मुल्क और मुसलमानों से जुड़े चंद सवाल

कई दोस्त इसे पढ़ने के बाद मुझे कई खांचों में फिट करने की कोशिश करेंगे। मैं यह ख़तरा मोल लेते हुए, यह सब लिख रहा हूँ।

हर बड़े विस्फोट या आतंकी कार्रवाई के बाद ज्यादातर एक ही तरह की बात रक्षा विशेषज्ञों, मीडिया चैनलों के जरिये सुनने को मिलती है। और हममें से ज्यादातर उसी को आखिरी सच मान कर जीते रहते हैं। पर मेरे ज़हन में इस 'सच' को अंतिम मानने से पहले कई सवाल हैं। उन सवालों को आपसे बांट रहा हूँ-

ऐसा क्यूँ होता है कि हर बार आतंकी कार्रवाई की पुख्ता सूचना होने के बावजूद, सुरक्षा एजेंसियां उसे रोक नहीं पातीं
यह कैसे होता है कि विस्फोट होने के चंद मिनट बाद ही सुरक्षा एजेंसियों को संगठनों के नाम, पते, अंजाम देने वालों का पूरा बायोडाटा... उनके रिश्ते पता चल जाते हैं
ऐसा क्यूँ होता है कि इस देश में होने वाली सभी आतंकी कार्रवाई को तुरंत इस्लामिक आतंकवाद का नाम दे दिया जाता है। ... और किसी धर्म के साथ तो ऐसा नहीं होता...
पर ऐसा क्यूँ होता है कि घटना के चंद मिनटों बाद ही सभी अहम जानकारी पा लेने वाले महीनों बीत जाने के बाद भी न तो मालेगांव, न समझौता एक्सप्रेस और न ही मुम्बई ट्रेन विस्फोट में अपनी तफ्तीश को किसी नतीज़े पर पहुंचा पाते हैं। हां, इस बीच में इतना जरूर होता है कि कई दर्जन नौजवान जेल में बिना किसी मुकदमे के सड़ते रहते हैं।
थोड़ी देर के लिए मान लिया जाये कि यह किसी ऐसे संगठन का काम है, जो इस्लाम का नाम लेता है। ... तब सवाल यह है कि वे हैदराबाद, बनारस, मालेगांव में धमाका क्यों करते हैं और ऐसा करके क्या हासिल करना चाहते हैं
कश्मीर के उग्रवादी, कश्मीर को आज़ाद कराना चाहते हैं। इसलिए धमाके करते हैं। क्या ये हैदराबाद या मालेगांव को आज़ाद कराना चाहते हैं
जब कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था, तब भी ये कथित इस्लामिक संगठन थे। इन्होंने उस वक्त क्यों नहीं पूरे देश में ऐसे विस्फोट किये। अब ऐसा क्या हो गया... जो वे ऐसा कर पा रहे हैं
आतंकी संगठन अल- कायदा, जैश ए मोहम्मद या इस तरह के और संगठन- इस तरह का काम करेंगे और बिना नाम के... क्यों। आतंकी संगठन का तो फायदा इसी में हैं कि लोग इनके नाम से डरे। ये न तो कानून को मानने वाले हैं और न ही कोई पंजीकृत संस्था... ये फिर इन घटनाओं की जिम्मेदारी लेने से क्यों डरते हैं
ऐसा क्यों होता है कि विस्फोट के बाद ऐसे लोग ही गिरफ्त में लिये जाते हैं जो एक खास धर्म को मानने वाले होते हैं
ऐसा क्यों होता है कि हर घटना के बाद मुस्लिम संगठनों से उम्मीद की जाती है कि वे ही सबसे पहले निंदा करें। पिछली कुछ घटनाओं के बाद, मुस्लिम नामधारी संगठन, उलमा ऐसे धमाकों की निंदा करने में सबसे आगे रह रहे हैं। हिन्दू नामधारी धार्मिक संगठनों ( हिन्दुत्व वाले नहीं), शंकराचार्यों और गुरुवरों से ऐसी उम्मीद क्यों नहीं की जाती और न ही वे ऐसा करते हैं।
कहीं मुसलमान डर के साये में तो नहीं जी रहा है। इसलिए तुरंत निंदा प्रस्ताव लेकर आगे आ रहा है।
ऐसा क्यूँ है कि किसी भी जांच के नतीजे़ या गिरफ्तारी पर मुसलमान सहज यकीन नहीं कर पाता। राज्य के प्रति यह अविश्वास क्यों
नांदेड़ और मालेगांव में हमले की तफ्तीश करने वाले स्वतंत्र जांच दल ने कुछ और संगठनों की ओर इशारा किया है... जांच एजेंसियां उन पर शिकंजा क्यूँ नहीं कसतीं। आरएसस मुख्यालय पर हमले का सच भी सामने आ चुका है। फिर इन सबको किस बिना पर छोड़ा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में कथित रूप से एक भाजपा नेता की हत्या का बदला लेने के लिए जो बम बन रहा था, वो बम अचानक फट गया। और उसने पूरे घर को उड़ा दिया। ... प्रतापगढ़ में प्रेशर कूकर में बम बनाते हुए फट गया...। यानी बम बनाना कोई मुश्किल काम नहीं रहा गया है और न ही किसी खास समुदाय की जागीर। ... इसी काम में अगर कोई मुस्लिम नौजवान शामिल होता तो क्या होता...
हम में से कितनों को देवबंद, जमायते उलमा ए हिन्द, तब्लीगी जमात, जमायते इस्लामी, सिमी, जमात अहले हदीस के बारे में पता है
हममें से कितनों ने उन नौजवानों के बारे में जानने की कोशिश की है जो सिर्फ इसलिए पकड़े गये कि वे अरबी जानते हैं, वे तब्लीग में हिस्सा लेते हैं, उन्होंने मदरसे में पढ़ाई की, वे मज़हबी मामलों में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे थे... वे नाम से एक खास मज़हब वाले लगते हैं
अगर किसी खास मज़हब के कुछ नौजवान आतंकी कार्रवाइयों में शामिल हैं तो आखिर इस देश में ऐसा क्या हो गया, जो उन्हें ऐसा करने के लिए उकसा रहा है... महज़ पैसा तो यह नहीं करा सकता... आज से पंद़्रह बीस साल पहले ऐसा क्यों नहीं मुमकिन हो पाया... जिस वक्त पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था

हिंसा को किसी भी सूरत में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। हां, अगर वाकई में विस्फोटों के गुनाहगारों को पकड़ना है तो इसकी जांच भी उतनी ही निष्पक्ष और सही होनी चाहिए। आरोप प्रत्यारोप से काम नहीं चलेगा। इससे भी काम नहीं चलेगा कि किसी खास समुदाय या मज़हब को शक के दायरे में रख दिया जाये। एक पूरे समुदाय को अपराध बोध की भावना से ग्रसित कर दिया जाये। ... यह न तो उस समुदाय के हित में है और न ही उस देश के हित में... सबसे बढ़ कर इस सवाल का जवाब तलाशा जाना ज़रूरी है कि आखिर देश के अलग-अलग हिस्सों में एकाएक ऐसी घटनाएं क्यों होने लगीं...

(टिप्पणी करने से पहले ऊपर दायें में पोस्ट एक गुज़ारिश को ज़रूर पढ़ लें।)

टिप्पणियाँ

Avinash Das ने कहा…
ठीक ऐसा ही सवाल मेरे मन में भी आता है... और आपकी बातों से मेरे निष्‍कर्ष और मेरी समझ को सहायता मिली है। आज लगभग इसी आशय के मसले को जनसत्ता में अपूर्वानंद ने भी डील किया है। यानी ये समय इस तरह की चिंताओं के साझा करने का भी है- कि हम दरअसल कैसे मुल्‍क में जी रहे हैं? हम जिन राष्‍ट्रगीतों में अपने लिए देशभक्ति का पैमाना बचपन से खोजते रहे हैं- क्‍या होश आने पर उनका मानी बिगड़ जाता है? हमने कैसी सुरक्षा एजेंसियां, कैसा प्रधानमंत्री, कैसी सेना बनायी है, जो मुल्‍क को एक खास कौम की निगाह से पारिभाषित करते हैं? धमाका-विस्‍फोट या ऐसे किसी भी किस्‍म की दुर्घटनाएं मुल्‍क की अपनी कमज़ोर‍ियों का इज़हार होती हैं- ठीक उसी तरह जैसे गृहयुद्ध राष्‍ट्र की राजनीतिक बुनावट में कमज़ोरियों के चलते पैदा होते हैं। लेकिन चालाक-शातिर-सांप्रदायिक और (दरअसल कमज़ोर) व्‍यवस्‍था इसका ठीकरा किसी खास तबक़े पर फोड़ता है। इरादतन। दुनिया के तमाम इतिहा‍सों से उदाहरण उठा लीजिए। ग़ौरतलब ये भी है कि व्‍यवस्‍था की ऐसी मंशा को व्‍यापक जनसमुदाय का सहारा और समर्थन भी मिलता रहा है। खास तबक़े का सामूहिक क़त्‍लेआम कई व्‍यवस्‍थाओं ने करवाये हैं, लेकिन विराट मानवीयता ने हमेशा ऐसी व्‍यवस्‍था पर जीत हासिल की है। अपने देश में जो हो रहा है, कुछ कुछ ऐसे ही संदेश दे रहा है। आइए, हम सब ऐसी मंशाओं के खिलाफ युद्ध का एलान करें।
अभय तिवारी ने कहा…
सही सवाल.. इलाहाबाद में तो घर-घर में बम बनते थे.. कोई ६ साल का बच्चा भी बम लेके आप को दौड़ा सकता था.. सँभल के रहना पड़ता था.. वहाँ तो लोग आम बातचीत में कहते थे.. बीसन बम चली..दिनन धुँआ उड़ी..
जिन्हे तक्लीफ़ होती हैं इन सवालों से वो अपनी तकलीफ़ पर सवाल करें..और तब तक सवाल करें जब तक सवालों के पीछे का सच नज़र आना शुरु न हो जाय..
अनुनाद सिंह ने कहा…
मुझे भी यही लग रहा है कि हिन्दूवादी शक्तियाँ इस देश को बर्बाद करने की अपनी योजना पर काम कर रहीं है क्योंकि इनको इस देश की मिट्टी से कभी लगाव नहीं रहा। भारत ही नहीं, पूरा संसार ही इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करने पर तुला हुआ है।
उद्दण्ड बालक की माँ को भी यही शिकायत करती है सब उसके बच्चे के ही पीछे क्यों पड़े रहते है?
गागर में सागर भरने की कला मुझे आती नहीं और जानता हूं कि ऐसे मसलों पर कुछ कहना अच्‍छा-खासा खतरनाक भी है । गलत समझने और खांचे में फिट किए जाने का खतरा । मै यह जोखिम ले रहा हूं ।

कोई भी धर्म या समाज उसके अनुयायियों के सामान्‍य आचरण से ही जाना पहचाना जाता है । आपकी सारी बातें सच हैं लेकिन यह भी सच है कि इन स्थितियों के लिए मुसलमान ही सबसे ज्‍यादा (मुझे कहने दीजिए कि एकमात्र) दोषी हैं ।

'संघ' परिवार, हिन्‍दू धर्म को संकीर्णता और नफरत का पर्याय बना देने पर चौबीसों घण्‍टे सक्रिय है । लेकिन इसका विरोध हिन्‍दू समाज ही सबसे ज्‍यादा कर रहा है । 'संघ' की मनमानियों के खिलाफ हिन्‍दू लोग ही सडकों पर आते हैं । इसीलिए, संघ के निशाने पर केवल मुसलमान ही नहीं, वे तमाम हिन्‍दू भी हैं जो हिन्‍दू धर्म को उदार और सहिष्‍णु बनाए रखना चाहते हैं ।

इसी प्रकार, हिन्‍दू धर्म के धर्म गुरूओं और पाखण्‍डी बाबाओं के विरोध में हिन्‍दू धर्म के अनुयायी ही आगे आते हैं । हिन्‍दू धर्म की विसंगतियों और कुरीतियों के विरूध्‍द जो भी आन्‍दोलन चले, वे सब हिन्‍दुओं ने ही चलाए ।

लेकिन यह सब इस्‍लाम मतावलम्बियों में अपवादस्‍वरूप भी नजर नहीं आता । कुठमुल्‍लाओं, मौलानाओं-मौलवियों की मूर्खताओं और मनमानियों से वे असहमत तो होते हैं लेकिन खुलु कर बोलने की हिम्‍मत कितने लोग कर पाते हैं ? मैं एक बीमा एजेण्‍ट हूं और मेरे परिचितों-मित्रों में इस्‍लाम मतावलम्‍बी बडी संख्‍या में है । ऐसी प्रत्‍येक मूर्खता पर वे मर्मान्‍तक स्‍तर पर पीडित होते हैं लेकिन जब उनसे खुलकर सामने आने की बात होती है तो वे (जी हां, प्राय- सबके सब) ठण्‍डी सांस भरकर, मन मसोस कर चुप रह जाते हैं ।

धर्म हिन्‍दू हो या मुस्लिम, सबका संकट एक ही है - सक्रिय दुर्जन, निष्क्रिय सज्‍जन । यह निष्क्रियता मुसलमानों में बहुत ज्‍यादा है ।

जिन बिन्‍दुओं पर आपने पीडा जताई है उनमें से प्रत्‍येक पर आपसे सहमत हूं । लेकिन यदि आप उम्‍मीद करें कि आपकी परेशानी का हल कोई और निकाले तो क्षमा करें, यह उम्‍मीद जरूरी भले ही हो, वाजिब बिलकुल ही नहीं ।

मुसलमानों को देश के प्रति अपनी निष्‍ठा के प्रमाण देने की कोई आवश्‍यकता नहीं है । लेकिन ठीक समय पर चुप रहने और गलत समय पर बोलने से, नफरत के सौदागर कटृटरपंथी हिन्‍दुओं को 'प्रत्‍येक मुसलमान आतंकवादी नहीं है लेकिन प्रत्‍येक आतंकवादी मुसलमान जरूर है' जैसे घातक जुमले कहने के स्‍वर्णिम अवसर मिलते हैं ।

मैं आपके साथ हूं और आपकी मदद भी करना चाहता हूं लेकिन सबसे पहले आपको ही खुद की मदद करनी होगी ।
ढाईआखर ने कहा…
प्रिय अनुनाद जी, आपकी बात समझने में मुझे थोड़ी दिक्कत होती है। आप ज़रा अपनी बात को विस्तार देते तो अच्छा रहता। रवीश की पोस्ट पर भी आपकी टिप्पणी आज तक मेरी समझ में नहीं आयी। वैसे मैं इतना कह सकता हूँ कि 'वो बात जिसका सारे फसाने में जिक्र न था, वो बात उन्हें बहुत नागवार गुज़री है।'
संजय जी, आप आये और अपने इस पोस्ट को टिप्पणी लायक समझा- इसके लिए शुक्रिया। उम्मीद है आपने पूरी पोस्ट पढ़ी होगी। इसमें शिकायत नहीं है, कुछ सवाल हैं, जो सिर्फ मेरे नहीं है। वैसे एक सवाल मैंने कुछ दिनों पहले एक पोस्ट 'बिछुड़ना एक भतीजे का अपनी चाची से' में भी किया था। उसके जवाब में भी इन सवालों के सूत्र मिलते। फिर भी शुक्रिया। आते रहियेगा।
विष्णु जी, इस टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। आपने अहम सवाल उठाये हैं। आपके कुछ सवालों के जवाब, पोस्ट में दिये गये लिंक से मिल सकता है। जैसे आतंकवाद के खिलाफ उलमा के एक नहीं कई फतवे। ठीक उसी तरह से कई और मामले हैं।
हालांकि आपकी एक बात से मेरी असहमति है। यह बात मेरी कतई नहीं है। हम सब की है। मुल्क की है। इसलिए इस बात का हल भी हम सब को तलाशना होगा। भूमिकाएं अलग-अलग हो सकती हैं। मैं इस बात को किसी मज़हबी पहचान के तहत नहीं लिख रहा। इसीलिए इसका शीर्षक यह नहीं रखा... 'इस देश में मुसलमान होना...। मैंने इसका शीर्षक रखा... मुल्क और मुसलमानों से जुड़े चंद सवाल...। उम्मीद है आप मेरी बात समझ रहे होंगे।
आपकी टिप्पणी में संवाद को आगे बढ़ाने के बीज मौजूद हैं। उम्मीद है संवाद होगा।

अंत में अभय जी की बात दोहराना चाहता हूँ, 'जिन्हें तकलीफ़ होती हैं इन सवालों से वो अपनी तकलीफ़ पर सवाल करें...और तब तक सवाल करें जब तक सवालों के पीछे का सच नज़र आना शुरू न हो जाय...'
ghughutibasuti ने कहा…
ये सवाल उठाने पड़ रहे हैं यह खुद दुख की बात है । कोई मुझसे ३० साल पहले पूछता कि कभी ऐसी स्थिति भी आएगी तो मैं विश्वास न करती । या तो हमारे समाज में कुछ गलत चल रहा है या फिर हम कान के इतने कच्चे हो गए हैं कि हमारे पड़ोसी हमें बरगला सकते हैं । बिना और समय गंवाए इन विषयों पर चर्चा होनी चाहिये ।
घुघूती बासूती
debashish ने कहा…
मैं पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ, बहुत बढ़िया लिखा है आपने। मैंने अभय के एक चिट्ठे पर एक बार ये लिखा था कि हमारे देश के हिंदूवादी संगठन और अधिकाँश हिन्दू मानस विभाजन के लिये गाँधी को माफ नहीं कर सके और उसकी खीज मुसलमानों पर निकलती है। ये एलियनेशन 60 सालों से इस कदर बढ़ा है कि हिन्दु और मुसलमान में आपसी यकीन तो है ही नहीं। भारत का हर हिंदू जवानी के दहलीज़ पर कदम रखते रखते बचपने से से सुनी आ रही बातों पर यकीन करने लगता है (मसलन, हिंदू के घर में गाय भगाने के लिये लाठी भी नहीं होती और मुसलमान के बिस्तर के नीचे कटार छुपी रहती है)। ये अविश्वास सुरक्षा जैसे मुद्दों को आधार बनाकर बड़े योजनाबद्ध तरीके से बोये गये हैं, जनगणना के आँकड़ों को तक गलत ढंग से पेश कर तिल के ताड़ बनाये गये हैं। मैं भोपाल का वासी हूं और अक्सर ये बात कही जाती है कि मुसलमान पाकिस्तान का पक्ष लेते हैं, कुछ हद तक ये होते देखा भी है, पर हैरत यही रही कि 60 सालों में क्या वाकई इस मुल्क के शासन ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे ये समुदाय, जिसने भारत के साथ रहना कबूल किया, को यहाँ अपनापन लगे। विष्णु की बात से सहमत हूं पर आखिरकार मुख्यधारा के मीडिया पर ये जोर क्यों नहीं पड़ता कि वो आतंकवाद के खिलाफ मुस्लिम विरोध को भी खबरों में तरजीह दे।
इन दिनो मैं कुछ चिट्ठो पर जाने से बचता रहा हूँ, आपने शांति से मेरी बात सुनी इसके लिए धन्यवाद. हम और आप अपने अनुभव के आधार पर लिखते रहे है. मेरी विष्णु भाई के साथ शब्दसः सहमती है. मैने अपने आस-पास जो देखा उसी आधार पर.

रही बात मुस्लिम पर विश्वास की तो यकिन मानिये हिन्दु आज भी कलाम को प्रतिभा से ज्यादा पसन्द करते है. क्यों?
ढाईआखर ने कहा…
संजय जी, आप हर चीज़ को हिन्दू और मुसलमान में बांट कर क्यों देखते हैं। जब तक 'हम लोग' यानी मेरे मज़हब मानने वाले और 'वे लोग' यानी दूसरे मज़हब वाले- इस दायरे में सोचना का नज़रिया बना रहेगा, मुश्किल बनी रहेगी।
जहां तक कलाम की बात है, मैं उन्हें पसंद नहीं करता। मेरे लिए हिन्दू-मुसलमान से ज्यादा अहम ये है कि वे कहते या करते क्या हैं।
आपके ठीक बगल में गुलबर्ग सोसायटी भी है, जहां आपके पूर्व सांसद समेत साठ से ज्यादा लोग मार डाले गये थे। मैं देख कर आया हूँ, वो खूबसूरत कॉलोनी पांच साल बाद भी वीरान पड़ी है। कृपया अपने अगल-बगल में गुलबर्ग सोसायटी के लोगों को भी शामिल कर लीजिये। बहुत सुकून मिलेगा।
अगर पूर्वग्रह से ऊपर उठकर संवाद करना चाहें तो हम आगे बात करते रहेंगे। शुक्रिया
ढाईआखर ने कहा…
ये सवाल उठाने पड़ रहे हैं यह खुद दुख की बात है।... बिना और समय गंवाए इन विषयों पर चर्चा होनी चाहिये ।
घुघूती जी, इस पोस्ट का मकसद यही है कि हम सब मिलकर सोचें कि आखिर ऐसा क्या हो गया। आखिर ऐसा क्या हो गया जिसकी कल्पना घुघूती बासुती जैसे लोगों ने सालों पहले नहीं की थी।

देबाशीष जी, मेरे पोस्ट तक आने और अपनी बात रखने के लिए शुक्रिया। हम पढ़ लिख कर भी मिथकों और भ्रांतियों में जीते हैं। जनसंख्या और कटार का उदाहरण आपने दिया है।
... क्या वाकई इस मुल्क के शासन ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे ये समुदाय, जिसने भारत के साथ रहना कबूल किया, को यहाँ अपनापन लगे।
देबाशीष जी 'ये समुदाय' यहीं के थे, ये जाते कहां। जो गये, उन्होंने एक दूसरा मुल्क चुना। और अपनापन लगने की जहां तक बात है, तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ शासन की नहीं है, समाज के हर सदस्य की है। हमारी-आपकी सबकी।
मिथकों और भ्रांतियों को तोड़ने में आप आगे भी अपनी भूमिका निभाते रहेंगे, यह उम्मीद है।
एक बार फिर आप सब का शुक्रिया।
Unknown ने कहा…
Assalam alekum,

Copy pasting my comments that I posted on the english version of this post at two-circles:

Q1. Why is it, that even after receiving information about impending bomb blasts, security agencies are unable to stop them?

Security agencies are not supposed to stop them per se. They pass on the information to police and at times Police fails to react/act to these information.

When police acts sometimes, there is always a fear of the action being termed as "staged" encounter. e.g Encounter outside RSS HQ in Nagpur. We are not sure, whether police acted up to information by security agencies, or they "staged" an encounter, but there are people who claim it to be fake encounters.

Police at times, do act "without doing encounters" and they do find bombs at locations. e.g A couple of boms were found on Bomabi stations few months back. But until the bomb has exploded, it does not make "breaking/big news"

Imagine, out of 10000 informations coming to police, even in one case police fails, it REFLECTS big times.

Q2. How is it that, only minutes after a blast has occurred, security agencies are able to find the names and locations of the people responsible as well as their links and organizations?

Based on the information you were questioning in step 1. Police had information, but they failed to "react" to those information and blast occurred. Now they do reverse engineering to find out organisations.

Now ^^ this is an "IDEALISTIC" situation. At times police do take well "established" names just to get people off their back and then investigate (?) in background.

Q3. How is it that security agencies that find major clues soon after a blast, are unable to reach any conclusions in their investigations of the Malegaon, Samjhauta Express, or the Mumbai Train explosions even after months have passed, during which time scores of young lives are destroyed inside prison cells for years.

None of the case has yet been solved given the complexities of the case. We have seen how police neutrality has been questioned when they raided/questioned Madarsaas in Hyderabaad after the blast. Police action was driven by prejudice or not is another debate but they police action was being questioned

We have Human rights activities who don't allow (in principle) any atrocities on detainees.

Besides all these, these terrorists are not fools (or Bollywood heros aka dhoom style) that they will leave their "sign" after the blast, asking policmen "catch me if u can"

These are VERY VERY blind cases which police has to solve.

Q4. Even if one believes that there is some organization behind these blasts that is doing it in the name of Islam… then why are there explosions in Hyderabad, Varanasi, Malegaon and what are the people responsible for those attacks trying to achieve?

There is nothing like "even if". There are organizations which are indeed "misusing" the brand name of Islam. (They are behind these blasts or not, is not a question, but none of us will deny that their exist Organizations that wrongly work in the name of Islam)

And whoever be behind these blasts, Indian or foreigner, Muslim's or Hindu's, the soul intention is to disrupt peaceful environment of the country and to cause riots. Thats why they choose "special" religious occasions for these blasts. Be it Diwali in Delhi, Sabe qadr in Maalegaon or Onam in Hyderabaad.

Q5. Kashmiri militants want to liberate Kashmir by causing explosions there. Do these terrorists want to liberate Hyderabad and Malegaon?

First of all, its still not clear that they are Kashmiri millitants. Second thing, that while their fight is FOR kashmir, at the same time their fight is AGAINST India. And anything that will harm India will serve their purpose.

Our freedom fighter were not intented to free "legislative assembly" still they bombed the assembly to avenge death of Lala Lajpat rai.

Q6. When militancy was at its extreme in Kashmir, even then there were Islamic militants. Why didn't they conduct attacks in the rest of India then? What has changed that they are able to do it now?

Jab koi kaam insaan start karta hai to josh me hota hai. They could have thought that they will gain freedom without attacking other parts. Now since the freedom fight is subsiding, out of frustation they may be doing it. We are not sure. May be yes may be not

Q7. Terrorist organizations, i.e. Al-Qaida, Jaish-e-Mohammad and others like them do all this work and chose to work anonymously? Why? These organizations want people to be afraid of them. They are not legally registered organizations or follower of law… then why would they be afraid of taking responsibility of their actions?

So shall the investigation agencies Stop their work waiting for them to take responsibilities? Did Al qaida ever took responsibility of 9/11 or it was US who said that they did it?

Q8. Why is it that after every blast only people of one religion are arrested?

Not always but yes most of the time. May be because the police DONT trust them. or may be they have evidence against them. Both can be true.

Q9. Why are only Muslim organizations expected to condemn attacks after any terrorist activity? So the Ulema, Muslim organizations are in the forefront of condemnation. What about the Hindu (not Hindutva) organizations, Shankracharyas and Gurus? Are they also expected to issue statements? Are Muslims living under the shade of fear that they are forced to issue statements of condemnation?

I have seen some of these Acharyas even "boasting" about acts of Dara Singh or attack on Christians.

Q10. Why Muslims are not able to easily believe the result of an investigation or arrests? Why have they lost faith in the state?

Forget muslims, even others DONT believe them these days.

Q11. Independent teams that investigated blasts in Nanded and Malegaon have pointed to some organizations… why aren't security agencies looking at those organizations? The truth of the attack on the RSS headquarters is also out, then why isn't anyone investigating at these organizations?

In India, it is hard to crack down a "Political" organization. Like it or not, but that is a bitter truth

Q12. How many of us attempt to know about those youths who were arrested just because they know Arabic, or they traveled with the Tablighi Jamat, they study in a Madrasa, or they started taking more interest in their religion… or simply their names connect them to a particular religious community.

I never attempted.

Q13. If some youth of a particular religion are involved in terror activities then what went wrong in this country that is encouraging them to move over to the wrong side of the law…. Only the lust of money is not enough for this… why did all this not happen 15 years ago…when terrorism in Punjab and Kashmir was at a peak.

Good that you have talked of Punjab?

[Out of your question-context]

Do you have any idea how police dealt with terrorists in Punjab? Ruthlessly. Even more ruthlessly than the intrinsic ruthlessness of the word ruthless. Their were Human Riots violations, police stormed Gurduwaras, they killed youths in Punjab even on slight suspicion. And we all know the result. Yes, we have seen all the heads of this operations against terrorists in Punjab being killed (except for KPS gill (KILL)m Beant Singh, Indra Gadnhi, Army chief Malik all were killed in due course) . But we saw police acting ruthlessly and terrorism subsiding.

Sadly, with all the reported HR violations in Kashmir, Army was never as ruthless as compared to Punjab

[/Out of your question-context]

Allah Hafiz
Aminur
Farid Khan ने कहा…
किसी भी आतंकवादी संगठन के बनने की एक वजह होती है .... और उसका एक लक्ष्य होता है.....इस बात को कोई भी जाहिल समझता है लेकिन
पढे लिखे मीडियाकर्मी और सरकार चलाने वाले लोग नहीं जानते... जाहिल होना ज़्यादा हितकारी है भारत के लिए.


अब जब समाचारों में धमाकों की ख़बर आती है मै समझ जाता हूँ कि मुसलमानों पर गाज गिरने वाली है....
और वह गिरती है...


मैंने अपने ख़ानदानी संस्कारों के विरुद्ध जा कर सांप्रदायिक आधार पर अलगाववादी आतंकवादी संगठनों की गिनती शुरु की.... लिट्टे... मुसलमानो का संगठन नहीं है. ये भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल है. बोडो उग्रवादी, ये भी मुस्लमानों का संगठन नहीं है और भारत से अलग होना चाहता है. आन्ध्र प्रदेश के नक्सल... ये भी मुसलमानो के संगठन नहीं हैं और ये तेलंगाना देश बनाना चाहते है... भारत से अलग हो कर.


और तो और पूरी बेशर्मी का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बी जे पी ... एक मस्जिद को भावना के नाम पर ध्वस्त कर देती है,,, ये भी मुस्लमानों का संगठन नहीं.....


तो क्या हम ये कह दें कि इस देश में मात्र हिन्दू आतकंवाद ही सक्रिय है ? क्यों कि इन सब का एक कारण है और लक्ष्य भी है .


लेकिन हम इसे हिन्दू आतंकवाद का नाम नहीं देंगे क्योंकि हम धमाकों का धर्म नहीं देखते...

किसी साहब ने अब्दुल कलाम को बतौर मुसलमान सम्मान दिया है... जबकि मेरी नज़र में वह एक विध्वंसकारी बम निर्माता है और कुछ नहीं लेकिन हिन्दू वादी शक्तियाँ ऐसे ही मुसलमानों पसन्द करती हैं जो विध्वंस कर सकें.... और इसी लिए धमाकों की निन्दा हिन्दूवादी संगठन(संघी समाज) नहीं करते...
Sanjeet Tripathi ने कहा…
सही सवाल!!

मैं अपने आप को विष्णु बैरागी जी के साथ खड़ा हुआ पा रहा हूं॥
avam manch ने कहा…
Aminur
first, i congratulate you for raising questions within questions.
i feel, this post is just to reveal certain questions which are obvious and is only a tip of iceberg. these are only few questions which one should ask to him/herself there are thousands of such questions.
i am surprised to see a continuous line of doubt reflected in the form of 'MAY'(not less than 5 times u have used). it seems you are trying to find answers within the questions itself and in doing this you are considering them answers which actually are questions; valid and validly asked questions.
while there are so much of doubt i feel the benefit of doubt should go in favour of the innocent and not against them, which is what is happening.
the onus is high for whom, whose responsibilty/accountability is high.

Nasirrudin saheb
thanks for raising the obvious.
KABHI KABHI JAWAB SE ZYADA SAWAL AHMIYAT RAKHTE HAIN

nadim nikhat
Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…
ज्यादातर मुसलमान आपकी ज्यादातर बातों से इत्तेफाक ही रखेगा। या इस बात को इस तरह से भी कहा जा सकता है कि आपने एक आम मुसलमान के मन में उठने वाले सवालों को अच्छे ढंग से पेश किया है। हालकि नाम से मैं भी मुसलमान की कटेगरी में आता हूं, पर यदि कर्म की बात की जाए, तो हालात इसके ठीक विपरीत होंगे। लेकिन इसके बावजूद भी मुझे यह क्यों लग रहा है कि आपके द्वारा उठाये गये सवाल सही हैं। हालकि कुछ लोग इस बात पर सख्त ऐतराज कर सकते हैं, पर ये सवाल पूरी तरह से सच हैं और हमारे देश के कर्णधारों को यदि मुसलमानों को मुख्यधारा में लाना है, तो उन्हें इन सवालों के हल ईमानदारी तलाशने होंगे।

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