... तो पशु-पक्षियों से कुछ सीखते क्यों नहीं
घुघूती बासूती ने एक अच्छी जानकारी वाली पोस्ट लिखी है, सौराष्ट्र के किसान पक्षियों के लिए ज्वार बोते हैं, फलों के वृक्षों पर फल छोड़ते हैं। यह पोस्ट ऐसे वक्त में आई जब चारों ओर पर्यावरण को बचाने, जीव जंतुओं की हिफाजत की चिंता की जा रही है। यह पोस्ट इस मायने में अहम है। यह पोस्ट वास्तव में प्रेरणा देने वाली है। दूसरो कामों में लगे होने की वजह से मैं आजकल ब्लॉग की दुनिया में कम ही विचरता हूँ। लेकिन घुघूती जी की इस पोस्ट पर आई एक- दो टिप्पिणी देखकर लगा कि हिन्दी ब्लॉगिंग में अब भी बहुत कुछ नहीं बदला है। कुछ लोग पहले की ही तरह आज भी लगातार उकसाने में लगे हैं। हालाँकि पहले वे जबरदस्त मुँह की खा चुके हैं। उकसाने का उनका अंदाज आज भी वही पुराना है। पशु- पक्षियों पर टिप्पणी करते-करते वे गुजरात और गुजराती अस्मिता को बीच में घसीट लाए। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि इनकी मंशा क्या थी। मैंने घुघूती जी की इस पोस्ट पर जो टिप्पणी की है, वो यहाँ पेश कर रहा हूँ। घुघूती जी की पोस्ट पर ऐसी टिप्पणी कर कुछ लोग चूँकि उकसाने पर आ ही गए हैं तो मेरे भी चंद सवाल हैं। -ये कैसे मुमकिन हैं कि