''राष्‍ट्रवादियों'' का देश के ''गद्दारों'' पर हमला।

चश्‍मदीद शबनम हाशमी ने बयान की अहमदाबाद में हमले की दास्‍तान
छह जुलाई को गुजरात में संघ परिवार ने फिर हमलावर तेवर दिखाने की कोशिश की और राज्‍य का तंत्र मूक दर्शक बना देखता रहा। यह हमला 'अनहद' द्वारा नौजवानों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हुआ। अनहद ने छह से आठ जुलाई तक अहमदाबाद में अमन, कौमी भाईचारा और इंसाफ के लिए आयोजित राष्‍ट्रीय छात्र महोत्‍सव का आयोजन किया है। इस आयोजन में पूरे देश से चुने गये स्‍कूली बच्‍चों की 60 पेंटिंग, मीडिया के विद्यार्थियों की 80 डिजायन और 45 डाक्‍यूमेंट्री फिल्‍म का प्रदर्शन हो रहा है।

सेंट जेवियर सोशल सर्विस सोसायटी के फादर एरविती मेमोरियल हाल में प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रोफेसर शिवजी पण्णिकर को करना था। जबकि सेंट जेवियर हाई स्‍कूल कैम्‍पस के लोयला हॉल के डायमंड जुबली ऑडिटोरियम में स्‍टूडेंट वीडियो डाक्‍यूमेंट्री फिल्‍म महोत्‍सव का उद्घाटन नफीसा अली को करना था। करीब पौने ग्‍यारह बजे जैसे ही प्रोफेसर पण्णिकर जेवियर कैम्‍पस की गेट तक पहुंचे, उनकी कार को एक भीड़ ने घेर लिया। वे पण्णिकर के खिलाफ नारे लगा रहे थे... पण्णिकर वापस जाओ... भारत माता की जय...

बकौल, कार्यक्रम की आयोजक और अनहद की कर्ताधर्ता शबनम हाशमी, ' मैं किसी तरह भीड़ में घुसी और पण्णिकर की कार तक पहुँचने में कामयाब हो गयी। भीड़ से हमारी ओर लगातार पत्‍थरबाजी हो रही थी। उनमें से एक ने लोहे का ड्रम उठाकर कार की बोनेट पर दे मारा। उसी ड्रम को दोबारा फिर किसी ने फेंका‍, जिससे कार का अगला शीशा चकनाचूर हो गया। इसी बीच नौजवान फोटोग्राफर साहिर वहां पहुँचा और किसी तरह ड्रम उनसे छीनने में कामयाब रहा लेकिन इस जद्दोजहद वह खुद जख्‍़मी हो गया। दो हमलावरों ने दो ईंटें फेंकी, जो शीशे को तोड़ता हुआ ड्राइवर की पेशानी से जा टकराया। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मुझे समझने में कुछ मिनट लग गये। मैं दरवाजे़ के पास खड़ी हो गयी ताकि ये हमलावर पण्णिकर को अपने साथ ले जाने में कामयाब न हो पायें। इसके बाद मैं काफी जोर से चिल्‍लाने लगी। कुछ क्षण के लिए वे भी ठिठक गये। इस बीच मैंने पण्णिकर और ड्राईवर को वहां से तेज़ी से निकलने को कहा। मैंने उन्‍हें सलाह दी कि तुरंत किसी नज़दीक के पुल‍िस स्‍टेशन जायें।'

तब तक इन हमलावरों को आभास हुआ कि ये लोग निकल रहे हैं। उन्‍होंने रास्‍ता रोकने की कोशिश की, पथराव किये पर तब तक कार तेज़ी से निकल गयी। इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ता गगन सेठी और वैज्ञानिक-फिल्‍मकार गौहर रज़ा, जो उसी परिसर में मौजूद थे, पण्णिकर की मदद के लिए नवरंगपुरा थाने की ओर गये।

इसी बीच वहां मौजूद ये हमलावर, बाहर लगी होर्डिंग और दूसरी चीज़ों की तोड़ फोड़ में जुट चुके थे। उन्‍होंने परिसर के अंदर जबरदस्‍ती घुसने की कोशिश की। वे गुजराती में नारे लगा रहे थे... मोदी अमर रहे... देश के गद्दारों वापस जाओ... भारत माता की जय... उन्‍होंने परिसर में लगी सभी डिस्‍पले तोड़ डाले। जब इन्‍हें रोकने की कोशिश हुई तो इन्‍होंने शबनम हाशमी, स्‍वरूप बेन, जकिया जौहर, बिना बेन को धमकाया।

बकौल शबनम, 'ये लोग भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे थे, अश्‍लील इशारे कर रहे थे और जुमले उछाल रहे थे। उनकी शारीरिक मुद्रा काफी आक्रामक और अश्‍लील थी।' ये लोग जहां स्‍वरूप बेन, जकिया और बिना बेन को 'गद्दार' के तमगे़ से नवाज़ रहे थे, वहीं शबनम के खिलाफ इनका इलज़ाम था कि एक बाहरी, गुजराती अस्मिता से खिलवाड़ कर रही है। यह सब करीब 20 मिनट तक चलता रहा। इसी बीच इनमें से एक शख्‍स ने इन गुंडों को इशारा किया कि पुलिस आ रही है और वे सभी वहां से खिसक लिये। शबनम ने इशारे करने वाले शख्‍़स की पहचान स्‍था‍नीय खुफिया पुलिस कर्मचारी के रूप में की। यानी पुलिस की मिलीभगत और जानकारी में सब कुछ हुआ।

शबनम ने बताया '...पुलिस पहुँची तो मैंने पाया कि पुलिस वालों के साथ सादी वर्दी में खड़ा शख्‍स, वही है, जिसने इशारा करके हमलावरों को भागने को कहा था। मैं पुलिस वालों के पास गयी और बताया कि यह शख्‍स तो हमलावारों के साथ था, तो पहले उन्‍होंने मेरी बात को नज़रंदाज़ किया। फिर कहा... नहीं... यह तो पुलिस का आदमी है। बाद में थाने में भी मैंने उस शख्‍स की पहचान की और इंस्‍पेक्‍टर को बताया भी, लेकिन उसने भी इस बात पर कोई तवज्‍जो नहीं दी। यहां तक कि पुलिस कमिशनर ने भी इस बात को अनुसनी कर दी। यानी यह हमला पुलिस, भाजपा और संघ परिवार का साझा ऑपरेशन था।'

करीब एक बजे पण्णिकर की एफआईआर दर्ज़ हुई। शबनम ने भी अपनी ओर से एक एफआईआर दर्ज़ कराना चाहा लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। इस बीच देर से ही सही कार्यक्रम शुरू हुआ। शाम पाँच बजे, अनहद के साथी, दूसरे संगठनों के कार्यकर्ता और वकील एफआईआर दर्ज़ कराने फिर थाने पहुँचे। ये लोग अपने साथ घटना की तस्‍वीरें, हमलावरों की तस्‍वीरें भी साथ लेकर गये थे। लेकिन पुलिस ने रात नौ बजे त‍क इन्‍हें बैठाये रखा पर एफआईआर दर्ज़ नहीं की। क्‍योंकि अगर एफआईआर दर्ज़ होती तो पुलिस को उन हमलावरों को गिरफ्तार करना पड़ता जिनकी पहचान अनहद ने फोटो देकर करने की कोशिश की थी। यह हमला एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है‍ कि गुजरात में लोकतंत्र, कौमी भाईचारा और शांति की बात करना आज भी कितना मुश्किल है।

टिप्पणियाँ

मसिजीवी ने कहा…
नसीर भाई,
ये सब लिखकर जानकारी देने का शुक्रिया।
इन 'गद्दारों' को चैन भी तो नहीं- जब देखो अनाप शनाप काम करते रहते हैं- पुलिस संसाधनों को बेजा इस्‍तेमाल और बरबादी करवाते हैं- अब ये सब पेंटिंग, फिल्‍म विल्‍म का चक्‍कर न चलाते आप लोग तो कितने राष्‍ट्रभकत व पुलिसवाले खाली हो जाते और राज्‍य की सफाई व तरक्‍की पर ध्‍यान लगाते।
इन राष्‍ट्रभक्‍तों की ट्रेनिंग भी ठीक नहीं हो पा रही है- इसी तरह गद्दार हाथ से जिंदा निकलते रहे तब तो बन लिया देश महान।

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