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... तो पशु-पक्षियों से कुछ सीखते क्‍यों नहीं

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घुघूती बासूती ने एक अच्‍छी जानकारी वाली पोस्‍ट लिखी है,  सौराष्ट्र के किसान पक्षियों के लिए ज्वार बोते हैं, फलों के वृक्षों पर फल छोड़ते हैं।  यह पोस्‍ट ऐसे वक्‍त में आई जब चारों ओर पर्यावरण को बचाने, जीव जंतुओं की हिफाजत की चिंता की जा रही है। यह पोस्‍ट इस मायने में अहम है। यह पोस्‍ट वास्‍तव में प्रेरणा देने वाली है।  दूसरो कामों में लगे होने की वजह से मैं आजकल ब्‍लॉग की दुनिया में कम ही विचरता हूँ। लेकिन घुघूती जी की इस पोस्‍ट पर आई एक- दो टिप्पिणी देखकर लगा कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में अब भी बहुत कुछ नहीं बदला है। कुछ लोग पहले की ही तरह आज भी लगातार उकसाने में लगे हैं। हालाँकि पहले वे जबरदस्‍त मुँह की खा चुके हैं। उकसाने का उनका अंदाज आज भी वही पुराना है। पशु- पक्षियों पर टिप्‍पणी करते-करते वे गुजरात और गुजराती अस्मिता को बीच में घसीट लाए। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि इनकी मंशा क्‍या थी। मैंने घुघूती जी की इस पोस्‍ट पर जो टिप्‍पणी की है, वो यहाँ पेश कर रहा हूँ। घुघूती जी की पोस्‍ट पर ऐसी टिप्‍पणी कर कुछ लोग चूँकि उकसाने पर आ ही गए हैं तो मेरे भ...

एक लड़की की शादी

नासिरूद्दीन जहन में एक बात हमेशा कौंधती है, क्‍या लड़की की जिंदगी का सारा सफर शादी पर ही खत्‍म होता है। मैं अक्‍सर सोचता हूँ कि दसवीं, बारहवीं में जो लड़कियाँ हर इम्‍तेहान में लड़कों से बाजी मारती रहती हैं, कुछ दिनों बाद ऊँची तालीम, नौकरी और जिंदगी के दूसरे क्षेत्रों में क्‍यों नहीं दिखाई देतीं? कहाँ गायब हो जाती हैं? लड़की पैदा हुई नहीं कि शादी की चिंता। उसके लिए एफडी की फिक्र। उसके नैन-नक्‍श, दांत की बुनावट, पढ़ाई-लिखाई, काम-काज की चिंता भी शादी के लिए ही? यही नहीं शादी को लेकर जितनी कल्‍पनाएँ लड़कियों की झोली में डाल दी जाती हैं, वह उनके पूरी दिमागी बुनावट पर असर डालता है। फिर वह भी इसी में झूलती रहती हैं। पढ़ो इसलिए कि अच्‍छा वर मिले। हँसो ठीक से ताकि ससुराल में जग हँसाई न हो। चलो ऐसे कि ‘चाल चलन’ पर कोई उँगली न उठे। चेहरा-मोहरा इसलिए सँवारो ताकि देखने वाला तुरंत पसंद कर ले। यह सब भी इसलिए ताकि ‘सुंदर- सुशील- घरेलू’ के खाँचे में फिट हो सके। क्‍या माँ-बाप कभी किसी लड़के को ताउम्र शादी की ऐसी तैयारी कराते हैं। क्‍या कभी किसी लड़के से शादी की ऐसी तैयारी की उम्‍मीद की जाती है। क्‍...