फि़लिस्‍तीन का एक आशिक़ (Lover From Palestine)

Mahmood_darwish  महमूद दरवेश (Mahmoud या Mahmood Darwish) फिलिस्‍तीन के मशहूर कवि हैं। दुनिया के बड़े साहित्‍यकारों में उनका शुमार होता है। अपने वतन फिलिस्‍तीन के लिए जबरदस्‍त बेचैनी उनकी शायरी में साफ तौर पर देखी जा सकती है। फिलिस्‍तीन को समझने का एक बड़ा जरिया दरवेश की कविताएँ हैं। ढाई आखर पर इससे पहले भी हमने उनकी कविताएँ पोस्‍ट की थीं। आज चंद और रचनाएँ पेश हैं। इसे अंग्रेजी से हिन्‍दुस्‍तानी में पेश किया है साहित्‍यकार/ नाटककार ख़ुर्शीद अनवर ने।

 

फि़लिस्‍तीन का एक आशिक़

तेरी आँखें

कि उतरता कोई नश्‍तर दिल में

दर्द महसूस करूँ, या कि फि़दा हो जाऊँ

तेज़ झोंकों में हूँ फा़नूस इनका

 

रात को चीर दे और दर्द को गहरा कर दे

ऐसे पेवस्‍त करो आँखों को सीने में मेरे

तेरी आँखों से मिले ज़ख्‍़म यूँ चमकें जैसे

आज के घोर अँधेरों में रोशनी की किरण

कल के ख्‍़वाबों को भी रोशन कर दे

और मेरी रूह पे भी छा जाए।

और जिस दम मेरी नज़रों से मिले तेरी नज़र

यह भी न याद रहे

हम कभी साथ भी थे, एक ही थी राहगुज़र

******

तेरे अल्‍फ़ाज़ मेरा नग़मा थे

मेरे होठों पे वह उभरे थे तरन्‍नुम बनकर

लेकिन अफसोस कि मौसम बदले

खुशनुमा रंगों पे एक बर्फ की चारद फैली

यूँ उड़े लफ्ज तेरे जैसे परिंदा कोई

अजनबी रास्‍तों में खो जाए

फिर तेरा साथ छुटा

ख्‍़वाब के आइने भी टूट गए

दर्द के तूफाँ में हम डूब गए

ख्‍वाब के टुकड़ों की झंकार लिए

ऐ वतन तुझ पे तड़पते ही रहे

*******

 

तेरी आँखें हैं हम फि़लिस्‍तीनी

तेरे हैं नाम हम फि़लिस्‍तीनी

तेरे ख्‍़वा़ब-ओ-ख्‍़याल, जिस्‍म, लिबास

तेरी खामोशी और तेरी आवाज़

जिंदगी हो तेरी कि तेरी मौत

हम फिलिस्‍तीनी हम फिलिस्‍तीनी

*******

तू बयाज़ों में जावेदाँ है मेरी

तेरी लफ़्जों में जो चिंगारी है

तेरे सीने से ही उठाई है

तेरे मज़मूँ मेरा सरमाया है

ऐ वतन तेरे नाम पर मैंने

घाटियों को भी यूँ ललकारा !

दुश्‍मनों- तेरे तुंद घोड़ों से

सामना करना मुझको आता है

वक्‍़त बदला  है पर ये याद रहे

पत्‍थरों और टापों के आगे

देव-पैकर तुम्‍हारे हर बुत पर

मेरे नग़मों की ज़वाँ चिंगारी

बिजलियाँ बनके बरसने को है

********

 

ऐ वतन तेरे नाम पर मैंने

अपने दुश्‍मन को यूँ ललकारा है

अब मुझे चैन नहीं

नींद आए तो मेरे जिस्‍म को कीड़े खाएँ

तुमको यह याद रहे

चीटियाँ चीलों की नस्‍लें नहीं पैदा करतीं

साँप के अंडे सपोले ही जनम देते हैं

तुमको यह याद रहे

पहले भी घोड़ों के रूख हमने पलट रखे हैं

और यकीं आज भी है

अपने बाज़ू में लहू आज भी है।

palestine

(अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के मौके पर अपने गम व गुस्‍से का इजहार करती फिलिस्‍तीनी महिलाएँ)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारतीय मुसलमानों का अलगाव (Alienation Of Indian Muslims)

चक दे मुस्लिम इंडिया

इमाम-ए-हिन्द हैं राम