चक दे मुस्लिम इंडिया
रवी श कुमार किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। खबरिया चैनलों और पत्रकारों की भीड़ में जहां उनका खास मुकाम है वहीं हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में वो अलग पहचान रखते हैं। ... उन्हें खास बनाती है, उनकी दृष्टि। समाज, समाज में रह रहे लोगों और वहां हो रही घटनाओं को देखने की ताकत। फिर चाहे वो फिल्म ही क्यों न हो। फिल्म का सम ाजशास्त्रीय विश्लेषण कम होता है। बुधवार के 'हिन्दुस्तान' में रवीश की 'चक दे इण्डिया...' के बहाने से लिखी एक टिप्पणी छपी है। फिल्म के बहाने समाज की पड़ताल। रवीश की इजाज़त और 'हिन्दुस्तान ' से आभार के साथ यह टिप्पणी ढाई आखर के पाठकों के लिए पेश है। उम्मीद है, आपको पसंद आयेगी। नाम- सेंटर फार्वर्ड का बेहतरीन खिलाड़ी कबीर खान। पद- कोच, भारतीय महिला हॉकी टीम। मजहब- मुसलमान। चक दे इंडिया के मुख्य किरदार की तीन पहचान सामने आती हैं। शुरुआत में ही फिल्म एक सवाल को उठा लेती है। पाकिस्तान से हार का कारण कबीर खान का मुसलमान होना। उसके घर की दीवार पर लिख दिया जाता है- गद्दार। चक दे इंडिया की कहानी क्या है? हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी की हार के पश्चाताप से निकलने की छट...
टिप्पणियाँ
वाह!
शानदार बैनर चित्र।
कोई गल नहीं जी, अक्सर शाएर-कवियों की साइंस कमज़ोर होती है।
शुक्रिया। बैनर के फोटो के बारे में आपको यहां से जानकारी मिल सकती है-
http://dhaiakhar.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80%20Wali
नासिरूद्दीन
चिपचिपे दूध से नहलाते हैं
आंगन में खड़ा कर के तुम्हें ।
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलसियाँ भर के
औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी ।
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम,
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो ।
-संदीप राउजी