संदेश

सितंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सवाल उठाने की इजाजत चाहता हूँ

सवाल उठाने पर सवाल पृथ्‍वी गोल है। सूरज पूरब से उगता है। गंगा नदी है। हिमालय पर्वत राज है- अगर इन प्राकृतिक सचाइयों को छोड़ दें तो सच वही नहीं होता जो अक्‍सर बताया या दिखाया जाता है। सच के भी कई रूप होते हैं। सच को हम अपने मुताबिक स्‍वीकार या इनकार करते हैं। पिछले कुछ दिनों में सच की ढेर सारी शक्‍लें सामने आ रही हैं। ये शक्‍लें वैसी हैं, जिन्‍हें हम अपने मुताबिक ढालने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्‍ली में विस्‍फोट और कई बेगुनाहों की हत्‍या। विस्‍फोट करने वाले कथित लोगों का बटला हाउस में इनकाउंटर। फिर तफ्तीश का ब्रेकिंग न्‍यूज... मैं मॉस कॉम का विद्यार्थी रहा हूँ। मॉस कॉम सिद्धांत और रिसर्च में मेरी दिलचस्‍पी है। मॉस कॉम का एक मूल और सामान्‍य सा सिद्धांत है जो सच की सचाई को बताती है। इसके मुताबिक सच का चेहरा कलम को पकड़ने वाले हाथ, टाइपराइटर या कम्‍प्‍यूटर पर चलने वाली उंगलियाँ, कैमरे के पीछे लगी आँखें और सबसे बढ़कर 'गेटकीपर' तय करते हैं। ( गेटकीपर यानी खबरें जिन आँखों से गुजरती और खबरों के होने न होने पर जिनका नियंत्रण होता है।) सच वही होता है, जो ये सभी बताते, लिखते, दिखाते...

शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी (Flood in Bihar-5)

चित्र
एक बार फिर हाजि़र हैं, नागेन्‍द्र अपनी पैनी निगाह और मामूली से अल्‍फाज के साथ, मामूली से लोगों की बेहाल जिंदगी बयान करने के लिए। ऐसी बेदर्दी, ऐसी है‍वानियत... उफ्फ... संकट की घड़ी में ऐसा सुलूक... सच है, शर्म वाकई  में मगर हमें/इनको नहीं आएगी। इन्‍हें आप किन अल्‍फाज़ से नवाज़ेंगे। इनके लिए आप किस सजा की तजवीज करेंगे। ये शब्‍दों से ऊपर हैं और सजा तो शायद इनके लिए है ही नहीं।  ढाई आखर के पाठकों के लिए हिन्‍दुस्‍तान, भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक नागेन्‍द्र (Nagendra) की यह रिपोर्ट। हिन्‍दुस्‍तान से शुक्रिया के साथ। शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी बाढ़ग्रस्त इलाकों की चिकित्सा व्यवस्था में छेद ही छेद हैं सुपौल और सहरसा से लौटकर नागेन्‍द्र बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में सरकारी चिकित्सा इंतजामों की बार-बार ढँकी जा रही परत खोलने के लिए त्रिवेणीगंज की यह घटना पर्याप्त है। पिछले पाँच दिनों में वहाँ जो कुछ हुआ उससे आक्रांत लोग अब रेफरल अस्पताल छोड़ कर भागने लगे हैं। लिखते हुए भी शर्म आती है ले...

पेट में दाना नहीं, खाली है थाली (Flood in Bihar-4)

चित्र
तैरने वाला समाज डूब रहा है। बिहार के बाढ़ में फँसे मुसीबतज़दा लोगों को हम सबसे मदद की दरकार है। उनकी आँखें हमसे सवाल कर रही हैं- क्‍या हमें जीने का हक नहीं है। क्‍या हम जिंदा नहीं रह पाएँगे। कोशिश की जाए तो बूँद-बूँद से सागर बन जाता है। हम इनकी मदद के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करने की कोशिश करें। अपने लिए जीए तो क्‍या जीए... ढेर सारी संस्‍थाएँ, ढेर सारे लोग मदद के लिए आगे आए हैं। वे मदद कर रहे हैं। कई मदद करना चाहते हैं, पर वे समझ नहीं पा रहे हैं, कैसे मदद की जाए। मैं यहाँ कुछ गैर सरकारी प्रयासों के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहा हूँ। आपका जिस संगठन, संस्‍था या शख्‍स से दिल भरे या जिस पर सहज यकीन हो, उसके जरिए मदद की कोशिश कीजिए। (इस बीच खबर है कि कटिहार में थामस बांध टूट गया है जिससे करीब 50 हजार लोग बाढ़ से घिर गए हैं। ऊपर का चित्र हिन्‍दुस्‍तान से साभार।) रेडक्रास को चाहिए फेमिली पैक रेड क्रास सोसायटी, बिहार ने लोगों से फेमिली पैक देने की अपील की है। रेडक्रास के मुताबिक ऐसे करीब 50 से 60 हजार पैक की तुरंत जरूरत है ताकि लोगों को अपनी जिंदगी शुरू करने में मदद मिले। एक फेमिली...

तैरने वाला समाज डूब रहा है (Flood In Bihar-3)

चित्र
आज जब बिहार का एक बड़ा हिस्‍सा बाढ़ में फँसा है, तो हमें अनुपम मिश्र, दिनेश मिश्र, मेधा पाटकर, रणविजय, हेमंत, अनिल प्रकाश, नलिनीकांत, दुनु राय याद आ रहे हैं। वैसे तो हमारे समाज के बड़े हिस्‍से को ये विकास विरोधी और कई बार राष्‍ट्रविरोधी तक लगते हैं। ये वो नाम हैं जो सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि हम नदियों के साथ खिलवाड़ करना बंद करें। वरना हमें कोसी क्षेत्र में आज जिस तरह की त्रासदी देखने को मिल रही है, उसका अंत नहीं होगा। यहाँ पेश लेख 'तैरने वाला समाज डूब रहा है' पर्यावरणविद अनुपम मिश्र (Anupam Mishra) की  किताब 'साफ माथे का समाज' का एक हिस्‍सा है। इस किताब को पेंग्विन बुक्‍स ने छापा है। इस वक्‍त यह लेख जितना मौजू है, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि इसे रविवार, जनसत्‍ता और हिन्‍दुस्‍तान ने एक हफ्ते के अंदर छापा है। ढाई आखर के पाठकों के लिए यह लेख एक बार फिर पेश है। यह काफी लम्‍बा लेख है। कुछ अंश छोड़ दिए गए है। आप थोड़ा वक्‍त दें और इसे पूरा पढ़े, बिहार में होने वाली तबाही की वजह समझ में आने लगेगी।  और...

कोसी अब किस ओर चलेगी (Flood in Bihar-2)

चित्र
बिहार में आई बाढ़ से होने वाली तबाही, बेहाल लोगों का हाल...  हर रिपोर्ट नए हालात का बयान कर रही है। त्रासदी के नए आयाम बता रही है। हिन्‍दुस्‍तान भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक नागेन्‍द्र की टिप्‍पणी आपने पढ़ी। चार दिन पहले नागेन्‍द्र ने बाढ़ से मुतास्सिर कुछ इलाकों का दौरा करने के बाद यह रिपोर्ट लिखी। हिन्‍दुस्‍तान से साभार यह रिपोर्ट और फोटो आपके लिए पेश है- कोसी अब किस ओर चलेगी नागेन्‍द्र भागलपुर से सहरसा जाते हुए। एनएच 107 पर माली चक के आसपास। कई किलोमीटर की लंबाई में सड़क के दोनों ओर कोसी अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगी है। बाईं ओर शांति है लेकिन दाईं ओर से कोसी जोर मार रही है। पानी कई जगह सड़क के नीचे से अपना रास्ता बनाकर दूसरी ओर निकल रहा है। यह माली, सिसवा, गवास, सरोसी और विसुनपुर गाँवों का इलाका है। बोल्डर डाले जा रहे हैं। इस काम में ठेकेदार के मजदूर भी हैं। गाँव वाले भी। दसई साव काफी गुस्से में हैं। कहते हैं ‘ अब चेती है सरकार। यही काम पहले भी हो सकता था। जेतना बोल्डर गिराया गया है उससे कई ग...

प्रलय कभी बताकर नहीं आती (Flood in Bihar-1)

चित्र
और बाढ़ इस बार भी हमेशा की तरह घंटी बज कर आयी है बिहार में आई तबाही पर  हिन्‍दुस्‍तान भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक   नागेन्‍द्र का यही कहना है। हिन्‍दुस्‍तान पिछले कुछ महीनों से लगातार लिख रहा था कि कोसी ने अपनी दिशा बदल दी है। तटबंध टूटने का खतरा है। अगर वक्‍त रहते नहीं चेता गया तो विनाश ही विनाश... (एनडीटीवी इंडिया पर रवीश ने भी इस पर रिपोर्ट की है) लेकिन जो होता आया है वही हुआ... किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगी और तबाही हम सब देख रहे हैं। नागेन्‍द्र ने यह टिप्‍पणी आज से 12 दिन पहले लिखी थी। हिन्‍दुस्‍तान से साभार उनकी यह टिप्‍पणी, ढाई आखर के पाठकों के लिए। प्रलय कभी बताकर नहीं आती और बाढ़ इस बार भी हमेशा की तरह घंटी बज कर आयी है नागेन्‍द्र हम फिर लौट पड़े अपनी पुरानी राह और गाने लगे ‘कोसी का शोक गीत’। हम यह भूल गए कि कोसी हर बार अपनी चाल बदलती है। कई बार अपनी राह बदल चुकी है। वह कितनी वेगवती है यह भी हमें पता है लेकिन हम इसे याद नहीं रखना चाहते। यह सब हर साल होता ह...