक दे इंडिया' पर एक टिप्‍पणी लिखी थी। वह टिप्‍पणी ढाई आखर ने पोस्‍ट की। जनाब अतुल जी ने कल चार नवम्‍बर को उस पोस्‍ट पर अपनी राय जाहिर की। उस टिप्‍पणी में उन्‍होंने रवीश कुमार पर ही कुछ सवाल उठा दिए। चूँकि पोस्‍ट को काफी दिन हो चुके हैं, इसलिए अतुल जी की राय और रवीश के जवाब को हम यहां अलग पोस्‍ट की तरह पेश कर रहे हैं। जनाब अतुल जी ने लिखा है- ' विवाद कि जगह संवाद करने का र‍िक्‍वेस्ट बिल्कुल बढि़या है और कोशिश कि जायेगी। कबीर खान को लेकर फिल्म बनाना आसान है क्योंकि आजकल काफी फ़ैशनेबल सा हो गया है सेक्‍यूलर दिखना इन्क्लुडिंग रवीश जी. क्योंकि उसमें काफी नाम भी, पैसा भी है और सेफ्टी भी है. मगर हिम्मत तो हम तब माने जब रवीश अपने डेनमार्क के पत्रकार भाई जिन पे अटैक होता ह