वो बात उनको बहुत नाग़वार गुज़री है

कितना आसान होता है, दूसरों से ईमानदारी का सर्टिफिकेट माँगना। उससे भी आसान होता है, तड़ से सर्टिफिकेट दे देना। मुझे भी सर्टिफिकेट दिए जा रहे हैं। पहले भी ख़ूब दिए गए। ललकारा गया। पर मुझे किसी सर्टिफिकेट की दरकार नहीं है। इसलिए कि जब सर्टिफिकेट देने वाला किसी खास रंग का चश्‍मा पहने होगा, तो उसे कुछ भी साफ नज़र नहीं आएगा। न ही मैं यहाँ बॉक्सिंग रिंग में हूँ कि धींगामुश्‍ती करूँ।
जो चीज हम देखना नहीं चाहते, वह सामने होते हुए भी नहीं दिखती। जैसे कुछ दोस्‍तो को (मैं जानबूझ कर नाम नहीं लेना चाहता) पिछले पोस्‍ट में नहीं दिखा। मैं यही कह सकता हूँ कि उन्‍होंने पोस्‍ट पूरी नहीं पढ़ी। कुछ लोग अगर मेरे पिछले कई पोस्‍ट देख लेते तो शायद,  उनका जो ख़ून जला, न जलता। यही नहीं, यह सब संवाद वाली टिप्पिणियाँ नहीं हैं, विवाद वाली हैं। संवाद वाली टिप्पिणियाँ कैसे की जाती हैं, यह घुघूती बासूती से सीखना चाहिए। ख़ैर।

कुछ उदाहरण। पिछली पोस्‍ट की दो लाइन है-
'मामला उस अमरनाथ यात्रा से जुड़ा था, जो हिन्‍दुस्‍तान की मिली-जुली तहज़ीब का अद्भुत नमूना है। पर यह उन लोगों को गवारा नहीं, जिनकी कामयाबी का राज़ लोगों को बाँटने में छिपा है।'

इसमें तो हर वो संगठन और व्‍यक्ति शामिल है, जिसने इस तनाव में भूमिका अदा की। लेकिन मेरे दोस्‍तो को इसमें कुछ और दिखा।  मैंने तो बाँटने वाले का नाम भी नहीं लिखा, लेकिन शु‍क्रिया दोस्‍तो, आप समझ गए।

दूसरा उदाहरण देखिए। दो पैरा के बाद पूरी पोस्‍ट में न्‍यूक्‍लीयर डील पर मजहबी नेताओं की दखंलदाजी पर टिप्‍पणी है। लेकिन यहाँ तो खून के उबाल में पूरी पोस्‍ट पर भी नजर नहीं डाली जाती... बस पटक देने की जल्‍दी रहती है। नेस्‍तनाबूत करने का उतावलापन रहता है।

तीसरी बात। सुना है, समझदार लोग- जिस मुद़दे पर बात होती है, उसी पर बात करते हैं। लेकिन यहाँ तो उलट दिखाई दे रहा है। आप बात कीजिए कि फलाँ ने खून क्‍यों किया तो जवाब होगा, अच्‍छा दस साल पहले उसने ख़ून किया तो नहीं बोले। इस पर बोल रहे हैं, उस पर क्‍यों नहीं कुछ कहते। हुजूर जो लिखा है पहले उसकी बात करें।

मजहब की सियासत और सियासतदानों का मजहबी चोला- मेरी पोस्‍ट का विषय यही है। तो इस पर बात करें। हमारा भी ज्ञानवर्धन होगा।

हाँ, एक बात और प्रभु ईसा मसीह जब सलीब पर चढ़ाए जा रहे थे, तो उन्‍होंने दुआ की थी- हे ईश्‍वर इन्‍हें क्षमा करना, यह नहीं जानते क्‍या कर रहे हैं। मेरी भी एक दुआ है- हे प्रभु, यह जानते हैं, ये क्‍या कर रहे हैं। क्‍यों कर रहे हैं फिर भी इन्‍हें माफ कर देना। क्षमा की वर्षा करना।

अंत में, फ़ैज़ की एक लाइन है, वो बात जिसका सारे फ़साने में जिक्र न था, वो बात उनको बहुत नाग़वार गुज़री है।

नोट- कुछ लोगो ने एक बार फिर घटिया, नीचले दर्जे और व्‍यक्तिगत हमले वाली टिप्पिणियाँ भेजनी शुरू की हैं। पिछले दिनों मैंने ऐसी कई टिप्पिणियाँ रिजेक्‍ट की हैं। टिप्‍पणी करने से पहले, कमेंट बॉक्‍स के ऊपर और ब्‍लॉग के दाहिनी ओर की गुजारिश जरूर पढ़े।

टिप्पणियाँ

Dr Prabhat Tandon ने कहा…
नासिर भाई ,
नमस्कार ,
आपके ब्लाग पर मै कुछ देर के लिये रुक सा गया हूं , कारण जो दायें तरफ़ चल रहा स्लाइड शो बहुत कुछ कह रहा है , " इनका मजहब क्या है " अगर इन्सानों के इतने सारे मजहब हैं तो इन पक्षी , जानवरों के कितने होगें या उनके मजहब होगे भी या नही । शायद इन्सान को एक दिन समझ आ जाये कि मजहब की परिकल्पना सिर्फ़ इन्सान की मस्तिष्क की विकृत उपज है और कुछ नही !
editor ने कहा…
Abusive messages are a big turn off. Saara mood chaupat ho jata hai...I was also forced to moderate...and also plan to write a long post on the issue and how to tackle this menace.

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