चक दे मुस्लिम इंडिया

रवी कुमार किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। खबरिया चैनलों और पत्रकारों की भीड़ में जहां उनका खास मुकाम है वहीं हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में वो अलग पहचान रखते हैं। ... उन्हें खास बनाती है, उनकी दृष्टि। समाज, समाज में रह रहे लोगों और वहां हो रही घटनाओं को देखने की ताकत। फिर चाहे वो फिल्म ही क्यों न हो। फिल्म का समाजशास्त्रीय विश्लेषण कम होता है। बुधवार के 'हिन्दुस्तान' में रवीश की 'चक दे इण्डिया...' के बहाने से लिखी एक टिप्पणी छपी है। फिल्म के बहाने समाज की पड़ताल। रवीश की इजाज़त और 'हिन्दुस्तान' से आभार के साथ यह टिप्पणी ढाई आखर के पाठकों के लिए पेश है। उम्मीद है, आपको पसंद आयेगी।


नाम- सेंटर फार्वर्ड का बेहतरीन खिलाड़ी कबीर खान।
पद- कोच, भारतीय महिला हॉकी टीम।
मजहब- मुसलमान।
चक दे इंडिया के मुख्य किरदार की तीन पहचान सामने आती हैं। शुरुआत में ही फिल्म एक सवाल को उठा लेती है। पाकिस्तान से हार का कारण कबीर खान का मुसलमान होना। उसके घर की दीवार पर लिख दिया जाता है- गद्दार। चक दे इंडिया की कहानी क्या है? हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी की हार के पश्चाताप से निकलने की छटपटाहट या एक सच्चा मुसलमान साबित करने की जिद। आस्ट्रेलिया की टीम को हराकर कबीर खान ने साबित क्या किया। यही कि वो गद्दार मुसलमान नहीं था।

सवाल और जवाब के बीच फिल्म की कहानी कुछ और भी है। जिंदगी के खेल के बीच खेल की कहानी। फिल्म की खूबी के साथ राज्यों को लेकर बनाई गई धारणाओं और औरतों की शक्लो सूरत की बनी बनाई तस्वीर को तोड़ा है। महिला खिलाड़ी अनिवार्य रूप से सुंदर नहीं हैं। वो मोटी हैं, छोटी हें, लंबी हैं, आवारा और सुंदर भी। वे अपनी सामाजिक राजनीतिक पृष्ठभूमि से लड़ती हैं। क्रिकेट के स्टार की मंगेतर अपने वजूद के लिए लड़ती है। हरियाणा की लड़की अपने समाज के बीच लड़की के खिलाड़ी होने देने के लिए खेल रही है। विद्या अपने ससुर और पति की ज्यादतियों के खिलाफ साबित करने के लिए खेल रही है।

मगर कबीर खान। वह भी तो राजनीतिक सामाजिक सोच के खिलाफ लड़ रहा है। सच्चा खिलाड़ी सच्चा देशभक्त ही हो सकता है। हार का मजहब से क्या लेना देना। उसकी जगह कोई मंगल पांडेय खेल रहा होता तब भी क्या देश से गद्दारी के सवाल उठते? हमारी एक बड़ी राजनैतिक धारा मुसलमान से सबूत मांगती आई है। सरफरोश फिल्म में आमिर खान के एसएसपी राठौर किरदार का एक सहयोगी किरदार है। वो मुसलमान था। बहुत काबिल। लेकिन हमेशा इस तंज से लड़ता रहता है कि उसे मुसलमान होने के कारण देशभक्ति की अलग से परीक्षा देनी पड़ती है। फिर भी फर्ज निभाता है।

वह एसएसपी राठौड़ से जिरह करता है कि क्या सिर्फ मुसलमान होने की वजह से आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में शामिल नहीं किया गया? सरफरोश के सहायक किरदार की बेचैनी चक दे इंडिया के मुख्य किरदार की बेचैनी बनती है। आजादी के साठ साल पहले की पृष्ठभूमि पर एक फिल्म आई थी गर्म हवा। सलीम मिर्जा और सिकंदर की कहानी। सलीम मिर्जा को भी गद्दार कहा जाता है। जासूस कहा जाता है। बेटे सिकंदर को नौकरी नहीं मिलती। मुसलमान होने के कारण। तीस साल बाद आई सरफरोश फिल्म में एक मुसलमान को नौकरी तो मिलती है। मगर उसे भी अपने भरोसे का इम्तहान देना पड़ता है। उन सवालों से टकराना पड़ता है जो मुसलमानों को लेकर गैर मुसलमानों में है। अब कबीर खान का किरदार आपके सामने है।

आजाद भारत में रहने का फैसला करने वाले मुसलमानों को नौकरी तो मिलने लगी है मगर देशभक्ति का इम्तिहान शायद अलग से अभी भी देना पड़ता है। उनकी हर मांग तुष्टिकरण के चश्मे से देखी जाती है। जरूरत के लिहाज से नहीं। जवाब फिल्म के पास नहीं है। फिल्म ने तो आईना दिखा दिया है। गर्म हवा के सलीम मिर्जा और चक दे इंडिया के कबीर खान में एक समानता है। दोनों का हिंदुस्तान से विश्वास नहीं उठता। सलीम मिर्जा का हिंदुस्तान कबीर का इंडिया बन जाता है। मगर सवाल तो वही हैं न। इंडिया में भी यह संघर्ष जारी है। सलीम और कबीर का संघर्ष। इसी बारह अगस्त की एक दोपहर दिल्ली के मयूर विहार में अपने लिए किराए का मकान ढूंढने गया था। प्रोपर्टी डीलर ने कहा मुसलमानों को किराए का मकान नहीं देते। सलीम मिर्जा को भी मकान नहीं मिलता है।

कबीर खान को भी घर छोड़ना पड़ता है। आजादी की साठवीं सालगिरह पर आई यह फिल्म 'चक दे इंडिया' मुसलमानों के प्रति अविश्वास को नए सिरे से उठा देती है। लोगों की धारणाओं को खरोंच देती है। ग्लासगो धमाके के संदर्भ में हनीफ के पकड़े जाने को लेकर पूरे समुदाय के संदर्भ में ही बहस होने लगी थी। क्या मुसलमानों की पढ़ी लिखी पीढ़ी भी आतंकवाद की तरफ जा रही है? ऐसे सवालों और समाजों के बीच यह फिल्म हिम्मत के साथ अपनी बात कहती है। फिल्म में कबीर आज के मुसलमान जैसा है। धीरे-धीरे वोट बैंक के बक्से से निकलता हुआ और अपना वजूद ढूंढता हुआ। मगर एक टीम तो रह ही जाती है। आखिर कबीर खान को साबित क्यों करना पड़ा कि वह एक सच्चा मुसलमान है। देशभक्त है। और बेहतरीन खिलाड़ी भी। फिल्म में समाज और राजनीति है तो फिल्में भी समाज और राजनीति से स्वतंत्र स्पेस में नहीं बनतीं।

टिप्पणियाँ

अनुनाद सिंह ने कहा…
दूध से जली बिल्ली, मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीती है। जो लोग इतिहास को भूल जाते हैं, उन्हें इतिहास को दोहराने का अभिशाप झेलना पड़ता है।
Sanjeet Tripathi ने कहा…
बहुत सही बहुत सही!!
जो चीज मानसिकता में रच बस गई है उसे कैसे बदलें।
अभय तिवारी ने कहा…
दुख होता है आप जैसे साथियों पर.. हम लोग आदमी हैं या बिल्ली? ऐसी बातें करते आप लोग को शर्म भी नहीं आती..? मिट्टी पत्थर भी बदल जाते हैं.. और आप रो रहे हैं कि कैसे बदलें?!.. इतिहास पहले ठीक से पढ़ने की समझ पैदा की जाय अपने समाज में फिर उसे भूलने और दोहराने की बात सोची जाय। बहुत ज़्यादा भूतकाल को सर पर उठाने से वर्तमान का कुछ भी रस लेने से वंचित हो जाता है आदमी..सोचने समझने वाले, आज में जीने वाले आदमी बनने का अभ्यास किया जाय..
debashish ने कहा…
मगर एक "टीस" तो रह ही जाती है।

बढ़िया लेख! मुझे ये फिल्म ज़रूर देखनी है। एक उद्देश्यपूर्ण फिल्म चुनने के लिये शाहरुख भी बधाई के पात्र हैं।
हिन्‍दू समाज आजादी मिलने के जोश में अपने का बदलने में कामयाब रहा , बहुत से पुरानी प्रथाये आसानी से बदल दी गई । लेकिन भारतीय मुस्लिम समाज अभी तक अपने को किसी ऐसे जोश खुशी से महरूम महसूस करने के कारण बदल नहीं पाया ।
KA ने कहा…
Vivad ki jagah samwad karni ka request bilkul badhiya hai aur koshish ki jaayegi

Kabir Khan ko lekar film banana asaan hai kyonki aakal kafi fashionable sa ho gaya hai secular dikhna including Ravish jee. Kyonki usme kaafi nam bhi, paisa bhi hai aur safety bhi hai. Magra himmat to hum tab maane jab Ravish apne Denmark ke patrakar bhai jin pe attack hota hai ya Tasleema Nasrin pe dessh ke mantrigan physical attack karte hain. Magar aisa karna financially and materially rewarding nahin hai Ravish ke liye wo safe topic chunte hai ..

Aakhir Kyon ? Dar hai ya Naukri bachane ki fikra ya lalach. Vajah to unhe hi pata hoga but dekhne walo ko to unke lense mein daag aur kalam ki syahi mein milawat dikhega
Unknown ने कहा…
lekin sawal yeh uthata hai ki is mansikta ka karan kya hai . Yeh nahi hai is mansikta ko main sahi tehra raha hoon parantu aaj ! jo jehaad ke naam par kuch sirfiro ne hatiyaar utha ,masoom ke jane lene ki than li hai, aur le bhi rahe unme se kitne muslaman hai aur kitne hindu ?

Yeh puri tarah sach hai ki "pachoon ungliyaan ek barabar nahi hoti" lekin fir "gehoon ke saath ghoon bhi pista hai"...
रज़िया "राज़" ने कहा…
हाँ। हम बहुत ही नज़दीक से जानते है उस 'रविश कुमार' को जो जिसकी आवाज़ ही में सच्चाई है।चाहे कोई भी ख़बर हो वो ख़बर की गहराइ तक जाकर पथ्थर के दिलों को भी तोडने कि कोशीश में लगे रहते है। मैं उनका बडा आदर करती हुं।जिस पोग्राम के सुत्रधार 'रविश कुमार' है ,पुरा घर उन्हें सुनने-देखने बैठ जाता है।
हाल ही में हुए गुजरात हादसों का कवरेज बडी ही गहराइ-सच्चाइ के साथ करने के लिये अभिनंदन।एक और सचाइ आपके सामने लाना चाहुंगी, आप ज़रूर इसे अपने ब्लोग में शामिल करें।
मैं पढ़कर क्या करुंगा?

“नहिं माँ मुझे अब पाठशाला नहिं जाना है।“किशोर ने कहा। ”पर क्यों? क्यों
नहिं जाना? ऐसी तो क्या बात हो गइ, जो तू पाठशाला जाने से मना कर
रहा है? क्या तुझे कोइ परेशान करता है? बता दे मैं या तेरे पिताजी मास्तर
साहब को बोलेंगे। माँ परेशान होते हुए बोली। ”नहिं माँ मुझे कोइ भी
परेशान नहिं करता। पर अब मैं पाठशाला नहिं जाउंगा बस। कहे देता हूं”।
”बेटा तुझे नया बस्ता ले दूंगी। नइ साइकल ले दूंगी। नये कपड़े ले दूंगी “
अब बता जायेगा न?” ” ना माँ ना किसी भी लालच में मैं आने वाला नहिं हूं।
मेरा इरादा पक्का है”। ”अजी सुनते हो? देखो ! ये कैसी ज़ीद पर अड़ा है? आप
भी तो कुछ कहो!” ”ये कैसी ज़ीद है तुम्हारी? पढाइ में मन नहिं लगता क्या?
मजदूरी करेगा?”पिता ने ग़ुस्से में आकर
कहा। ”मुझे ना तो नया बस्ता चाहिये, ना तो नइ साइकल नातो नये कपड़े” माँ-
पिताजी आप ही बताइये मैं पढ़कर क्या करुंगा? किसी न किसी मौड़ पर मुझे
मार दीया जायेगा। चाहे पाठशाला में, चाहे बाजार में, चाहे ऑफिस में, कोइ
आतंकवादी आते हैं और सब को मार कर चले जाते हैं। माँ कौन हैं ये
आतंकवादी? क्या ये दुनिया के नहिं है? हम उनका सामना नहिं कर सकते? जवाब
दो माँ ! वरना... आप ही बताइये मैं पढ़कर क्या करुंगा?”


यह सच्चाई है गुजरात के हादसों की।
ज़रूर प्रकाशित करें।
रज़िया मिर्ज़ा
गुजरात।
उमेश कुमार ने कहा…
यह भी एक नजीर है।
छत्तीसगढ राज्य का बिलासपुर शहर जहां एक दिन अचानक अफ़वाह फ़ैली की ईदगाह की दिवाल को ढहा दिया गया तथा कब्र मे बुलडोजर चला दिया गया।इस अफ़वाह को सही मान मुसलमान धर्मावलम्बी उद्देलित हो उठे और समाज के लोग एक स्थान पर इसका बिरोध करने के लिए इकठ्ठे होने लगे। अफ़वाह को हवा देने वाले या कहिए की समाज के अगुआ बनने वाले दो मुस्लिम ब्यक्ति इसकी रणनीति तय कर रहे थे।इसमे स्थानीय नगर निगम का एक पूर्व पार्षद एवं बिकास प्राधिकरण का अध्यक्ष तथा दूसरा वर्तमान पार्षद था। इनकी कोई रणनीति जब तक परवान चढती तब तक इसी समाज का एक जागरूक ब्यक्ति सामने आ चुका था।वह ब्यक्ति थे स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक मिर्जा शौकत बेग जो एक प्रखर पत्रकार माने जाते है। उन्होने अपने सान्ध्य दैनिक मे इस पर एक विस्तृत समाचार प्रकाशित किया और सच्चाई सामने रखी। उन्होने लिखा की ईदगाह का सौंदर्यीकरण किया जा रहा था जिसके कारण दिवाल ढह गई थी और इसे जानबूझ कर नही ढहाया गया। जिन लोगो द्वारा विरोध किया जा रहा है वे मुस्लिम समाज के हितचिन्तक कभी भी नही रहे हैं जिम्मेदार पद पर रहने के वाबजूद कभी भी समाज के कल्याण के लिए कोई भी कार्य नही किया केवल कांग्रेस के मंत्रियो और नेताओ को मजारो मे घुमाते रहे तथा अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते रहे है। समाचार मे लिखा गया की जिस क्षेत्र मे ईदगाह है उस क्षेत्र मे प्रेस क्लब तथा अन्य रिहायसी मकान भी है जहां अनजानी कब्रो का अस्तित्व नई बात नही है ।पूरे क्षेत्र मे बेतरतीब पाय जाने वाले अनजानी कब्रो की सुध कभी भी नही ली गई फ़िर ईदगाह के उस कब्र के लिय हाय तौबा क्यों। इस समाचार ने अफ़वाह को हवा देने वालो की हवा ही खोल दी तथा शहर को अशान्त होने से बचाया।लोग सच्चाई जान कर वहकावे मे नही आए और ईदगाह के विकास के लिये स्थानीय प्रशासन को धन्यवाद दिया। स्थानीय पुलिस भी दबाव मे आकर ठेकेदार के खिलाफ़ शिकायत दर्ज कर ली थी अब उसके खिलाफ़ किसी तरह की कार्यवाही न करने की सहमति बन चुकी है।
Ravi ने कहा…
You are correct that here in India, Indian Muslims have to give a proof of their nationality, but for this the Indian muslims are self responsible. They have not opted this land as their motherland. Still thier Motherland is Pakistan. There are several simple reasons for which any hindu will see doubtly to any mushlim.
1. When Pakistan Wins any cricket Game, Indian Muslims goes happy and use crackers.

2. When there is a tense situation at border between India and Pak, Indian Muslims abuses Indian Army.

3. There are several places in India where these Indian Muslims are in majority, like a place in Mumbai, Kashmir, Where our Nation Flag is set to fire.

Therefore, Indian Muslims needs to change their way of thinking, They should think that India is their mother land. At the time of partition, It was India who gave them shelter when they ran from Pakistan.

Indian mushlims should think that how great India is where a Indian Mushlim can be the President of this nation. In Pakistan, a Hindu can not even think of this.

Indian has given them lots of facilities, so they should have regard this nation in their heart.
बेनामी ने कहा…
RAVISH JI NE, CHAK DE INDIA MOVIE K PARIPREKSHYA ME ,EK VIVADASPAD VISHAY KI TARKIK PARTAL KARNE KI KOSHISH KI HAI,APNE IS PRAYASH ME WO SAFAL BHI HUE HAIN,AAPNE CHAK DE INDIA MOVIE ME UTHAYE ANYA VISHAYON KI OR BHI DHYAN AAKRISHT KIYA HAI.
gaurav vidrohi ने कहा…
ravish ji ne jo kuch likha hai wo to sahi hai bhandhu....
par abhi pichle dino jokuch mere sath hua wo nischit
Unknown ने कहा…
swaal hindu yaa musalmaan ka hai hi nahi, hindustaan mein har safal shakhs chaahe hindu ho ya koi aur dhrmavlambi, ko sir aankho par bhaithaya hi jaata hai. kisi kshetra mein bhedbhav nahi hai chaahe prashasnik, khel, raajneeti, vigyan, ya koi aur. haan kisi apriya ghatna ka response ajeeb ho sakta hai. jahan tak sawal hai muslim ko ghar naa dene ka, yeh kuchh logo ki vyaktigat soch ho sakti hai. kisi muslmaan ko deshbhakti saabit karne ki zaroorat nahi hai. raveesh ji,filmein(aajkal ki) matra kamai ka zariya hain samaaj ka aaina nahi.
Unknown ने कहा…
Ravish you are the future of N.D. tv and your reports are very convincing and this issue is more large and complicated than writing a report or making the movies by SRK.Whenever you are going to debate the basic question will haunt Pahele murghi ya anda.In your report you have said that now muslims are getting the job but i think you forget the sachhar committee report.
above to dream ने कहा…
kya khoob likha hai ravish ji, aur es vishay par likhna koi aasan aur safe nahi hai, himmat chahiye likhne ke liye, deshdrohi, hinsa karne wale, aatankawad phailane wale ka koi dharma nahi hota bus unka swarth hota hai. kya seema par baithe sare sainik emandar hai, kya dharma ke name par dange karne wale deshpremi hai, mandiro masjido mai paise ka kya gholmal kiya jata hai agar uske bare mai nahi maloom to sabse badi bevkoofi hai. phir kyon ek visesh dharm walo ko hi "target" kiya jta hai. aur eljam lagane wale jinhe kuch pata bhi nahi hota, kisi se kuch suna aur bol diya. ye desh har us ensan hai jo desh mai paida hua, jo es desh ke samvidhan ko manta hai. nahit to bhootkal ke chakkar mai hum apna bavishya bhi kharab kar lenge.
विकास शर्मा ने कहा…
रवीश जी नमस्कार .. आपने जो बाते कही वो ठीक हैं और अनुनाद जी की यह बात भी की दूध से जली बिल्ली, मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीती है। जो लोग इतिहास को भूल जाते हैं, उन्हें इतिहास को दोहराने का अभिशाप झेलना पड़ता है। और वैसे भी सोच बदल रही है यह आप भी देख रहे हैं ... तभी तो एपीजे कलाम जैसे व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर नियुक्त किया जाता है ... और इससे पहले भी जाकिर हुसैन राष्ट्रपति रह चुके है.. .. सोच को बदलने में समय लगता है और समय के साथ सोच बदल रही है,, इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता..
Naya Bharat ने कहा…
Ravish ji hum jaante hai ki hum is hindustaani hamesha ghulaam rahe hain kabhi raza ke kabhi mughalon ke kabhi angrezoon ke aur ab neta+officer+media+corporate walon ke hume to kabhi bhi azaadi nahi rahe the humne aapse facebook pe msg likh ke sawaal poocha tha ki kya kuch badal paayega aur aapne uska zawaab diya tha wo mujhe bhi samajh nai aaya shaayad is dikhaawe ke lok trant me hume azaadi hai to sirf policewaloon ke laat khaane ki beizzat hone ki aur media walon ke jhoothe propoganda video ki jo ki desh walon ko gumraah kar rahe hai aur unki maansikta badal rahe hai desh kidhar jaa raha hai ispar kabhi baat nahi hote aap log is zimmedari se nahi bach sakte agar aap samjhate hai ki aap log accha kaam kar rahe hain to aap galat hai ki aapka kaam hai sacchai dikhana par jis tarah se sacchai ko modify kiya jaa raha hai aap log politicians se kam corrupt nahi ho mere bharat mata ko lootne me aap bhi bhaagidaar ho.
Please be genuine to urself
Unknown ने कहा…
रविश जी मैंने आपका ब्लॉग पढ़ा .
बहुत अच्छा लगा की आप जैसा कोई तो है की जो सोचता है वही लिखता भी है नही तो आज बहुत से लोग है जो लिखते तो है पैर वो अंदर से कुछ और ही सोचते हैं .
मैंने आप का ब्लॉग ढाई अक्खर पढ़ा
और सोचा की कमेन्ट करूं पर पर मै डर रहा था
उसमे आप ने बताया की आज मुसलमान आदमी को भारत में अपने आप को सच्चा मुस्लमान साबित करना पड़ता है चालिया मैं मानता हूँ की उन्हें अपने आप को साबित करना पड़ता हैं पर उन्हें क्योँ साबित करना पड़ता हैं . उसका कारन मसलमान न होकर उनकी इच्छा परवर्ती जादा जिम्मेदार होती हैं .
१-भारत कुछ जगह आज भी भारत व पाक मैच में पाक जितने पर खुसी जताई जाती हैं .हम भी खुस होता हूँ पैर भारत क खिलाफ खेलने पैर नही .
२- कुछ साल पहले अमेरिका ट्विन्स TAWER गिरने के बाद एक मोबाइल अस ऍम अस लिखा गया था .जिसमे जिक्र था की ये घटना पवित्र PUSTAK में बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी. इतने लोग मारे गय और KUCH LOG ISKO सही बता रहे हैं
३- रविश जी आप को कुछ लोगो को ओसामा बिन लादेन को अच्छा इन्शान बताते हुए आसानी से मिल जायेंगे

बस और कुछ नही लिखना चाहूँगा मै भी डरता हूँ की कही किसी को बुरा न लगे
पर मेरे मनं में आज भी एक सवाल उठता हैं की धनंजई चटर्जी को मौत की सजा दी गई तो अफजल गुरु को क्योऊ नहीं दी गई .और उसको माफ़ किया जाना भी मेरे मन में
आज तक एक सवाल बना हुआ हैं.

रविश जी सबसे लास्ट लाइन का जवाब आशा है की आप जरूर बताएँगे .
Minhaz ने कहा…
प्रिय मित्र ! बहुत ही अफसोस है मुझे उस हिन्दुस्तानी पर जो अपने आपको मज़हब से जोरता है!
Unknown ने कहा…
But Ravish ji still conditions of Muslims in India is very good and they are no more in minority. Their population is more than 18 crores but please write about poor conditions of Hindu in Pakistan. In 1947 Hindu population was 15% in Pakistan but now it is less than 2%. Hindu women and girls are converted into Islam and they brutally murdered after rape. Please Ravish right a column about Hindus, I know that you will never write a word because you want to remain secular and massacre of Hindu is not a topic of discussion for Indian Media except I am thankful to Mr. M.J.Akbar who has courage to make it a cover story on this issue(INDIA TODAY 9th may2012).

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