आतंक, राशिद और इन्फोसिस
जयपुर में विस्फोट के कुछ दिनों बाद ही पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा और दावा किया कि साजिश का पर्दाफाश हो गया है। हर पकड़ा गया शख्स मास्टरमाइंड था। इन्हीं में से थे- राशिद हुसैन। बिहार के रहने वाले। पेशे से इंजीनियर। इन्फोसिस में नौकरी। इनकी खता क्या थी। यह कभी सिमी से जुड़े थे, जब उस पर पाबंदी नहीं थी। लेकिन जो चीज उन्हें शक के दायरे में लाई- वह था सेवा करने का जज्बा। विस्फोट के बाद, राशिद उन चंद लोगों में शामिल थे, जो घायलों की मदद के लिए पहुँचे थे। पुलिस का दिमाग देखिए, उसे लगा ‘राशिद’ नामधारी व्यक्ति सेवा करने कैसे पहुँचा। जरूर दाल में काला है। और राशिद हो गए ‘आतंकी’। किसी तरह छूटे। इससे आगे की कहानी, अपूर्वानन्द बता रहे हैं।
आतंक, राशिद और इन्फोसिस
राशिद हुसैन के स्वर में कड़वाहट नहीं थी. होना स्वाभाविक होता. आख़िर राजस्थान पुलिस ने उसे नौ दिन गैरकानूनी तरीके से बंद कर रखा था और लगातार यह कोशिश की थी कि उसे यह मानने पर मजबूर कर दिया जाए कि उसके ताल्लुकात ‘सिमी’ नामक संगठन के साथ हैं. उस मानसिक यंत्रणा को झेल कर भी राशिद टूटा नहीं. पुलिस से बच जाने के बाद जब राशिद ने अपनी कंपनी ‘इन्फोसिस’ में वापस काम पर जाना चाहा जहाँ वह इंजिनियर था तो उसे कुछ दिन आराम करने को कहा गया. आराम कि यह अवधि एक बार और बढाई गई. फिर जब वह अपने परिवार से मिलने पटना गया तो इन्फोसिस ने उसे एक अंदरूनी पैनल से बात करने को वापस जयपुर बुलाया. वहाँ उससे कहा गया कि कम्पनी के बाहर की उसकी गतिविधियों में कम्पनी की दिलचस्पी नहीं है और वह सिर्फ़ दो मामलों में उसकी सफाई चाहती है. उसने नौकरी माँगते समय यह बताया था कि वह पटना के एक कॉलेज में दो साल पढा चुका है जब कि कम्पनी ने यह पता किया है कि दरअसल यह अवधि तीन साल की थी. दूसरे, उसने जिस एक और कम्पनी में काम का अनुभव बताया था, उसका वहाँ कोई वजूद ही नहीं है.
राशिद ने बताया कि उसने कॉलेज में तीन साल पढाया था पर इन्फोसिस को सिर्फ़ दो साल का अनुभव बताया जो कि कम है, ज़्यादा नहीं. अगर वह बढ़ा कर बताता तो जुर्म हो सकता था पर एक साल के अनुभव का उल्लेख न करना तो कोई दुर्भावना नहीं. वह अपने काम का स्वरूप बदलना चाहता था इसलिए उसने अध्यापन के अनुभव से एक साल कम करके जिस दूसरी फर्म में वह साथ-साथ काम कर रहा था, उसके एक साल के तजुर्बे का उल्लेख अधिक प्रसांगिक समझ कर ऐसी जानकारी दी. दूसरी जिस फर्म में वह काम कर रहा था, मुमकिन है की इस बीच उसका किसी और बड़ी फर्म के साथ विलय हो गया हो.
लेकिन क्या यह सच नहीं की इन्फोसिस ने राशिद को नौकरी देने से पहले उसके द्वारा दी गई हर जानकारी की जाँच-परख करा ली थी? क्या उस वक्त उस फर्म से इन्फोसिस ने पता नहीं किया था की राशिद नाम का कोई व्यक्ति वहाँ काम करता है या नहीं, क्या इन्फोसिस अपने रिकॉर्ड से ख़ुद इसकी सच्चाई का पता नहीं कर ले सकती? अगर अभी वह कंपनी नही है तो इसमें राशिद क्या कर सकता है.
इन्फोसिस , जो कि नए भारत का एक लघु रूप ख़ुद को बताती है और जिसके साथ काम करने में किसी भी भारतीय नौजवान को फख्र का अनुभव होता है, जिसके मुखिया को भारत का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बनाने की चर्चा संचार माध्यमों में चलती रहती है, राशिद के इस उत्तर से प्रभावित नहीं. राशिद ने किया वह उसकी नैतिक संहिता के प्रतिकूल था, असत्य को वह सह नहीं सकती इसलिए उसने राशिद को बर्खास्त कर दिया. स्वयं को एक विशाल परिवार के रूप में प्रचारित करने वाली इस कमपनी ने नितान्त निर्वैयक्तिक ढंग से राशिद के एमबीए के इम्तहान के बीच बर्खास्तगी का यह आदेश भेज दिया.
जयपुर में बम धमाकों के बाद राशिद ने घायल लगों के बीच जाकर राहत का काम करने का निर्णय किया. वह पहले से एक छोटी स्वयं सेवी संस्था में काम करता है. इन्फोसिस के अपन काम के बीच वक्त निकाल कर उसने बम-धमाकों से प्रभावित लोगों का दुःख-दर्द बाँटने का निर्णय किया. हममें से ज़्यादातर ऐसा नहीं कर पाते. सेवा भारतीय संस्कृति में उतने रची- बसी नहीं है. एक जून को सुबह पाँच बजे स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने उसे घर से उठा लिया.
पुलिस को यह पता था की उसके सिमी से रिश्ते रहे हैं. राशिद ने बिना घबराए बताया की पैंतीस साल की उसके अब तक की जिंदागी में बंगलोर के डेढ़ साल सिमी से रिश्तों के थे. वह उस संगठन का पक्का सदस्य भी नहीं बन सका था. उसने कहा की सिमी की कई बातों से वह सहमत नहीं था. पटना में उसने कई संसदीय दलों के साथ काम किया था, इसलिए वह इस तर्क का कायल न था की भारत में मुसलमानों का हित इस व्यवस्था में सम्भव नहीं. वह भारतीय संविधान पर भी भरोसा रखता है. फिर 2001 के पहले सिमी से सम्बन्ध रखना कोई अपराध नहीं था क्योकि वह प्रतिबंधित संगठन न था. पाबंदी के बाद उसने सिमी से रिश्ता नहीं रखा.
पुलिस की पूछ ताछ के वक्त को याद करते हुए आप राशिद के स्वर में कटुता नहीं, एक उदासी का भाव लक्ष्य कर सकते हैं. उसने अपनी पूछ-ताछ में पाया की पुलिस महकमे में मुसलमानों के प्रति दुर्भावनापूर्ण पूर्वग्रह है. यह माना जाता है कि मुसलमान नौजवान का पढ़ा-लिखा होना और आधुनिक तकनीक में दक्ष होना उसके खतरनाक होने का सबूत है. आधुनिक तकनीक के सहारे वह बम बनने से लेकर न जाने क्या-क्या कर सकता है. अगर वह सर झुका कर अपने काम की जगह से घर नहीं जाता और सामाजिक या राजनीतिक रूप से सक्रिय नौजवान है, तो उसके खतरनाक होने की संभावनाएँ और बढ़ जाती हैं. इसका पता इस बात से चलता है की कहीं भी बम धमाके जैसी घटना होने बाद सबसे पहले मुसलमान इंजिनियर और डॉक्टर पकड़े जाते हैं. रशीद की घटना के बाद अभी फिर जयपुर में कुछ डाक्टर पकड़ लिए गए थे.
पुलिस और राज्य के मुसलमानों के प्रति इस पारंपरिक व्यवहार के साथ इन्फोसिस जैसी नए ढंग की कार्य संस्कृति का द्वावा करने वाली कंपनियों का बर्ताव मिल जाए तो फिर मुसलमान नौजवानों के लिए दरवाज्र बंद हो जाते हैं. इन्फोसिस क्या ईमानदारी से यह कह सकती है की राशिद को निकालने का फैसला राशिद के पकड़े जाने से नहीं जुडा है और वह किसी तरह उससे पल्ला नहीं छुडाना चाहती थी? क्या उसके मानव संस्थान प्रमुख श्री पाई ने यह नहीं कहा की जयपुर धमाके के बाद उन्होंने राशिद की पृष्ठभूमि की जाँच शुरू की ?
क्या अब निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ भारत की सुरक्षा एजेसियों को अपने यहाँ काम करने वाले मुस्लिम नौजवानों की जानकारी उपलब्ध कराने का काम भी कर रही हैं? क्या मुसलामानों के आर्थिक अलगाव का यह एक नया दौर शुरू हो रहा है? क्या तकनीकी क्षेत्र का हिन्दूकरण आरम्भ हो गया है, जैसे पहले से ही पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेसियों का रहा है? क्या उन्हें यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि उन्हें आज्ञाकारी शहरियों की तरह काम से काम रखना चाहिए? क्या राजनितिक और सामाजिक रूप से सक्रिय मुसलमानों में यह राज्य सिर्फ़ अतीक, शहाबुद्दीन, मुख्तार जैसे चेहरों को ही स्वीकार करेगा या मुख्तार अब्बास नकवी और शानावाज़ हुसैन जैसे मुसलमानों को? क्या राशिद जैसे नौजवानों को अपनी राजनीतिक खोज बीन करने का हक नहीं रहेगा?
राशिद के स्वर में कड़वाहट नहीं थी, इसके लिए मैं पूरे हिन्दुस्तान की ओर से उसके प्रति शुक्रगुजार हुआ. उसने अपनी बर्खास्तगी के ख़िलाफ़ इन्फोसिस जैसी कमपनी से कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया, इसके लिए भी. उसने चुप रह कर, पिछले दरवाजे से पैरवी करके, हाथ पैर जोड़ कर नौकरी वापस लेने की कोशिश नहीं की, यह इसका सबूत है की बावजूद प्रतिकूल माहौल के मुसलमान इस मुल्क पर अपना हक समझते हैं और अपना दावा बिना झिझक पेश कर सकते हैं. क्या हम सब इस दावेदारी को और मजबूत करने को तैयार है?
(अपूर्वानन्द दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं। चित्र- द टेलीग्राफ से साभार)
राशिद से जुड़े समाचारों के लिंक
टाइम्स ऑफ इंडिया
Techie falsely accused of terror link loses job
टेलीग्राफ
इंडियन एक्सप्रेस
cleared by police, Infosys\ techie now wants job back
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टिप्पणियाँ
पूँजीवाद अपना स्वरूप बदल चुका है.... अब वह मालिक मज़दूर वाला पूँजीवाद नहीं रहा । यह वाला, हमारी भाव वाचक संज्ञा का स्थूलीकरण में लगा हुआ है। यानी हम अपनी जिस पहचान के लिए उत्तरदायी नहीं है...वैसे गुणों की ही हमारी पहचान के रूप में स्थापना।
सौन्दर्य प्रतियोगिता और आतंकवाद (अमेरिका के शब्दों में) उसके सटीक उदाहरण हैं।
पर
इंफ़ोसिस के आतंकवाद के ख़िलाफ़ राशिद की लड़ाई में हम सब उनके साथ हैं।
हिन्दू और मुसलमान कतई दो अलग अलग नस्लें नहीं हैं. इंफ़ोसिस के आतंकवाद के ख़िलाफ़ राशिद की लड़ाई में हम सब उनके साथ हैं।
२. क्यों इस्लाम का चेहरा हर बार आक्रमणकारी और विध्यवसं कारक दिखता है , मुगल सल्तनत मे कई चेहरे आये और गये और अधिकतर और इनमे से अधिकतर गैर सहिष्णु ही दिखे । क्या उदारवादी दृष्टिकोण न रखने के प्रति स्वयं मुस्लिम ही जिम्मेदार तो नही है ?
प्रशन तो बहुत से है और शायद अपने देश मे ऐसे प्रशनों की संख्या भी कम न होगी लेकिन दो समुदायो मे संवाद की कमी हर बार एक अनउलझी समस्यायों को जन्म दे देती है .
फिर ऐसी हालत में दूसरे देशों के हवाले से सवाल करने का कोई मतलब नहीं बनता है। दूसरे देशों के वे नागरिक जिसे आप मुसलमान के रूप में पहचानते हैं, भारत के मुसलमानों के लिए भी उतने ही विदेशी हैं जितने आप के लिए।
और आप जैसे सम्मानित भारतीय नागरिकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यहाँ के मुसलमानों को 1947 में पाकिस्तान जाने का अवसर मिला था। लोग गए भी.... लेकिन ज़्यादातर यहाँ रह गए। किसी मजबूरी में नहीं... यह उनका राजनीतिक फ़ैसला था।
और रही बात आपके सवालों की.... तो भाई, भारत के मुसलमानों के विषय में आप नासिर से सिर्फ़ इसीलिए क्यों सवाल कर रहे हैं कि आपको लगता है कि नासिर भाई मुसलमान हैं..... ?? यकीन मानिए आप धोखा खा रहे हैं।
भारत के मुसलमानों के संबंध में केवल मुसलमान ही जवाब क्यों दे ? आप क्यों नहीं ??