आतंकवाद का हिन्‍दुत्‍ववादी (हिन्‍दू नहीं) चेहरा (Hindutava terror)

क्‍या वाकई हम सब, पुलिस और खुफिया निजाम आतंकवाद से लड़ना चाहते हैं। अगर हाँ, तो वक्‍त आ गया है कि आँख में आँख डालकर सच कहने और सुनने की हिम्‍मत पैदा करें। पिछले कई पोस्‍ट में ढाई आखर से यह मुद्दा उठता रहा है कि आतंकवाद को किसी खास मजहब या खास समुदाय या खास नामधारियों के मत्‍थे मढ़ने से काम नहीं चलेगा। इससे आतंकवाद खत्‍म नहीं किया जा सकता। लेकिन जब पूरा का पूरा निजाम, खासतौर पर पुलिस और खु‍फिया एजेंसियाँ और उनकों वैचारिक खाद-पानी देतीं, हिन्‍दुत्‍ववादी पार्टियाँ (हिन्‍दूवादी नहीं)  हों  तो हर जाँच एक खास चश्‍मे से ही की जाएगी।

100_6367इसी मायने में इंडियन एक्‍सप्रेस की आज की एक खबर हंगामा मचाए है। इंडियन एक्‍सप्रेस के मुताबिक ईद के ठीक पहले मालेगाँव और मोदासा में हूए बम धमाकों में हिन्‍दुत्‍ववादी संगठनों के हाथ होने की खबर है। 

खबर कहती है कि इंदौर के एक हिन्‍दुत्‍ववादी संगठन हिन्‍दू जागरण मंच इन धमाकों के पीछे है। धमाका करने वालों का रिश्‍ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से है। इसके कई कार्यकर्ताओं से पूछताछ की जा रही है। (खबर पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें।)

हमेशा की तरह धमाकों के तुरंत बाद पुलिस सूत्रों और खबरिया बंधुओं ने कहा था कि इन धमाकों के पीछे इंडियन मुजाहिदीन और सिमी का हाथ है। लेकिन तफ्तीश के जरिए अब कुछ और ही बात सामने आ रही है।

इससे पहले इंडियन एक्‍सप्रेस ने ही एक खबर ब्रेक की थी कि जिसमें उसने सनातन संस्‍था और हिन्‍दु जागृति समिति के बारे में विस्‍तार से बताया था और इन संगठनों के आतंकवादी गतिविधियों के बारे में जानकारी दी थी। (इसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं- Quietly, hardline Hindu outfits build a network across Maharashtra, Goa. )

अब तो मुद्दा है कि हिन्‍दुत्‍ववादी विचारधारा (दोहरा रहा हूँ, हिन्‍दू धर्म नहीं। हिन्‍दू नहीं।) जिसकी जड़ें सावरकर से होते हुए हिटलर से मिलती हैं, क्‍या उसे इस मुल्‍क में इसी तरह फलने फूलने दिया जाएगा? क्‍योंकि जनाब जब इसे सीचेंगे तो प्रेम के बेल नहीं निकलेंगे। यहाँ तो नफरत की ही खेती होती है। कंधमाल, कर्नाटक और सन 2002 में गुजरात में जो हुआ, वह इसी राष्‍ट्रवादी, हिन्‍दुत्‍ववादी (हिन्‍दू नहीं) विचारधारा  की बेल के फल और फूल है।  तय कर लें कि क्‍या चाहिए। इसी से जुड़ा सवाल है कि आतंकी और आतंकवादी संगठन कौन है और उनके खिलाफ कैसी कार्रवाई की जानी चाहिए।

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टिप्पणियाँ

yah to hona hi tha, simi aur muslim vote bank ko bachane ke liye hinduon ki kisi n kisi sanstha ko to badnam karna hi tha. isme naya kya hai
yah to hona hi tha, simi aur muslim vote bank ko bachane ke liye hinduon ki kisi n kisi sanstha ko to badnam karna hi tha. isme naya kya hai
Aadarsh Rathore ने कहा…
अति उत्तम
देश के हालात खराब हो रहे हैं
हम हिंदुत्व के नाम पर चल रहे आतंक के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकते। पता नहीं कौन कब सटक जाए। विड़बना है कि कुछ भी पोस्ट करने से पहले यह अलग से लिखना जरूरी हो जाता है कि हिंदू और हिंदुत्व मे कितना फर्क है
Unknown ने कहा…
अंग्रेजी अखबार तो हिन्दुओं के खिलाफ़ बढ़ा-चढ़ाकर लिखने में माहिर हैं, अव्वल तो ऐसी खबर में सच्चाई कम ही लगती है, और यदि वाकई यह सच है तो यह एक प्रतिक्रियात्मक क्रिया है, और एक न एक दिन तो यह होना ही था… वैसे अभी इन संगठनों में सिमी, मुजाहिदीन या अल-कायदा जैसा दम नहीं है और होने की उम्मीद भी नहीं है, क्योंकि ये "हिन्दू" संगठन हैं…
शायदा ने कहा…
आंख बंद, दिमाग़ बंद, हमें कुछ नहीं मानना।
Unknown ने कहा…
पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है. जांच चल रही है. अगर दोषी पाये जाते हैं तो सजा मिलेगी. आतंकवाद का जवाब आतंकवाद नहीं हो सकता.

आपने कमेन्ट मोडरेशन क्यों लगाया हुआ है?
Dr Prabhat Tandon ने कहा…
धर्म , क्षेत्रवाद या प्रांतवाद की यह नयी परिभाषा कही भारत को गृह युद्द मे न ढकेल दे । काश धर्म से जुडे हर मतावलम्बियों को समझ आ जाये कि इस लोक मे कभी भी वैर से वैर शांत नहीं होता , बल्कि अवैर से शांत होता है । और वास्तव मे यही सच्चा सनातन धर्म है ।
admin ने कहा…
यह खबर लीक कैसे हो गयी?
इस तरह की खबरे तो दबा के रखी जाती हैं। क्या मैं गलत हूं?
nasir bhai aapne sahi kaha hai. hashimpura par likha aapka mazmoon qabile tareef hai.
पोस्ट तो खरा है। आजरच तो कमेंट पैदा करते हैं। कोई यह मानने को तैयार क्यों नहीं है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। एक साहब (सुरेश जी)तो हिंसा के खिलाफ हुई हिंसा को तर्कसंगत मान रहे हैं। अच्छा है कम से कम यह तो पता चल रहा है कि किसने सेक्यूलिरज्म को चोला ओढ़ रखा है।
मालेगांव और मोदासा बम विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उसके कुछ साथियों की संलिप्तता के बाद जो लोग इसे हिन्दू आतंकवाद कह रहे हैं, वह गलत कह रहे हैं। इस बात को बार-बार दोहराया जा चुका है कि आतंकवाद को धर्म से जोड़ना गलत ही नहीं, खतरनाक भी है। सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हुजी या लश्कर-ए-तोयबा के लोग न तो सभी मुसलमानों के नुमाइन्दा हैं और न ही संघ परिवार और उससे सम्बन्ध रखने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सभी हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती है। विडम्बना यह है कि जो लोग आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने का विरोध कर रहे थे, वही अब हिन्दू आतंकवाद की रट लगा रहे हैं। और जो आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ रहे थे, वे अब सफाई देने की मुद्रा में कह रहे हैं कि हिन्दुत्व में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। अपने गुलाम से भी बराबरी का सलूक करने की सीख देने वाला इस्लाम, दया और सहिष्णुता को प्राथमिकता देने वाला हिन्दुत्व आतंकवाद की पैरवी नहीं कर सकता। समस्या न तो इस्लाम है और न ही हिन्दुत्व। समस्या वे कट्टरपंथी हैं, जो अपनी दुकानदारी चलाने के लिए अपने-अपने धर्मों के कुछ लोगों को गुमराह करके बम धमाकों में मासूम और बेगुनाह लोगों की जान लेने के लिए उकसाते हैं।
संघ परिवार ने हिटलर के सहयोगी गोएबल्स की तर्ज पर इस्लामी आतंकवाद का प्रचार करके आतंकवाद को इस्लाम और मुसलमानों से जोड़कर जहरीला प्रचार किया। जब मुसलमानों और धर्मनिरपेक्ष लोगों की तरफ से यह कहा गया कि कुछ सिरफिरे लोगों की हरकत के लिए इस्लाम और देश के सभी मुसलमानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता तो शब्दों का मायाजाल बुनने में माहिर संघ परिवार ने यह कहना आरम्भ किया कि 'ठीक है सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सभी पकड़े गये आतंकवादी मुसलमान ही क्यो हैं ?÷ क्या संघ परिवार प्रज्ञा सिंह के पकड़े जाने के भी यही कहना जारी रख सकेगा ? क्या अब यह नहीं कहा जा सकता कि मालेगांव और मोदासा के बम धमाकों में लिप्त पाए गए सभी लोगों का सम्बन्ध संघ परिवार से ही क्यों है ? संघ परिवार अपनी स्थापना (१९२५) से ही किसी भी बहाने मुसलमानों और ईसाईयों को निशाना बनाता चला आ रहा है। उसने गुजरात नरसंहार को गोधरा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया तो कंधमाल में धर्मांतरण को मुद्दा बनाकर ईसाईयों के पीछे पड़ा हुआ है। संघ परिवार की हरकतों की आलोचना करने वालों को पूरा संघ परिवार एक स्वर में छदम धर्म निरपेक्षवादी प्रचारित करता है।
संघ परिवार की रोजी-रोटी मुसलमानों और ईसाईयों के अस्तित्व पर ही चलती है। दिल्ली से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया संगठनों ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफतारी के बाद सरकार को एक साल पहले दी गयी अपनी एक रिपोर्ट की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। रिपोर्ठ में खुलासा किया था कि देश में दस से अधिक ऐसे हिन्दु कट्टरपंथी संगठन चल रहे हैं, जिनके द्वारा संचालित स्वयंसेवी संस्थाओं को अमेरिका, कनाडा और अन्य यूरोपीय देशों से लोक कल्याण के नाम पर भारी आर्थिक मदद मिल रही है। लोक कल्याण और सेवा कार्यो के लिए प्राप्त किए गए इस धन का प्रयोग देश में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में गुजरात की तरह ही कर्नाटक और उड़ीसा में भी हिंसा होने की आशंका व्यक्त की गयी थी। ख्ुफिया संगठनों ने सरकार को यह रिपोर्ट एक साल पहले ही दे दी थी।
यह सही है कि देश में गुजरात हुआ। बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। और भी बहुत कुछ हुआ। इसके लिए देश के सभी हिन्दु जिम्मेदार नहीं हैं। न्याय नहीं मिला, यह भी सही है। सच यह भी है कि गुजरात मुद्दे पर हर्षमन्दर और तीस्ता तलवार जैसे हिन्दु संघ परिवार के सामने सीना तान के खड़े हो जाते हैं। सैकुलर मीडिया भी गुजरात नरसंहार पर मजलूमों के साथ खड़ा था। यही लोग मजलूम मुसलमानों की पैरवी करते रहे हैं। हर्षमंदर वो शख्स हैं, जिन्होंने गुजरात दंगों के विरोध में अहमदाबाद शहर के जिलाधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया था। याद करें, क्या कभी किसी मुस्लिम सांसद या विधायक ने बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों के विरोध में इस्तीफा दिया था ? सिमी, इंडियन मुजाहिदीन और लश्करे तोयबा जैसे संगठनों द्वारा किया गया प्रत्येक बम धमाका संघ परिवार को मजबूती प्रदान करता है तो संघ परिवार की कारगुजारियां सिमी जैसे संगठनों के कृत्यों को तर्क प्रदान करती हैं। दोनों को एक दूसरे का पूरक कहना सही होगा।
मालेगांव और मोदासा बम विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उसके कुछ साथियों की संलिप्तता के बाद जो लोग इसे हिन्दू आतंकवाद कह रहे हैं, वह गलत कह रहे हैं। इस बात को बार-बार दोहराया जा चुका है कि आतंकवाद को धर्म से जोड़ना गलत ही नहीं, खतरनाक भी है। सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हुजी या लश्कर-ए-तोयबा के लोग न तो सभी मुसलमानों के नुमाइन्दा हैं और न ही संघ परिवार और उससे सम्बन्ध रखने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सभी हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती है। विडम्बना यह है कि जो लोग आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने का विरोध कर रहे थे, वही अब हिन्दू आतंकवाद की रट लगा रहे हैं। और जो आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ रहे थे, वे अब सफाई देने की मुद्रा में कह रहे हैं कि हिन्दुत्व में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। अपने गुलाम से भी बराबरी का सलूक करने की सीख देने वाला इस्लाम, दया और सहिष्णुता को प्राथमिकता देने वाला हिन्दुत्व आतंकवाद की पैरवी नहीं कर सकता। समस्या न तो इस्लाम है और न ही हिन्दुत्व। समस्या वे कट्टरपंथी हैं, जो अपनी दुकानदारी चलाने के लिए अपने-अपने धर्मों के कुछ लोगों को गुमराह करके बम धमाकों में मासूम और बेगुनाह लोगों की जान लेने के लिए उकसाते हैं।
संघ परिवार ने हिटलर के सहयोगी गोएबल्स की तर्ज पर इस्लामी आतंकवाद का प्रचार करके आतंकवाद को इस्लाम और मुसलमानों से जोड़कर जहरीला प्रचार किया। जब मुसलमानों और धर्मनिरपेक्ष लोगों की तरफ से यह कहा गया कि कुछ सिरफिरे लोगों की हरकत के लिए इस्लाम और देश के सभी मुसलमानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता तो शब्दों का मायाजाल बुनने में माहिर संघ परिवार ने यह कहना आरम्भ किया कि 'ठीक है सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सभी पकड़े गये आतंकवादी मुसलमान ही क्यो हैं ?÷ क्या संघ परिवार प्रज्ञा सिंह के पकड़े जाने के भी यही कहना जारी रख सकेगा ? क्या अब यह नहीं कहा जा सकता कि मालेगांव और मोदासा के बम धमाकों में लिप्त पाए गए सभी लोगों का सम्बन्ध संघ परिवार से ही क्यों है ? संघ परिवार अपनी स्थापना (१९२५) से ही किसी भी बहाने मुसलमानों और ईसाईयों को निशाना बनाता चला आ रहा है। उसने गुजरात नरसंहार को गोधरा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया तो कंधमाल में धर्मांतरण को मुद्दा बनाकर ईसाईयों के पीछे पड़ा हुआ है। संघ परिवार की हरकतों की आलोचना करने वालों को पूरा संघ परिवार एक स्वर में छदम धर्म निरपेक्षवादी प्रचारित करता है।
संघ परिवार की रोजी-रोटी मुसलमानों और ईसाईयों के अस्तित्व पर ही चलती है। दिल्ली से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया संगठनों ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफतारी के बाद सरकार को एक साल पहले दी गयी अपनी एक रिपोर्ट की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। रिपोर्ठ में खुलासा किया था कि देश में दस से अधिक ऐसे हिन्दु कट्टरपंथी संगठन चल रहे हैं, जिनके द्वारा संचालित स्वयंसेवी संस्थाओं को अमेरिका, कनाडा और अन्य यूरोपीय देशों से लोक कल्याण के नाम पर भारी आर्थिक मदद मिल रही है। लोक कल्याण और सेवा कार्यो के लिए प्राप्त किए गए इस धन का प्रयोग देश में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में गुजरात की तरह ही कर्नाटक और उड़ीसा में भी हिंसा होने की आशंका व्यक्त की गयी थी। ख्ुफिया संगठनों ने सरकार को यह रिपोर्ट एक साल पहले ही दे दी थी।
यह सही है कि देश में गुजरात हुआ। बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। और भी बहुत कुछ हुआ। इसके लिए देश के सभी हिन्दु जिम्मेदार नहीं हैं। न्याय नहीं मिला, यह भी सही है। सच यह भी है कि गुजरात मुद्दे पर हर्षमन्दर और तीस्ता तलवार जैसे हिन्दु संघ परिवार के सामने सीना तान के खड़े हो जाते हैं। सैकुलर मीडिया भी गुजरात नरसंहार पर मजलूमों के साथ खड़ा था। यही लोग मजलूम मुसलमानों की पैरवी करते रहे हैं। हर्षमंदर वो शख्स हैं, जिन्होंने गुजरात दंगों के विरोध में अहमदाबाद शहर के जिलाधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया था। याद करें, क्या कभी किसी मुस्लिम सांसद या विधायक ने बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों के विरोध में इस्तीफा दिया था ? सिमी, इंडियन मुजाहिदीन और लश्करे तोयबा जैसे संगठनों द्वारा किया गया प्रत्येक बम धमाका संघ परिवार को मजबूती प्रदान करता है तो संघ परिवार की कारगुजारियां सिमी जैसे संगठनों के कृत्यों को तर्क प्रदान करती हैं। दोनों को एक दूसरे का पूरक कहना सही होगा।
मालेगांव और मोदासा बम विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उसके कुछ साथियों की संलिप्तता के बाद जो लोग इसे हिन्दू आतंकवाद कह रहे हैं, वह गलत कह रहे हैं। इस बात को बार-बार दोहराया जा चुका है कि आतंकवाद को धर्म से जोड़ना गलत ही नहीं, खतरनाक भी है। सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हुजी या लश्कर-ए-तोयबा के लोग न तो सभी मुसलमानों के नुमाइन्दा हैं और न ही संघ परिवार और उससे सम्बन्ध रखने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सभी हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती है। विडम्बना यह है कि जो लोग आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने का विरोध कर रहे थे, वही अब हिन्दू आतंकवाद की रट लगा रहे हैं। और जो आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ रहे थे, वे अब सफाई देने की मुद्रा में कह रहे हैं कि हिन्दुत्व में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। अपने गुलाम से भी बराबरी का सलूक करने की सीख देने वाला इस्लाम, दया और सहिष्णुता को प्राथमिकता देने वाला हिन्दुत्व आतंकवाद की पैरवी नहीं कर सकता। समस्या न तो इस्लाम है और न ही हिन्दुत्व। समस्या वे कट्टरपंथी हैं, जो अपनी दुकानदारी चलाने के लिए अपने-अपने धर्मों के कुछ लोगों को गुमराह करके बम धमाकों में मासूम और बेगुनाह लोगों की जान लेने के लिए उकसाते हैं।
संघ परिवार ने हिटलर के सहयोगी गोएबल्स की तर्ज पर इस्लामी आतंकवाद का प्रचार करके आतंकवाद को इस्लाम और मुसलमानों से जोड़कर जहरीला प्रचार किया। जब मुसलमानों और धर्मनिरपेक्ष लोगों की तरफ से यह कहा गया कि कुछ सिरफिरे लोगों की हरकत के लिए इस्लाम और देश के सभी मुसलमानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता तो शब्दों का मायाजाल बुनने में माहिर संघ परिवार ने यह कहना आरम्भ किया कि 'ठीक है सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सभी पकड़े गये आतंकवादी मुसलमान ही क्यो हैं ?÷ क्या संघ परिवार प्रज्ञा सिंह के पकड़े जाने के भी यही कहना जारी रख सकेगा ? क्या अब यह नहीं कहा जा सकता कि मालेगांव और मोदासा के बम धमाकों में लिप्त पाए गए सभी लोगों का सम्बन्ध संघ परिवार से ही क्यों है ? संघ परिवार अपनी स्थापना (१९२५) से ही किसी भी बहाने मुसलमानों और ईसाईयों को निशाना बनाता चला आ रहा है। उसने गुजरात नरसंहार को गोधरा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया तो कंधमाल में धर्मांतरण को मुद्दा बनाकर ईसाईयों के पीछे पड़ा हुआ है। संघ परिवार की हरकतों की आलोचना करने वालों को पूरा संघ परिवार एक स्वर में छदम धर्म निरपेक्षवादी प्रचारित करता है।
संघ परिवार की रोजी-रोटी मुसलमानों और ईसाईयों के अस्तित्व पर ही चलती है। दिल्ली से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया संगठनों ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफतारी के बाद सरकार को एक साल पहले दी गयी अपनी एक रिपोर्ट की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। रिपोर्ठ में खुलासा किया था कि देश में दस से अधिक ऐसे हिन्दु कट्टरपंथी संगठन चल रहे हैं, जिनके द्वारा संचालित स्वयंसेवी संस्थाओं को अमेरिका, कनाडा और अन्य यूरोपीय देशों से लोक कल्याण के नाम पर भारी आर्थिक मदद मिल रही है। लोक कल्याण और सेवा कार्यो के लिए प्राप्त किए गए इस धन का प्रयोग देश में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में गुजरात की तरह ही कर्नाटक और उड़ीसा में भी हिंसा होने की आशंका व्यक्त की गयी थी। ख्ुफिया संगठनों ने सरकार को यह रिपोर्ट एक साल पहले ही दे दी थी।
यह सही है कि देश में गुजरात हुआ। बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। और भी बहुत कुछ हुआ। इसके लिए देश के सभी हिन्दु जिम्मेदार नहीं हैं। न्याय नहीं मिला, यह भी सही है। सच यह भी है कि गुजरात मुद्दे पर हर्षमन्दर और तीस्ता तलवार जैसे हिन्दु संघ परिवार के सामने सीना तान के खड़े हो जाते हैं। सैकुलर मीडिया भी गुजरात नरसंहार पर मजलूमों के साथ खड़ा था। यही लोग मजलूम मुसलमानों की पैरवी करते रहे हैं। हर्षमंदर वो शख्स हैं, जिन्होंने गुजरात दंगों के विरोध में अहमदाबाद शहर के जिलाधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया था। याद करें, क्या कभी किसी मुस्लिम सांसद या विधायक ने बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों के विरोध में इस्तीफा दिया था ? सिमी, इंडियन मुजाहिदीन और लश्करे तोयबा जैसे संगठनों द्वारा किया गया प्रत्येक बम धमाका संघ परिवार को मजबूती प्रदान करता है तो संघ परिवार की कारगुजारियां सिमी जैसे संगठनों के कृत्यों को तर्क प्रदान करती हैं। दोनों को एक दूसरे का पूरक कहना सही होगा।
sandhyagupta ने कहा…
Aatankwaadiyon ka koi dharm nahin hota.Aatankwadi hindu ya musalmaan nahin hota keval aatankwaadi hota hai ye baat log kab samjhenge?

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