पादरी पर हमला: बकलम एक सहाफी
शरत कुमार
आज तक पर पादरी की हिन्दू संगठनों द्वारा पिटाई की तस्वीरें देखने के बाद पूरा देश स्तब्ध है। लेकिन हिन्दू संगठनों, इनका समर्थन करने वाले अख़बार और राज्य की वसुन्धरा सरकार को ये चिन्ता सताए जा रही है कि मौक़े पर आज तक पहुंचा कैसे। अपने कारनामों को ढकने के लिए और इस मामले से ध्यान हटाने के लिए हिन्दूवादी संगठनों से साथ इनका समर्थन करने वाला मीडिया का एक वर्ग साफ-साफ हमले को मीडिया की साजिश बताने में लगे हैं।
ये घटना 29 अप्रैल की है। मैं एक बजकर 20 मिनट पर जब राज्य में पड़ रही गर्मी का विवरण दे रहा था, उसी वक्त मुझे फोन आया कि विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के लोग काँग्रेस नेता रघु शर्मा की गली में एक ईसाई स्कूल पर प्रदर्शन करेगें। उन्होंने पहले से ही दो चैनलों और एक अख़बार के रिपोर्टर को बुला रखा है।
इस घटना की मीडिया के एक खास वर्ग को पूर्व सूचना देने के पीछे उनका मकसद पादरी को पीट कर यह प्रचारित करना था कि स्थानीय लोगों की यह स्वत स्फूर्त प्रतिक्रिया था। क्योंकि उनकी राय में मसीह हिंदू देवी देवताओं का अपमान कर रहा था और धर्मान्तरण में लिप्त था।
मैं अपने कैमरामैन मोहनलाल जैन के साथ पता ढूँढ़ता हुआ पहुँचा क्योंकि बताए गए पते के अनुसार प्रदर्शन स्थल हमारे दफ्तर से दो किलोमीटर दूर था। प्रदर्शन स्थल पर पहुँचने में हमें लगभग 15 मिनट का समय लग गया। जैसे ही हमारी गाड़ी नंदपुरी की सड़क पर पहुँची, मैं ये देखकर अवाक रह गया कि पूरी गली में 50 से ज़्यादा लोग हाथों में डंडा लेकर दुकानों के पास बैठे थे। मैंने अपने कैमरामैन को हिदायत दी कि बिल्कुल शांति से इनके चेहरे और लाठियों की रिकॉर्डिंग करना, क्योंकि ये संगठन अपने को फँसता देख सबसे पहले कैमरे को तोड़ते हैं। हमें उस घर का पता नहीं था जिस घर के अंदर इनके दो कार्यकर्ता पादरी की पिटाई पहले से ही कर रहे थे।
इनके कार्यकर्ताओं को लगा कि कैमरे से फोटो लेने आ रहे कैमरामैन अपने पक्ष का ही है जिसे बुलावा भेजा गया था। तब तक मैं गाड़ी से बाहर निकला। दूर खड़े इन गुंडों की भीड़ की अगुवाई कर रहे वीएचपी के महानगर मंत्री वीरेन्द्र सिंह रावणा की नज़र मुझ पर पड़ी। वो मेरी तरफ लपका और गंदी गालियां निकालता हुआ बोला, ये कैसे आ गए। ये तो आज तक वाला है। जल्दी चेहरे ढको। फिर नेता का इशारा मिलते ही ये लोग आगे की तरफ बढ़ने लगे। इन्होंने भद्दी गालियां निकालते हुए कहा कि आने दो, चू-चपाड़ करेगा तो इसे भी धोएंगे। मैंने कैमरा टूटने की पुरानी घटनाओं से सबक लेते हुए कैमरामैन को हिदायत दे रखी थी कि इनसे बिल्कुल उलझना नहीं और सावधानी से तस्वीरें उतारते रहना।
अचानक ही ये कार्यकर्ता एक घर के बाहर खड़े हो गए। इनमें से एक ने दरवाज़े पर दस्तक दी। अंदर से दरवाज़ा खोलकर एक शख्स तेजी से बाहर भागा और भीड़ धड़धड़ाते हुए अंदर घुसी। यानी, पहले से ही हमलावर घर में घुस चुके थे और इशारा मिलते ही दरवाज़ा खोल दिया। मेरे कैमरामैन भी फुर्ती दिखाते हुए इनके साथ अंदर दाखिल हो गया। मैंने कैमरामैन को कैमरे बंद न करने का निर्देश दे रखा था. कैमरामैन ने अंदर जाकर देखा कि पहले से ही अंदर मौजूद हमलावरों के दो लोग पादरी को बुरी तरह पीट चुके थे।
मैं राजस्थान के उन चुनिंदा टीवी पत्रकारों में शुमार हूँ जो इन हिन्दू संगठनों के ऐसे कारनामों के खिलाफ आवाज़ उठाने के कारण हमेशा इनके निशाने पर रहते हैं, लिहाजा मैं घटनास्थल से दूर खड़ा था। फिर मैं भी घर के अंदर दाखिल हो गया। मुझे देखकर हमलावर बेतहाशा बाहर की तरफ भागे। ये वाकया इतने कम वक्त में हुआ कि हम भी अवाक थे। हमारे पास पूरे घटनाक्रम का शूट है जो मुश्किल से 70-80 सेकेण्ड का है। और इसी दौरान इन्होंने उस घटना को अंजाम दिया जिसका अंदेशा हमें बिल्कुल नहीं था।
उस दृश्य को देखने के बाद मेरा हाथ-पैर कांप रहा था। अपने पत्रकारिता के जीवन में इतनी बर्बर घटना मैंने पहली बार देखी थी। मैं सीधे अपने कार्यालय की ओर भागा और अपने मुख्यालय को घटना की जानकारी देने के बाद पुलिस अधीक्षक को फोन करके घटना की जानकारी और घटनास्थल का पता दिया।
सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए मैंने पुलिस को अपने कार्यालय बुलाकर अपना पूरा कवरेज दिखाया और भगवा गुंडों की पहचान करवाई। एसपी ने हमसे हमलावरों में से किसी का नाम बताने को कहा। इसके बाद जैसे ही मैंने ईटीवी राजस्थान पर वीएचपी के महानगर मंत्री वीरेन्द्र सिंह रावणा को बयान देते सुना, मैंने फौरन एसपी को फोन लगाकर बताया कि यही वो शख्स है जो हमलावरों की अगुवाई कर रहा था। एसपी ने कहा कि वो हमलावरों के इस मुखिया की पहचान कर चुके हैं।
अहम सवाल ये है कि पादरी के घर का घेराव इन कार्यकर्ताओं ने दिन में 11 बजे से कर रखा था और मुख्यमंत्री निवास से एक किलोमीटर दूर हो रही इस घटना की जानकारी पुलिस को नहीं थी। अगर ये ख़बर हम तक न पहुँचती और हम तुरंत मौके पर न पहुँचते तो कमरा बंद करके पादरी को बेरहमी से पीट रहे ये लोग वहाँ से भाग खड़े न होते। सवाल ये भी है कि अगर हमारे कैमरे में इनके चेहरे क़ैद न हुए होते तो शायद इनके चेहरे कभी बेनकाब भी न होते और न ही इस घटना की जानकारी पुलिस को हो पाती। और हर बार की तरह इस बार भी अख़बार में चार लाइन लिख दी जाती कि शहर के एक पादरी पर अज्ञात लोगों ने हमला किया। चेहरा सामने आने के बाद जब ये लोग घटना में शामिल होने की बात नकार रहे हैं, तो भला मीडिया वहाँ न होता तो ये क्या करते इसका अंदाजा तो आसानी से लगाया जा सकता है।
हमलावरों की तस्वीर दिखाने के बाद, उनके नाम बताने के बाद भी पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की तो अगर मीडिया वहाँ न होता तो पुलिस हिन्दू तालिबानियों को बचाने के लिए क्या न करती। अगर मैं ये कहूँ कि हमारी उपस्थित के कारण ही पादरी की जान बची तो इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
संघ परिवार से जुड़े संगठन और बीजेपी समेत उनके समर्थक अख़बार मीडिया की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। ये उनकी पीड़ा है। उन्हें इस बात का दुख है कि हर बार की तरह वो ईसाई मिशनरी को पीट कर बच नहीं सके और कैमरे में क़ैद हो गए।
(साभार: शरत कुमार, आज तक जयपुर)
टिप्पणियाँ
मैं यह मानता हूं कि कई बार क्या लगभग हमेशा ही किसी स्टोरी के पीछे छिपी कहानी सामने नही आती जो सामने आती है वह सिर्फ़ स्टोरी ही होती है, और इस स्टोरी को देख कर मन में ऐसे सवाल उठने स्वाभाविक थे। क्योंकि टी आर पी बढ़ाने के चक्कर में करीब करीब सभी खबरिया चैनल किस हद तक जा सकते है यह बात पहले ही सामने आ चुकी है।
शरत जी तक मेरी बात पहूंचे, आपका आभार शरत जी। आशा है मेरी उस पोस्ट को अन्यथा नहीं लेंगे।
शुभकामनाएं