द ग्रेट डिक्टेक्टर और चार्ली चैप्लिन

चार्ली चैप्लिन की मशहूर फिल्म है 'द ग्रेट डिक्टेक्टर'। पूरी फिल्म की आत्मा इसके आखिरी अंश में बसती है। चार्ली द ग्रेट डिक्टेटर के जरिये हिटलर के सम्मोहनकारी छवि के पीछे छि‍पी क्रूरता को दुनिया के सामने लाना चाहते थे। उन्होंने फिल्म में दो किरदार- तानाशाह हिटलर और एक आम यहूदी की भूमिका निभायी है। यह फिल्म नफ़रत की राजनीति, तानाशाही प्रवृत्तियों और जंग के पैरोकारों के खिलाफ एक मज़बूत आवाज़ है। इस दृश्य में दिया गया भाषण आम जन की आवाज़ है। ऐसा नहीं है कि यह प्रवृत्तियां, हिटलर जैसी सोच वाले लोग आज मौजूद नहीं हैं। इसीलिए यह फिल्म और उसका यह भाषण बार-बार देखना, सुनना और पढ़ना जरूरी है ताकि हम इंसानियत को खत्म करने वाली ताकतों को पहचान सकें।

अभी भारत ज्ञान विज्ञान समिति (बीजीवीएस) से जुड़े हमारे दोस्त विनोद कुमार जन वाचन अभियान के लिए यानी आम लोगों के लिए विभिन्न स्रोतों से
चार्ली चैप्लिन की जीवनी संकलित कर रहे हैं। बातचीत के दौरान इस भाषण का जिक्र आया तो हमने ढाई आखर के लिए इसका हिन्दी रूपान्तर उनसे साभार ले‍ लिया। आप सिर्फ सुनें और देखें नहीं बल्कि पढ़ें भी 'द ग्रेट डिक्टेटर' का यह अहम अंश-


मुझे माफ कीजियेगा, मैं कोई सम्राट नहीं बनना चाहता। यह मेरा काम नहीं है। मैं किसी पर शासन करना या किसी को जीतना नहीं चाहता। मै हर किसी की सहायता करना चाहता हूँ...हर संभव-यहूदी, जेंटाइल, काले सफेद; सबकी। हम सब एक-दूसरे की सहायता करना चाहते हैं। आदमी ऐसा ही होता है। हम एक दूसरे की खुशियों के सहारे जीना चाहते हैं; दुखों के नहीं। हम आपस में नफ़रत और अपमान नहीं चाहते। इस दुनिया में हर किसी के लिए जगह है। यह प्यारी पृथ्वी पर्याप्त संपन्न है और हर किसी को दे सकती है।

जिंदगी का रास्ता आज़ाद और खूबसूरत हो सकता है, पर हम वह रास्ता भटक गए हैं। लोभ ने मनुष्य की आत्मा को विषैला कर दिया है...दुनिया को नफरत की बाड़ से घेर दिया है...हमें तेज कदमों से पीड़ा और खून खराबे के बीच झटक दिया गया है। हमने गति का विकास कर लिया है, लेकिन खुद को बंद कर लिया है। इफरात पैदा करने वाली मशीनों ने हमें अनंत इच्छाओं के समंदर में गिरा दिया है। हमारे ज्ञान ने हमें सनकी, आत्महंता बना दिया है; हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम। हम सोचते बहुत ज्यादा और महसूस बहुत कम करते हैं। मशीनों से ज्यादा हमें जरूरत है इंसानियत की, चतुराई से ज्यादा हमें जरूरत है दया और सज्जनता की। इन गुणों के बिना जिंदगी खूंखार हो जायेगी और सब कुछ खो जाएगा।

हवाई जहाज और रेडियो ने हमें और करीब ला दिया है। इन चीजों का मूल स्वभाव मनुष्य में अच्छाई लाने के लिए चीख रहा है...सार्वभौमिक बंधुत्व के लिए चीख...हम सबकी एकता के लिए। यहां तक कि इस वक्त मेरी आवाज दुनिया के दसियों लाख लोगों तक पहुंच रही है...दसियों लाख हताश पुरूषों, स्त्रियों और छोटे बच्चों तक...एक ऐसी व्यवस्था के शिकार लोगों तक जो आदमी को, निरपराध मासूम लोगों को कैद करने और यातना देने का सबक पढ़ाती है। जो लोग मुझे सुन रहे हैं, मैं उनसे कहूंगा, निराश मत हों। पीड़ा का यह दौर जो गुजर रहा है, लोभ की यात्रा है...उस आदमी की कडुआहट है, जो मानवीय उन्नति से घबराता है। इंसान की नफ़रतें खत्म हो जाएंगी और तानाशाह मर जाएंगे; और जिस सत्ता को उन्होंने जनता से छीना है, वह सत्ता जनता को मिल जायेगी और जब तक लोग मरते रहेंगे, आजादी पुख्ता नहीं हो पायेगी।

सैनिकों, अपने आप को इन धोखेबाजों के हवाले मत करो, जो तुम्हारा अपमान करते हैं...जो तुम्हें गुलाम बनाते हैं...जो तुम्हारी जिंदगी को संचालित करते हैं... तुम्हें बताते हैं कि क्या करना है, क्या सोचना है और क्या महसूस करना है! जो तुम्हारी कवायद करवाते हैं, तुम्हें खिलाते हैं...जानवरों सा व्यवहार करते हैं और अपनी तोपों का चारा बनाते हैं, खुद को इन अप्राकृतिक लोगों के हवाले मत करो... मशीनी दिमाग और मशीनी दिलों वाले मशीनी आदमियों के। तुम लोग इंसान हो, तुम्हारे दिलों में इंसानियत है घृणा मत करो, करनी ही है, तो बिना प्रेम वाली नफरत से करो...बिना प्रेम की, अनैसर्गिक!

सैनिकों! गुलामी के लिए मत लड़ो, आजादी के लिए लड़ो, सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में लिखा है कि ईश्वर का राज्य आदमी के भीतर होता है...किसी एक आदमी या किसी एक समुदाय के आदमी के भीतर नहीं, बल्कि हर आदमी के भीतर! तुममें...आप सब लोगो...जनता के पास ताकत है इस जिंदगी को आजाद और खूबसूरत बनाने की, इस दुनिया को एक अदभुत साहस में तब्दील करने की, तो लोकतंत्र के नाम पर हम उस ताकत का इस्तेमाल करें...आओ हम सब एक हो जाएं, हम एक नई दुनिया के लिए संघर्ष करें, एक ऐसी सभ्य दुनिया जो हर आदमी को काम करने का मौका दे...तरूणों को भविष्य और बुजुर्गों को सुरक्षा दे।

इन्हीं चीजों का वादा करके इन धोखेबाजों ने सत्ता हथिया ली, लेकिन वे झूठे हैं वे अपना वादा पूरा नहीं करते, वे कभी नहीं करेंगे, तानाशाह खुद को आजाद कर लेते हैं, लेकिन जनता को गुलाम बना देते हैं, हम दुनिया को आजाद करने की लड़ाई लड़ें...राष्ट्रीय बाड़ों को हटा देने की, लोभ, नफरत व असहिष्णुता को उखाड़ फेंकने की लड़ाई! एक ऐसी दुनिया के लिए लड़ें, जहां विज्ञान और उन्नति हम सबके लिए खुशियां लेकर आए, सैनिको, लोकतंत्र के नाम पर हम सब एक हो जाएं।

हाना, क्या तुम मुझे सुन सकती हो? तुम जहां कहीं भी हो, देखो यहां! देखो यहां, हाना! ये बादल छंट रहे हैं, पौ फट रही है, हम अंधेरे से निकल कर उजाले में आ रहे हैं, हम एक नई दुनिया में आ रहे हैं...एक ज्यादा रहमदिल दुनिया में.. जहां आदमी अपने लालच, घृणा और नृशंसता से ऊपर उठेगा, देखो हाना, मनुष्य की आत्मा को पंख मिल गए हैं और अंततः उसने उड़ने की शुरूआत कर दी है, वह इन्द्रधनुष में उड़ रहा है...उम्मीदों की रोशनी में...देखो हाना! देखो!

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