कुछ कहना चाहती है बिलकीस (Bilkis has something to say)

इंसाफ के लिए जद्दोजहद का नया चेहरा है बिलकीस बानो (Bilkis Bano)। सन् 2002 में हुए जनसंहार के दौरान बिलकीस बानो और उनकी महिला परिवारीजनों के साथ सामूहिक दुराचार हुआ और फिर उनकी हत्‍या कर दी गई। इस घटना में बिलकीस किसी तरह बच गई। उसने इंसाफ के लिए जद्दोजहद किया और कामयाब हुई। (खबर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। इसके बाद बिलकीस ने कुछ कहने का मन बनाय। तो पढि़ए बिलकीस की संघर्ष गाथा, बिलकीस की जुबानी-

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मैं सच साबित हुई

आज मैं सच साबित हुई हूँ. मेरे सच की सुनवाई कर ली गई है.मुम्बई की एक अदालत में बीस रोज़ तक मुझसे जिरह की जाती रही लेकिन मेरे सच की ताकत ने मुझे सहारा दिए रखा. शुक्रवार १८ जनवरी , २००८ को मुम्बई के सेशंस जज ने जो फैसला सुनाया उसने उस लम्बे और दर्दनाक सफर को किसी हद तक एक मंजिल तक पहुँचाया है  जिस पर मुझे और मेरे परिवारवालों को चलने पर मजबूर कर दिया गया था. यह भी सच है कि कई घाव कभी भी नहीं भरेंगे लेकिन आज मैं पहले के मुताबिक कहीं अधिक ताकत महसूस कर रही हूँ और इसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ.

इस जीत का बड़ा हिस्सा उन दोस्तों और साथियों का है जो इस दौरान मेरे साथ बने रहे, जब मैं लड़खडाई और लगा कि और नहीं चल सकूंगी तो जिन्होंने मुझे थामा . आज इन दोस्तों में से कई मेरे साथ हैं पर कई मौजूद नहीं हैं. इस पूरे दौर में मेरे शौहर याकूब का संग लगातार बना रहा है. मेरा साथ देने की वजह से मेरे परिवारवालों और रिश्तेदारों को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया. आज यहाँ मैं उनकी हिम्मत की बदौलत खड़ी हूँ . उन्होंने मेरे हक में तब गवाही देने का फैसला किया जब ऐसा करना उनके लिए खतरनाक था.इस जीत का श्रेय राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग को भी है जिसने मुझ पर यकीन किया , वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को है जिन्होंने इन्साफ की मेरी गुहार को उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों तक पहुँचाया और यह तय करवाया कि सी बी आई इस मामले की तहकीकात करे. उनकी वजह से ही इस मुक़दमे को मुम्बई की अदालत तक लाया जा सका. सबसे आखिरी बात यह कि यह मुकदमा इस नतीजे तक नहीं पहुंचता अगर सी बी आई ने नए सिरे से ईमानदारी के साथ जांच पड़ताल न की होती. सी बी आई के विशेष अभियोजक ने झूठ की परतों को उधेड़ते हुए सच को -उस पर से राजकीय संस्थाओं की लीपापोती को साफ कर बाहर निकाला.मैं इनमें से हरेक की शुक्रगुजार हूँ. मुझ जैसा सफर अकेले नहीं तय किया सकता.

पिछले छः साल मैंने खौफ के साए में बिताए हैं, एक पनाहगाह से दूसरी पनाहगाह तक भागती फिरी हूँ , अपने बच्चों को अपने साथ लिए लिए उस नफरत से बचाने के लिए जो अभी भी मुझे पता है कई लोगों के दिलोदिमाग में पैबस्त है. इस फैसले का मतलब नफरत का खात्मा नहीं है.लेकिन इससे यह भरोसा जागता है कि कहीं किसी तरह इन्साफ की जीत हो सकती है. यह फैसला सिर्फ़ मेरी नहीं उन सभी बेगुनाह मुसलमानों की जीत है जिनका कत्ल कर दिया गया और उन सभी औरतों की भी जिनकी देह इसलिए रौंद डाली गई कि मेरी तरह वे भी मुसलमान थीं. यह जीत है क्योंकि अब इसके बाद कोई भी उन चीजों से इनकार नहीं कर सकेगा जो गुजरात मं २००२ के उन खौफनाक दिनों में औरतों के साथ हुई थीं . क्योंकि अब हमेशा के लिए गुजरात के इतिहास में यह बात दर्ज कर दी गई है की हमारे ख़िलाफ़ यौन हिंसा के हथियार का इस्तेमाल किया गया था. मैं यह मनाती हूँ कि ऐसा एक दिन आएगा कि गुजरात के लोगों के लिये उस नफ़रत और हिंसा के दाग के साथ जीना मुश्किल हो जायेगा और वे उस राज्य की जमीन से उसे उखाड़ फेंकेंगे जो अभी भी मेरा वतन है.  

आज लेकिन मैं ग़मगीन भी हूँ क्योकि मेरा तो सिर्फ़ एक मामला था उन हजारों के बीच जो अदालत की दहलीज तक भी नहीं पहुँच सके हैं. और हालांकि मैं यहाँ जीत कर खड़ी हूँ पर मैं पुरजोर ढंग से यह कहना चाहती हूँ कि इन्साफ की राह इतनी लम्बी और यंत्रणा भरी नहीं होनी चाहिए. मैं क्षुब्ध भी हूँ क्योंकि राज्य और उसके अधिकारी अभी भी बेदाग और आजाद हैं जिन्होंने उन मुजरिमों की पीठ ठोंकी , उनकी हिम्मत बढ़ाई और उन्हें बचाया जिन्होनें मेरे पूरे समुदाय को तबाहोबर्बार्द कर दिया जबकि उनका काम दरअसल हमारी हिफाजत करना था. आज मैंने जो लड़ाई जीती है वह मुझे और बड़ी और शायद कहीं और लम्बी जद्दोजहद के लिए ताकत देती है जो अभी आगे मेरे सामने है.

टिप्पणियाँ

अफ़लातून ने कहा…
शीर्षक में अंग्रेजी रखनी ही हो तो have को has कर लें। नरोरा पाटिया के मुसलमान भाजपा को वोट देने में खैरीयत क्यों समझते हैं ?
ढाईआखर ने कहा…
अफलातून जी शुक्रिया। नरोदा पाटिया के मुसलमानों ने किसे वोट दिया, मुझे नहीं मालूम। हाँ अगर आप थोड़ी तफसील देते तो जानकारी में इजाफा होता। हां, मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि इसे ही 'सबजुगेशन' कहते हैं जो किसी खास विचारधारा के 'हेजेमॅनी' से पैदा होती है। वैसे मुझे पूरा यकीन है कि आप इन चीजों को मुझसे बेहतर समझते हैं।
ghughutibasuti ने कहा…
बिलकीस की जीत भारत की जीत भी है । यदि इसी तरह लोगों को न्याय मिलता रहे तो भारत सच में गर्व से सिर ऊँचाकर कह सकता है कि यहाँ हर एक पीड़ित की पुकार सुनी जाती है , चाहे वह किसी भी तबके का हो या समुदाय का । बस आवश्यकता है तो हर बिलकीस को इतनी सहायता की कि वह अपने साथ हुए अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठा सके और यह आवाज वह यहाँ वहाँ छिपकर नहीं निडर होकर उठा सके ।
घुघूती बासूती
यह टिप्पणी कल भेजी थी । शायद पहुँची नहीं , सो दोबारा भेज रही हूँ ।
ढाईआखर ने कहा…
घुघूती जी शुक्रिया। कल आपकी टिप्‍पणी मिली नहीं थी।

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