किसने बनाया इन्हें ठेकेदार
कलाकार चन्द्रमोहन आखिर रिहा हो गये। आज बड़ौदा में देश और विदेश के माहरीन कलाकार, इस देश की विभिन्नता का सम्मान करने और बचाये रखने की वकालत करने वाले जुटे। वे एमएस यूनिवर्सिटी बड़ौदा के फाइन आर्ट के अंतिम वर्ष के छात्र चन्द्रमोहन को इस बिना पार गिरफ्तार कर लिया गया कि उन्होंने इम्तहान के लिए जो कलाकृति बनायी, वो धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली हैं। यही नहीं इन विद्यार्थियों का साथ देने वाले डीन शिवजी पणिक्कर को बर्खास्त कर दिया गया और वह जान बचाये फिर रहे हैं। जिस शख्स ने हंगामा करने वालों की अगुवाई की, उस शख्स पर सन् 2006 में बड़ौदा में हुए दंगे में भी शामिल होने का आरोप है। इस घटना के बाद कला विभाग के विद्यार्थी लगातार प्रदर्शन कर रहे थे।
आज पूरे देश के कलाकार वहां पहुँचे तो उन्हें एबीवीपी और विहिप के कार्यकर्ताओं के हंगामे का सामना करना पड़ा। एक हजार से ज्यादा माहरीन कलाकारों को पुलिस ने प्रदर्शन नहीं करने दिया। यही नहीं पुलिस ने इनके विरोध में जुटे करीब पचास अतिवादियों का हंगामा चुपचाप देखती रही। इसने साफ साबित कर दिया है कि किस तरह राज्य का तंत्र उन लोगों के साथ हैं, जो हंगामा कर रहे हैं।
प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली से गये इसी विश्वविधालय से 21 साल पहले पढ़े चित्रकार अमिताभ पाण्डेय का कहना है कि यह कौन तय करेगा कि क्या सही है, क्या गलत। कोई भी आकर कलाकारों को निर्देश दे जायेगा। इन्हें किसने कला ठेकेदार बना दिया। कोई भी गुण्डा आकर हमें निर्देश दे जायेगा, हम इसे सहन नहीं करेंगे। लेकिन हमारा विरोध, उनकी तरह नहीं होगा। हम कलाकारों को मालूम है कि क्या सही है, क्या गलत।
इस घटना ने कई और सवाल खड़े कर दिये हैं। भारतीय दण्ड संहिता की जिस धारा के तहत चन्द्रमोहन को गिरफ्तार किया गया वह धारा किसी पर तभी लग सकता है जब राज्य या केन्द्र सरकार इसकी इजाजत दे। हुसैन के मामले में भी यही सही है। यह उन्हीं परिस्थितियों में लग सकता है जब राज्य या केन्द्र को लगे कि किसी ने धार्मिक भावनाओं को जानबूझ कर भड़काया है।
यही नहीं ऐसा कैसे हुआ कि जिस जज को जमानत देनी थी, वह दूसरे ही दिन से छुट्टी पर चला गया। विश्वविद्यालय के वीसी की भूमिका पर भी संदेह है क्योंकि उन्होंने विहिप नेताओं के कहने पर डीन को हटाया और चन्द्रमोहन के लिए कुछ नहीं किया। क्या यह सब एक तंत्र का हिस्सा नहीं लगता। जहां चंद मुट्ठी भर लोग सड़क पर गुण्डागर्दी करते हैं और उसे धर्म रक्षा का नाम देकर राज्य की मशीनरियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
खैर। विद्यार्थियों का कहना है कि जब तक बर्खास्त डीन को बहाल नहीं कर दिया जाता, उनका विरोध जारी रहेगा।
आज पूरे देश के कलाकार वहां पहुँचे तो उन्हें एबीवीपी और विहिप के कार्यकर्ताओं के हंगामे का सामना करना पड़ा। एक हजार से ज्यादा माहरीन कलाकारों को पुलिस ने प्रदर्शन नहीं करने दिया। यही नहीं पुलिस ने इनके विरोध में जुटे करीब पचास अतिवादियों का हंगामा चुपचाप देखती रही। इसने साफ साबित कर दिया है कि किस तरह राज्य का तंत्र उन लोगों के साथ हैं, जो हंगामा कर रहे हैं।
प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली से गये इसी विश्वविधालय से 21 साल पहले पढ़े चित्रकार अमिताभ पाण्डेय का कहना है कि यह कौन तय करेगा कि क्या सही है, क्या गलत। कोई भी आकर कलाकारों को निर्देश दे जायेगा। इन्हें किसने कला ठेकेदार बना दिया। कोई भी गुण्डा आकर हमें निर्देश दे जायेगा, हम इसे सहन नहीं करेंगे। लेकिन हमारा विरोध, उनकी तरह नहीं होगा। हम कलाकारों को मालूम है कि क्या सही है, क्या गलत।
इस घटना ने कई और सवाल खड़े कर दिये हैं। भारतीय दण्ड संहिता की जिस धारा के तहत चन्द्रमोहन को गिरफ्तार किया गया वह धारा किसी पर तभी लग सकता है जब राज्य या केन्द्र सरकार इसकी इजाजत दे। हुसैन के मामले में भी यही सही है। यह उन्हीं परिस्थितियों में लग सकता है जब राज्य या केन्द्र को लगे कि किसी ने धार्मिक भावनाओं को जानबूझ कर भड़काया है।
यही नहीं ऐसा कैसे हुआ कि जिस जज को जमानत देनी थी, वह दूसरे ही दिन से छुट्टी पर चला गया। विश्वविद्यालय के वीसी की भूमिका पर भी संदेह है क्योंकि उन्होंने विहिप नेताओं के कहने पर डीन को हटाया और चन्द्रमोहन के लिए कुछ नहीं किया। क्या यह सब एक तंत्र का हिस्सा नहीं लगता। जहां चंद मुट्ठी भर लोग सड़क पर गुण्डागर्दी करते हैं और उसे धर्म रक्षा का नाम देकर राज्य की मशीनरियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
खैर। विद्यार्थियों का कहना है कि जब तक बर्खास्त डीन को बहाल नहीं कर दिया जाता, उनका विरोध जारी रहेगा।
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