ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन
जन्माष्टमी की चारों ओर धूम है और सूफी शायारों में श्री कृष्ण की काफी धूम रही है। नजीर अकबराबदी (पूरा नाम वली मुहम्मद नज़ीर ) ने श्री कृष्ण पर कई रचनाएँ लिखीं हैं। काफी लम्बी और काफी रोचक। नज़ीर ने ये नज़्म करीब पौने दो सौ साल पहले लिखी थीं। इस जन्माष्टमी पर उनकी कई रचनाओं में से दो के कुछ अंश आपके सामने पेश है। अगर आपको पसंद आया तो बाकि पोस्ट की भी हिम्मत करूँगा। जन्माष्टमी के मुबारक मौके पर ये कलाम उन दोस्तों की नजर, जो साझी संस्कृति-विरासत और परम्परा को अपवाद बनाने में लगे हैं। इस दुआ के साथ की उनकी कोशिश कभी कामयाब न हो। (1) जनम कन्हैया जी ............................................. फिर आया वाँ एक वक़्त ऐसा जो आए गर्भ में मनमोहन। गोपाल, मनोहर, मुरलीधर, श्रीकिशन, किशोर न, कंवल नयन।। घनश्याम, मुरारी, बनवारी, गिरधारी, सुन्दर श्याम बरन। प्रभुनाथ बिहारी कान्ह लला, सुखदाई, जग के दु:ख भंजन।। जब साअत परगट की, वाँ आई मुकुट धरैया की। अब आगे बात जनम की है, जै बोले किश्न कन्हैया की।। 11 ।। था नेक महीला भादों का, और दिन बुध, गिनती आठन की। फिर आ...