कोसी अब किस ओर चलेगी (Flood in Bihar-2)

बिहार में आई बाढ़ से होने वाली तबाही, बेहाल लोगों का हाल...  हर रिपोर्ट नए हालात का बयान कर रही है। त्रासदी के नए आयाम बता रही है। हिन्‍दुस्‍तान भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक नागेन्‍द्र की टिप्‍पणी आपने पढ़ी। चार दिन पहले नागेन्‍द्र ने बाढ़ से मुतास्सिर कुछ इलाकों का दौरा करने के बाद यह रिपोर्ट लिखी। हिन्‍दुस्‍तान से साभार यह रिपोर्ट और फोटो आपके लिए पेश है-

bihar Flood

कोसी अब किस ओर चलेगी

नागेन्‍द्र

भागलपुर से सहरसा जाते हुए। एनएच 107 पर माली चक के आसपास। कई किलोमीटर की लंबाई में सड़क के दोनों ओर कोसी अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगी है। बाईं ओर शांति है लेकिन दाईं ओर से कोसी जोर मार रही है। पानी कई जगह सड़क के नीचे से अपना रास्ता बनाकर दूसरी ओर निकल रहा है। यह माली, सिसवा, गवास, सरोसी और विसुनपुर गाँवों का इलाका है।

बोल्डर डाले जा रहे हैं। इस काम में ठेकेदार के मजदूर भी हैं। गाँव वाले भी। दसई साव काफी गुस्से में हैं। कहते हैं ‘अब चेती है सरकार। यही काम पहले भी हो सकता था। जेतना बोल्डर गिराया गया है उससे कई गुना का बिल बना होगा। हर काम में यही होता है।’ बाईं ओर जिस तरह भँवर की शक्ल में पानी जगह-जगह हिलोरें ले रहा है उससे साफ है कि एक-दो दिन ऐसा ही रहा तो सड़क का कटना तय है। डूब जाएँगे ये गाँव।

यह वही पानी है जिसने मधेपुरा को डुबोया है। अब इसकी वापसी है। वहाँ कोसी ठहर गई है। उतार पर है। यह अच्छी खबर थी। पर यह जिस तरह इस ओर पलटी मार बैठी है वह चिंतित करने वाला है। याद आ रही है वह पंक्ति ‘कोसी कभी विश्राम नहीं लेती’। यदि यही गति रही तो यह पानी महेशखूंट होते हुए नवगछिया की ओर जएगा जो पहले से ही आक्रांत है। वहाँ गंगा ठहर गई है, शायद कोसी के आने के इंतजार में। यदि ऐसा हुआ तो नवगछिया का डूबना तय है। यूँ भी कोरचक्का बांध टूटने से वहाँ स्थिति थोड़ी गड़बड़ हो गई है।

सब आक्रांत हैं

हम थोड़ा आगे बढ़े। राष्ट्रीय राजमार्ग के इस ओर उस ओर कोसी के शोर से निर्लिप्त भीड़ दिखाई दी। ट्रकों की लाइन, एक टाटा सूमो और एक दो अन्य छोटी गाड़ियाँ। यह यूनीसेफ की राहत टीम है जिसे सहरसा जना है। ट्रकों पर दवाइयाँ, टेंट वगैरह लदे हैं। इसका वहाँ पहुँचना जरूरी है (सहरसा यूँ भी दोहरी आबादी का बोझ झेल रहा है)। यूनीसेफ की टीम में मुकेश पुरी हैं, दो लड़कियाँ भी। ट्रकों के ड्राइवरों ने आगे जाने से यह कहकर मनाकर दिया कि आगे रोड कटने का खतरा है। इन्हें समझाने वाला कोई नहीं। एक पुलिस जीप भी निकल गई। ऐसे नजारे कई जगह हैं। अफवाहों से आक्रांत।

मधेपुरा के डीएम को लालूजी की डाँट अनायास नहीं थी। ऐसी सामग्री कई स्थानों पर फँसी हुई है। ऐसे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। यूनीसेफ के ये ट्रक हमारे समझाने पर आगे बढ़ पाते हैं।

कल हो न हो

यह माली चक का जीरो माइल है। जीवन बचाने की जद्दोजहद के बीच जीवन चल भी रहा है। आने वाले खतरे से बेखबर या शायद इस अंतराल को अपनी मुट्ठी में समेट लेने की कोशिश है यह। मछुआरों ने अपने जाल डाल रखे हैं। संकट आने के पहले ये मछलियाँ कुछ तो दे ही जाएँगी। कल का कोई भरोसा नहीं। सड़क के दूसरी ओर दो नावें दिखाई देती हैं। क्षमता से दुगनी सवारियों को ढोते हुए। जरा सी चूक इनके जीवन की डोर खींच सकती है लेकिन डूब चुके गाँव से बचकर निकले लोग बस किसी भी तरह सुरक्षित किसी भी किनारे लग जना चाहते हैं। कल पर शायद इनका भी भरोसा उठ चुका है।

जिंदगी की जंग

हम अब सोनबरसा प्रखंड में हैं। जीरो माइल से आगे बढ़ने पर बलैया, ननौती, गुवारी, झिटकिया, मरिया, ससौता, मोतीबाड़ा गाँवों के विस्थापित मिलते हैं। इनके घर-बार, खेत-खलिहान सब डूब चुके हैं। किसी तरह जान बचाकर यहाँ पहुँचे हैं। आगे जने के लिए किसी वाहन का इंतजार है। पूछा कोई राहत मिली। बोले ‘राहत नहीं चाहिए, बस जीवन बच जाए किसी तरह। जिंदगी जी लेंगे। बस कोई गाड़ी भेजवा दीजिए जो हमें यहाँ से निकाल ले।’ राहत भी कहीं दिखाई नहीं पड़ रही है। सरकारी राहत तो बिल्कुल नहीं।

बेताब है कोसी

यह सोनबरसा मुख्य सड़क है। बाजार के पास वाली। कोसी सड़क के इस ओर-उस ओर का फर्क मिटाने को बेताब हैं। पानी सड़क के ऊपर डेढ़ फुट तक चढ़ आया है। सामने आ रहे ट्रक का डूबा पहिया इसकी गहराई बता रहा है। लोग बताते हैं, आपकी गाड़ी निकल जएगी। धीरे-धीरे जाइयेगा। हम आगे बढ़ते हैं। काफी धीमी गति से। मन में चिंता है लेकिन आगे जा रही गाड़ी देख ड्राइवर का हौसला बनता है। इसी पानी में गाड़ियों की गति से निकलती बौछारों और पानी के साथ अठखेलियाँ करते बच्चे भी हैं। इन्हें नहीं पता उन्हें आनंद देने वाला यह जल आगे जीवन को किस ओर ले जने वाला है। इस सड़क पर यह हाल कई दिन से है। फिलहाल तो इस सड़क को बचाने की कोई बड़ी कोशिश नहीं दिखाई दी है।

थोड़ा आगे बढ़ने पर लोगों का संघर्ष दिखाई देता है। अपने संसाधनों से वे बालू-मौरंग के बोरों के चट्टे लगाकर घरों की किलेबंदी कर रहे है। आने वाले कल के कोसी के कोप से बचने के लिए। (दरअसल इस क्षेत्र में पानी का यह दबाव नेपाल से छोड़े गए पौने दो लाख क्यूसेक पानी का नतीजा है। जो धीरे-धीरे पैर पसार रहा है।) इनकी सरकार जीवन बचाने के लिए जो पहले न कर पाई वही काम ये ग्रामीण खुद कर रहे हैं। ‘उन्हें’ बिहार बचाने की चिंता हो न हो, इन्हें तो अपना घर बचाना है।

कोशिशें हुई लेकिन देर से

हाँ, इसी रास्ते में दो से तीन किलोमीटर सड़क ऐसी है जो अब तब में कटने को है। जिसे बचाने की अंतिम क्षण कोशिश भी हुई है। दोनों ओर बोल्डर डाले गए हैं। लेकिन यह तय है कि अंतिम क्षण के सरकारी प्रयास इसे देर तक नहीं सहेज पाएँगे।

यह मनौरी चक है। यहाँ सड़क धँसने लगी है। कई फुट गहरा गड्ढा हो चुका है। सड़क पर पत्थर डाले जा रहे हैं। गाड़ियाँ रोक दी गई हैं। थाने की एक जीप घूम-घूम कर लोगों को आश्वस्त कर रही है कि बोल्डर डालने के बाद ही लोग जा पाएँगे।

लोग नाराज हो रहे हैं। एक ही शिकायत, यह तो कई दिनों से चल रहा था। अब तक उपाय क्यों नहीं हुआ। जिसे थोड़ा सा भी अधिकारी जैसा देखते हैं, घेर लेते हैं। उनका गुस्सा जायज है। वे आने वाले संकट से आक्रांत हैं।

और देखते-देखते कट गई यह सड़क

और यह सोहा है। जिस बात की कई दिन से चर्चा थी, यहाँ सड़क हमारे देखते-देखते कट गई। बोल्डर खत्म हो गए हैं। कहीं से मँगाना पड़ेगा। सड़क भरेगी, तब कहीं शायद आगे बढ़ने की नौबत आए। लोग समझाते हैं, आपकी गाड़ी हम लोग उस पार टपा देंगे। लेकिन वे सलाह भी देते हैं कि यदि, लौटना भी है इसी रास्ते तो न जने में ही समझदारी है। हम यहीं से लौट पड़ते हैं। बाद में मालूम पड़ता है काफी आगे हनुमान नगरा चकला तक की रोड जगह-जगह दरक गई है। रविवार को इस सड़क पर जहाँ डेढ़ फुट तक पानी था वहाँ सोमवार तक यह दो से ढाई फुट तक पानी में डूब चुकी थी। हम तो लौट चुके थे लेकिन कुछ लोग जोखिम लेकर अब भी इस रास्ते जाने से बाज नहीं आ रहे। इस चेतावनी के बावजूद कि छोटे वाहनों के लिए यह राह अब सुरक्षित नहीं रही।

जनता की इच्छाशक्ति और सेवा भाव

भागलपुर से सोहा और फिर हनुमान नगर तक कई सच दिखाई पड़ते है। एक सच यह है कि यह सड़क जगह-जगह कट रही है लेकिन इसे रोकने के कारगर प्रयास नहीं दिखते। किसी को इस बात की चिंता नहीं कि यह सड़क कट गई तो सहरसा टापू बन जएगा। एक और सच है। इस मार्ग पर कहीं भी कोई ऐसा सरकारी इंतजाम नहीं कि आसपास के पीड़ितों को शरण मिल सके। जीरो माइल पर एक बड़ा कैम्प दिखता है। कई छोटे-छोटे टेंट लगे हैं। ये टेंट यूनीसेफ के हैं। खगड़िया के बेलदौर प्रखंड से बचाकर लाए गए डेढ़ हजार से ज्यादा विस्थापित यहाँ शरण लिए हुए हैं। यूनीसेफ ने इन्हें छत दी है और दी हैं दवाइयाँ। गाँव वाले आपसी सहयोग से खाने का इंतजाम कर रहे हैं। गोया यह कि सब कुछ जनता का अपना है। हाँ, यदि यहाँ कोई काम कर रहा है तो यह जनता की इच्छाशक्ति और सेवा भाव है। सरकारी राहत कहीं नहीं। सरकारी नाव भी कहीं नहीं। यहीं पर सेना के 15 ट्रक अचानक गुजरते हैं। राहत सामग्री, नाव और दवाइयों के साथ। मेडिकल कोर भी है। शायद अब सहरसा को थोड़ी राहत मिले। ये लोग वहीं जा रहे हैं।

भागलपुर से पूर्णिया-अररिया तक पूरी राह का भी यही सच है। सब जगह या तो स्वयं सेवी संगठन सक्रिय हैं या फिर क्षेत्र के लोग। बनमनखी में हालत खराब है। एक बोतल पानी के लिए कम से कम दो दजर्न हाथ आपस में उलझे हुए हैं। कहीं कोई सरकारी इंतजाम नहीं है। प्रशासन ने एक जगह लाई (मूढ़ी) बँटवाई। अब सौ ग्राम लाई से भला कोई क्या पेट भरेगा। नवयुवक संघ वहाँ खाने के पैकेट बंटवा रहा है। इसमें चार रोटी, सब्जी और आचार है। एक स्वयं सेवी संगठन कपड़े जुटाकर लाया है। इसे एक मैदान में रख दिया गया है। लोग अपनी जरूरत और नाप के अनुसार कपड़े छाँट रहे हैं। जिसे जो फिट आ जाए, पहन लें। यहाँ कोई अनुशासन भंग नहीं कर रहा।

टिप्पणियाँ

Advocate Rashmi saurana ने कहा…
aesi chijo ke baare me likhna hi bhut badi baat hai. jari rhe.
क्या चित्रण किया है। रूह कांप जती है। कैसी विपत्ति आ पड़ी है , उनपर। भगवान उनको विपत्ति से लड़ने की क्षमता दें।
Bobby Ramakant ने कहा…
नागेन्द्र भाईसाहिब, यह लेख हिला देने वाला विवरण दे रहा है जो भीषण स्तिथि बिहार में बाढ़ से पीड़ित लोग झेल रहे हैं। बेहद कष्ट देने की बात यह है कि ऐसी आपदाओं में सरकारें और अन्य प्रदेशों के लोग भी, खासकर कि सम्रद्ध वर्ग के लोग, वन्च्निये संवेदनशीलता नहीं दिखा रहे हैं। कल एक युवाओं के साथ बैठक में जब बिहार में बाढ़ का जिक्र आया और ढाई आखर में ४ सितम्बर को प्रकाशित लेख - प्रलय कभी बता कर नहीं आती - को पढ़ने का प्रस्ताव रखा, तो एक युवा साथी ने टिपण्णी की कि बिहार में बाढ़ तो हर वर्ष आती है। हालाँकि हम लोगों ने लेख को सामूहिक रूप से पढ़ा परन्तु वोह टिपण्णी मुझे आतंकित करती रही। कल ही एक और परिचर्चा में संदीप भाई भारत-अमरीका परमाणु करार या समझौते पर बोल रहे थे और सभागार में मौजूद लोगों में से अधिकाँश जाने-पहचाने लोगों को देख कर, यही लग रहा था कि बहार की दुनिया अपनी धुन में रमी हुई है।
आपके लेखों ने कम-से-कम हिंदुस्तान दैनिक और अन्य स्त्रोतों जिसमें ढाई आखर भी शामिल है, अपनी बात लोगों तक समेधान्शीलता के साथ पहुँचाई है जो महत्व की बात है क्योंकि कुछ ऐसे भी पत्रकार हैं को बाढ़ की रपट ऐसे करते हैं जैसे ओलंपिक्स की ख़बर हो।

सधन्यवाद,

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