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जुलाई, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आंसू तो झूठ नहीं बोल सकते

श्रावस्ती के गांव धंधीडीह की औरतों की गुहार सुनने वाला कोई नहीं है। पांच दिन बीत गये हैं और सरकारी अमले के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। उनके जख्‍़म पर मरहम लगाना तो दूर उन्‍हें झूठा साबित करने की हर कोशिश की जा रही है। काफी हंगामे के बाद रविवार को पीडि़तों का बयान लेने अधिकारी गांव पहुँचे हैं। ताज़ा जानकारी के मुताबिक जब लड़का और लड़की अपनी मर्जी से शादी करने के लिए कहीं चले गये तो बिना किसी एफआईआर के पुलिस 20-25 मुसलमान लड़कों को गांव से उठा लाई। पुलिस ने उन युवकों के साथ क्‍या किया होगा, यह समझा जा सकता है। इस घटना के दूसरे ही दिन, गांव पर हमला होता है और पुलिस तमाशबीन बनी रहती है। आज भी रेंज के डीआईजी यही कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ है। स‍रकार के एक मं‍त्री और उसके समर्थकों के पक्ष में पुलिस की ऐसी लामबंदी, मायावती सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। श्रावस्‍ती से लौटकर आये स्‍टार न्‍यूज के संवाददाता रविकांत से जब मैंने पूछा कि डीआईजी तो बलात्‍कार से ही इनकार कर रहे हैं, तो उनका कहना था, 'मैं तीन दिन बाद घटना स्‍थल पर पहुँचा था। मुझे ढेर सारी औरतों ने घेर लिया। वे अपने

अपहरण नहीं हुआ, शादी की है

उत्‍तर प्रदेश के श्रावस्‍ती में एक अंतधार्मिक विवाह ने भयानक साम्‍प्रदायिक रूप ले लिया। स्‍टार न्‍यूज के संवाददाता रविकांत घटना की पड़ताल के लिए दो दिनों तक श्रावस्‍ती में रहे। शनिवार को उनकी रिपोर्ट में पहली बार उस जोड़े की आवाज़ भी सुनने को मिली, जिन्‍हें इस घटना की वजह माना जा रहा है। बकौल रविकांत, लड़की ने कहा कि वे एक दूसरे को पाँच साल से जानते हैं और उसका अपहरण नहीं हुआ है। उसने शादी कर ली है। यही नहीं उसने ज़ोर देकर कहा कि वह बालिग है और उ सकी उम्र 20 साल है। जब उसे यह बताया गया कि उन लोगों की वजह से ऐसा हादसा हुआ तो लड़की ने कहा कि यह घटना उसी के घरवालों ने करवायी है। उसने कहा कि इस घटना के बाद वह अपने घर नहीं जाना चाहती। उसे जान का ख़तरा है। दूसरी ओर , रविकांत के मुताबिक, लड़के ने बताया कि वे लोग जंगल में कहीं छिपे हैं और उनकी जान को खतरा है। लड़के ने मुख्‍यमंत्री मायावती से गुहार लगायी है कि बहन जी, उनकी जान की हिफाजत करें। पुलिस उनके पीछे पड़ी है। इन जोड़ों की गुहार ने फिर से उस पूरे तंत्र पर सवाल खड़ा कर दिया है जो तंत्र दो बालिग लड़के लड़की को अपनी मर्जी से, अपने जीवन

मुस्लिम औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार

क्या यह मुमकिन है कि एक नहीं दो नहीं... डेढ़ दर्जन गांव की औरतें बलात्कार की झूठी शिकायत लेकर आयें। मायावती राज की पुलिस ऐसा ही मानती हैं। उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में ऐसा ही हो रहा है। दो नौजवान प्रेमी जोड़े कहीं चले गये। इनमें लड़का मुसलमान है और लड़की हिन्दू। लड़की पक्ष वालों ने, जैसा आमतौर पर होता है, अपहरण की रिपोर्ट दर्ज़ करायी। फिर तीन दिन बाद यानी 11 जुलाई को लड़की के गांव वालों ने लड़के के गांव पर हमला कर दिया। यानी मर्जी़ से शादी करना, जैसे कोई गुनाह हो। यह हमलावर मायावती सरकार के एक दबंग मंत्री के समर्थक थे और बताया जा रहा है कि इनका नेतृत्व मंत्री का भाई कर रहा था।  सैकड़ों की तादाद में हमलावरों को गांव में जो भी मुसलमान मिला, उसकी जमकर पिटाई की। घरों को तोड़ डाला। आगजनी की। सामान लूट लिये। पर जो सबसे भयानक हुआ, वह था महिलाओं पर यौन हमला। करीब डेढ़ दर्जन (कुछ 14 तो कुछ19 बता रहे हैं) औरतों के साथ बलात्कार किया गया। कई औरतों को नंगे घुमाया गया। फरियाद लेकर पुलिस के पास पहुँचीं तो उनकी एफआईआर दर्ज़ नहीं की गयी। बड़े अफसरों के पास गुहार लगाया तो उन्होंने कहा कि ऐसी कोई घट

दुनिया को तुरंत ब‍तायें अपनी पोस्‍ट

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आपने पोस्‍ट लिखी मनन और जतन से और कोई उसे देख न पाये, तो कैसा लगता है। कई बार ऐसा भी होता है कि पोस्‍ट लिखने के घंटों बाद तक आपकी पोस्‍ट सार्वजनिक स्‍पेस यानी फीड एग्रीगेटर के ज़रिये नहीं दिखती। कई बार वक्‍त बीतने के साथ धड़कन भी बढ़ती जाती है। कई दोस्‍तों को तो अपनी पुरानी पोस्ट सिर्फ इसलिए दोबार पोस्‍ट करनी पड़ी है कि उनकी पोस्‍ट सार्वजनिक स्‍पेस में नहीं आ पायी। एक एग्रीगेटर के तकनीकी कर्ताधर्ता इस बात से बड़े परेशान भी हैं कि लोगों की पोस्‍ट सार्वजनिक स्‍पेस में नहीं आती तो ब्‍लॉगर ई मेल की झड़ी लगा देते हैं। अब इस झंझट से छुटकारा का दावा लेकर नया ब्‍लॉग एग्रीगेटर ब्‍लॉगवाणी आया है। ब्‍लागवाणी के मुताबिक, आप अपने ब्लाग पर इसका लिंक लगाकर अपनी प्रविष्टियां ब्लागवाणी पर तुरंत दिखा सकते हैं। यह काम चंद मिनटों का है। आप यहां जायें। यहां आपको संदेश मिलेगा कि अपने ब्‍लाग पर ब्‍लागवाणी का लिंक कैसे बनायें। आपको करना सिर्फ इतना है कि वहां मौजूद 'सबमिट' बटन के साथ दिये गये बॉक्‍स में अपने ब्‍लॉग का पता टाईप करें। जैसे http://www.dhaiakhar.blog.spot.com/ इसके बाद ब्‍लागवाणी खास आपके

पहचानिये, यही हैं हमलावर

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छह जुलाई को अहमदाबाद में अनहद द्वारा आयोजित छात्रों के महोत्‍सव में आये प्रोफेसर शिवजी पण्णिकर पर हमला और उसके बाद की गयी तोड़फोड़ की व्‍यापक निंदा हुई है। (हमले का आंखों का देखा हाल जानने के लिए यहां क्लिक करें।) हमले के बावजूद कार्यक्रम चलता रहा है और आज आठ जुलाई को सेंट जे़वियर सोशल सर्विस सोसायटी में इसका समापन समारोह है। इस बीच अभी तक पुलिस ने किसी भी हमलावर को गिरफ्तार नहीं किया है। हमलावरों की फोटो भी (घेरे में) , पुलिस को मुहैया करायी गयी है। ढाई आखर के पाठक भी देखना चाहेंगे, कि आखिर ये 'वीर राष्‍ट्रवादी' कौन हैं। तो आप इन तस्‍वीरों पर निगाह दौड़ाइये लेकिन ये हमले भी इनके हौसले पस्‍त नहीं कर पाये 'राष्‍ट्रवादियों' के हमले से डिगे बिना अनहद का छात्र महोत्‍सव चलता रहा। हमले के बाद शुरू हुए महोत्‍सव में प्रोफेसर शिवजी पण्णिकर और अनहद की शबनम हाशमी। चित्र में पीछे छात्रों द्वारों बनाये गये डिजायन देखे जा सकते हैं। अमन,कौमी भाईचारा और इंसाफ के लिए आयोजित राष्‍ट्रीय छात्र महोत्‍सव के निमंत्रण और विद्यार्थियों द्वारा बनाये डिजायन की एक झलक।

''राष्‍ट्रवादियों'' का देश के ''गद्दारों'' पर हमला।

चश्‍मदीद शबनम हाशमी ने बयान की अहमदाबाद में हमले की दास्‍तान छह जुलाई को गुजरात में संघ परिवार ने फिर हमलावर तेवर दिखाने की कोशिश की और राज्‍य का तंत्र मूक दर्शक बना देखता रहा। यह हमला 'अनहद' द्वारा नौजवानों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हुआ। अनहद ने छह से आठ जुलाई तक अहमदाबाद में अमन, कौमी भाईचारा और इंसाफ के लिए आयोजित राष्‍ट्रीय छात्र महोत्‍सव का आयोजन किया है। इस आयोजन में पूरे देश से चुने गये स्‍कूली बच्‍चों की 60 पेंटिंग, मीडिया के विद्यार्थियों की 80 डिजायन और 45 डाक्‍यूमेंट्री फिल्‍म का प्रदर्शन हो रहा है। सेंट जेवियर सोशल सर्विस सोसायटी के फादर एरविती मेमोरियल हाल में प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रोफेसर शिवजी पण्णिकर को करना था। जबकि सेंट जेवियर हाई स्‍कूल कैम्‍पस के लोयला हॉल के डायमंड जुबली ऑडिटोरियम में स्‍टूडेंट वीडियो डाक्‍यूमेंट्री फिल्‍म महोत्‍सव का उद्घाटन नफीसा अली को करना था। करीब पौने ग्‍यारह बजे जैसे ही प्रोफेसर पण्णिकर जेवियर कैम्‍पस की गेट तक पहुंचे, उनकी कार को एक भीड़ ने घेर लिया। वे पण्णिकर के खिलाफ नारे लगा रहे थे... पण्णिकर वापस जाओ... भारत माता की

एक कवि का गुजरात वियोग

मेरी पोस्ट एक 'गुजराती' की तलाश के बाद कई दोस्तों की राय थी कि वली गुजराती/दक्खिनी की कुछ रचनाओं को भी ढाई आखर पर पेश करना चाहिए था। उनके सुझाव पर वली की कुछ रचनाएँ आपके सामने पेश हैं। जिन कठिन अल्फ़ाज़ के मायने मिले, उन्हें ब्रैकेट में दिया गया है। वली की जिंदगी में दिल्ली जाना एक अहम घटना है। लेकिन दिल्ली जाना, उन जगहों से बिछुड़ना भी था, जिनसे वली बेपनाह मुहब्बत करते थे। तभी तो गुजरात छूटने की तकलीफ एक पूरी नज्म़ के रूप में सामने आयी। मज़ार ढहाते वक्त गुजरात गौरव का ठेका लेने वालों को वली की गुजराती की इस बेपनाह मुहब्बत का भी खयाल नहीं आया! (1) गुजरात वियोग गुजरातके फिराके सों है खा़र-खा़र दिल। बेताब है सूनेमन आतिलबहार दिल।। ( फिराक: वियोग, खा़र-खा़र : काँटा-काँटा, बेताब: अधीर, सूनेमन: शून्य, आतिलबहार: आग बरसता) मरहम नहीं है इसके जखम़का जहाँमने। शम्शेरे-हिज्र सों जो हुआ है फिगा़र दिल।। ( शम्शेरे-हिज्र: वियोग के खड्ग, फिगा़र: घायल) अव्वल सों था ज़ईफ़ यह पाबस्ता सोज़ में। ज्यों बात है अग्निके उपर बेकरार दिल।। ( ज़ईफ़: निर्बल, पाबस्ता: पादनिगड़ित, सोज़: जलन) इस सैरके नशे

फिराक़ ए गुजरात

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एक "गुजराती" की तलाश पर अपनी टिप्पणी के रूप में एक दोस्त ने आकार पटेल की एक पोस्ट भेजी है। इस पोस्ट की अहमियत को देखते हुए मैं इसे ढाई आखर के पाठकों के लिए टिप्पणी की जगह से निकाल कर एक पोस्ट के रूप में दे रहा हूं। उम्मीद है ज़बान यानी हिन्दी अंग्रेजी का मसला नहीं उठेगा। Dead Poet's Society Dar Firaaq-e-Gujarat (On Parting From Gujarat, by Wali Muhammad Wali. Translated by the author Aakar Patel ) "Parting from Gujarat leaves thorns in my chest My h eart -- on fire! -- pounds impatiently in my breast What cure can heal the wound of living apart? The scimitar of exile has cut deep into my heart My feet were bound, and in sorrow I did tire My heart singed rapidly, like a hair over fire At first, this heady stroll left my mind fertile with rumination In the end, this separation pulled my heart into intoxication Gaze into my heart and see the garden of the lover Where the flowers of winter r

कोई बताये फोटो कैसे गायब हो गये

दोस्तो कल 02 जुलाई को मैंने 12 फोटो के साथ एक "गुजराती" की तलाश एक पोस्ट डाली थी। आज सुबह तक उस पोस्ट की सभी फोटो दिख रही थी। दोपहर बाद एकाएक दो फोटो को छोड़कर सारी फोटो गायब हो गयीं। मुझे लगा मेरे ब्राउज़र में कुछ प्राब्लम होगी। रात में फिर फोटो नहीं दिखीं। मैंने ब्राउज़र बदला, वहां भी यही हाल था। तभी मेरे एक दोस्त ने बताया कि उन्हें भी फोटो नहीं दिख रही है। फिर मैंने दोबारा सारी फोटो अपलोड की। तकनीक के माहिर दोस्तो से मेरी गुज़ारिश है कि कृपया यह बताने का कष्ट करे कि आखिर यह कैसे हुआ? क्या सम्भावित वजह हो सकती है? क्या सावधानी बरतनी चाहिए कि आगे किसी पाठक को इस परेशानी से दोचार न होना पड़े? जवाब का इंतजार रहेगा। नासिरूद़दीन

एक "गुजराती" की तलाश

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यह अहमदाबाद की एक सड़क है। तेज फ़र्राटा वाली सड़क। बगल से गुज़रती रेल लाइन। पास में ही एक अंडर ब्रिज जिसमें महात्मा गांधी के जीवन की कई तस्वीर मिल जाती है। यह अहमदाबाद का शाही बाग़ का इलाका है। सामने लम्बी ऊंची इमारत। जहां रहते हैं शहर के ऊंचे लोग। जो बालकनी से शहर को देखते हैं, तो सब कुछ बौना नज़र आता है। आदमी से लेकर कार तक। इसी सड़क के ठीक सामने अहमदाबाद का पुलिस मुख्यालय है। गुजराती में इसके बोर्ड को पढ़ा जा सकता है। यहां पुलिस कमिशनर का दफ्तर है। पर मैं आपको यह सब क्यों बता रहा हूं। सड़क, इमारतें, पुलिस मुख्यालय, कमिश्नर... क्योंकि मुझे तलाश है एक 'गुजराती' की। जिसके बारे में अवामी शायर मख़्दूम मोहिउद्दीन ने कभी कहा था: यक़ी बख़्शा जुबां को जिसने पहले उसके जीने का वह पहला "नाखुदा" हिन्दुस्तानी के सफ़ीने का दिये रौशन किये मन्दिर में काबे के चिराग़ों से हज़ारों जन्नतें आबाद कर दीं दिल के दागों से वह मिरासे जहां वह ख़ुल्द का पैगाम आता है दकन की सर ज़मीं पर ज़िन्दगी का जाम आता है उसे बाबा-ए-उर्दू का नाम दिया गया। यानी उर्दू का पितामह। गांधी जी ने जिस हिन्दुस्तानी की