नहीं रहना नारद के साथ, बाहर करें
वह बात जिसका सारे फ़साने में जिक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है
यह सेंसरशिप नहीं, तानाशाही है। सत्ता की तानाशाही। तकनीक की सत्ता की तानाशाही। मानवीय इतिहास के सबसे लोकतांत्रिक ज़रिये इंटरनेट पर जानकारी के प्रवाह को अपनी मुट्ठी में करने की तानाशाही। पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ को भी ऐसी ही तानाशाही की सूझी है। सक्रिय ब्लॉगिंग के डेढ महीने में मैंने ऐसी कई तकलीफदेह चीज़ें देखीं। वरिष्ठ ब्लॉगरों से अपना दर्द भी बांटा। पर हालात दिन प्रति दिन बिगड़ते जा रहे हैं।
नहीं तो यह कैसे सम्भव है कि कुछ लोग लगातार अनर्गल प्रलाप करें। खुलेआम लोगों को देख लेने की धमकी दें। कुछ लोग ऐसे ब्लॉगर को उकसाने में लगे रहे, उन पर 'बिलो द बेल्ट' हमला करें, जो खामख्वाह की ओछी व्यक्तिगत राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाह रहे... कुछ लोग किसी भी लेखक-साहित्यकार की आलोचना करना तो दूर उसे सारी दुनिया के सामने नंगा कर दें ... कोई किसी की उपमा राखी सावंत से दे दे... कोई किसी का नाम देखकर उसे कट्टरपंथियों की जमात में खड़ा कर दे तो कोई एक नौजवान को अबू सलेम और दाऊद का साथी बता दे... और यह कहे कि यही लोग बम फोड्ते हैं... सिर्फ इस बिना पर कि उस टिप्पणीकार के नाम के आखिर में खान लिखा है... फिर भी संस्कारों के रक्षक मठाधीशों के कान पर जूँ न रेंगे... फिर भी कुछ न हो। खुले आम एक विचार, जिसके बारे में यह साफ है कि इसने नफरत के बीज बोये हैं, उसकी प्रशस्ति गायी जाये और मठाधीश भी समवेत स्वर में कोरस बन जायें ... तब तो सब ठीक रहता है ... प्रगतिशीलता का दावा करने वाले लोग भी चुप्पी लगा जाते ... लेकिन जहां किसी ने इनके विचार से इधर उधर लिखा, इनका कोरस उस पर हमलावर हो जाता है... उसके ब्लॉग पर नहीं तो कहीं और अपनी भंडास निकालता फिरता है... इस बीच मंगलवार को एक ब्लॉग कुछ लिखता है, जो इन लोगों को पसंद नहीं आया ... तो उसे हिन्दी को समृद्ध करने के नाम पर 'नारद समूह' से निकाल दिया गया। उस पोस्ट के बहाने, सभी ब्लॉगों की भाषा पर बात की जा सकती थी, संवाद शुरू किया जा सकता था। टिप्पणियों के ज़रिये लोग अपनी राय दे रहे थे और दे सकते थे... फिर ऐसा क्यों।
ऐसा इसलिए क्योंकि उस पोस्ट की भाषा तो महज बहाना भर है। वह विचार, इस समूह को लगातार खटक रहा था, जिस विचार का हामी उस पोस्ट का रचियता है। इस समूह से जुड़े लोगों की विभिन्न ब्लॉगों पर टिप्पणी देखें तो आपको अंदाजा लग सकता है कि वास्तव में इनके स्व नाम धन्य कर्ता धर्ता किस विचार के हामी हैं।
और तो और... सबसे बढ़कर इस बात का दम्भ कि हम ही आपके पोस्ट पर हिट्स दिलवा सकते हैं। नारद है, तो आप हैं, वरना आप टुटपूँजिया ब्लॉगरों की क्या हैसियत- यह सत्ता का नशा है, जो तानाशाहों के दिमाग में ही होता है। मुशर्रफ के दिमाग जैसा।
'बाजार में अवैध अतिक्रमण' नाम के जिस चिट्ठे को नारद से निकालने का एलान किया गया, उस एलान की भाषा में तानाशाही का दम्भ देखें 'हम किसी चिट्ठाकार का चिट्ठा तो बन्द नही करा सकते लेकिन नारद के माहौल को साफ़ सुथरा रखने के लिए उस चिट्ठाकार का चिट्ठा नारद से हटा सकते है। आज ही हमे एक ऐसा कड़ा फैसला हमे लेना पड़ा है।' यानी इनका बस चलता तो यह 'रियल' की बात क्या करें यह 'वर्चुअल वर्ल्ड' से भी अपने विरोधियों का अस्तित्व खत्म कर देते। और तो और जरा दावा देखें 'हम इन्टरनैट पर हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए एक साथ है, लेकिन यदि किसी भी तरह की गलत भाषा सहन नही की जाएगी। आशा है हमारे इस फैसले मे सभी चिट्ठाकार हमारे साथ है।' यह तकनीक को अपने हाथ में नियंत्रण करने की तानाशाही है। लेकिन शायद इन्हें पता नहीं कि एकलव्य कैसे बनते हैं।
बाकियों का मैं नहीं कह सकता पर मैं नारद के इस फैसले के साथ नहीं हूँ। मैं लिखता हूँ तो किसी के रहमो करम पर नहीं लिखता। न ही चाहता हूँ कि कोई अपने दिल की बात किसी के रहमो करम पर लिखे। मैं नारद की वजह से ब्लॉगिंग की दुनिया में नहीं आया। ब्लॉगिंग की वजह से मैं नारद तक पहुँचा था। मैं आपकी चाकरी भी नहीं करता कि कोई मजबूरी हो। हालांकि चाकरी कराने वाले ने भी आज तक ऐसी शब्दावली और धमकी का प्रयोग नहीं किया है।
मेरे लिए हिन्दी ब्लागिंग में 12 जून का दिन काला मंगलवार के रूप में रहेगा। मैं न तो नारद के विचार से और न ही नारद के फैसले से सहमत हूँ। इसलिए आप मेरे ब्लॉग पर अपनी रहम दिखलाना बंद करें और ढाई आखर को नारद समूह से हटा दें। क्योंकि कल मेरा लिखा आपको पसंद नहीं आयेगा (जैसा कि कई दोस्तों को नहीं आ रहा है) और आप इकट्ठा होकर मुझे भी यूं ही बेइज्जत करके हिन्दी विरोधी, भाषा विरोधी, संस्कारहीन साबित कर देंगे। इसलिए मैं एतद् द्वारा घोषणा करता हूं कि 'ढाई आखर' नारद के साथ नहीं है। मुझे नारद के हिट्स की दरकरार नहीं है। मैं इस घुटन के माहौल से बाहर आकर खुल कर सांस लेना चाहता हूं और वो लिखना चाहता हूँ जो लिखने का दिल चाहे। अंत में यह याद दिलाते हुए अपनी बात खत्म कर रहा हूँ- जो तटस्थ रहेंगे, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
नोट- जिन दोस्तों को ढाई आखर से परहेज नहीं है, वे ऊपर के लिंक के जरिये हमारे दोस्त बनें ताकि उन्हें इस ब्लॉग की ताजा जानकारी मिलती रहे।
टिप्पणियाँ
बस एक इमेल लिख देते, कि आपके ब्लॉग को नारद से हटा दिया जाए।
आप इमेल भेज रहे है क्या?
और नारद मुनि जी, अब आपको पोस्ट लिखने पर भी ऐतराज है। सलाह के लिए शुक्रिया, बंदा आपके हुक्म की तामील करेगा। ई मेल जरूर मिलेगा। हम सुबह से बिजली का संकट झेल रहे हैं। अगर ई मेल न कर पाये तो एक बार और याद दिला देंगे।
बहादूर हो तो मेल करो नारद को.
मुझे तो यह अनर्गल प्रलाप सा लग रहा है। ऐसा कौन सा अपराध नारद ने किया है? सभ्यता से बात करना किसी भी फोरम के लिये आवश्यक है।
आपका
दीपक भारतदीप
भगत सिंह को शौक था नहीं बम फोडने का,लेकिन उन्होंने बहरों को सुनाने के लिए बम फोडे थे.
हर धमाकों के पीछे "नारद" जैसे पढे लिखे षडयंत्रकारी शामिल हैं.
दाउद इब्राहिमीय,लादेनीय,बजरंगीय "नारद" कहीं भारत विरोधी दस्ता तो नहीं जो अपनी मर्ज़ी को ही कानून बना डालता है ?
नसीर भाई अविनाश और सागर पर जब इस तरह का दबाब डाला गया था तब कहा था फिर दोहरा रहा हूँ- हिदीं चिट्ठाकारी आप लोगों से है- मत भेजिए मेल फिर भी वही लिखिए जो चाहते हैं- हमें आपकी बातों में किसी 'गंदे नैपकिन' जैसी शैली नहीं दिखाई देती फिर भला क्यों आप हटें
पर समझ नहीं आता कि क्यों नारद उकसाकर मेल मंगा रहा है ? चिट्ठों के बिना नारद चलाने की ऐसी भी क्या जिद है।
मुझ पर किसी ने किसी तरह का कोई दबाव नहीं बनाया था,किसी पर बेवजह आरोप ना लगायें।
मैं अपने आपको मुसलमानों का हत्यारा कहे जाने की वजह से स्वैच्छिक ही नारद से हटा था, और जो कुछ कल हुआ है वह दो महीने पहले ही हो जाता तो आज इस विवाद की नौबत नहीं आती।
आशा है मेरी बात आप समझ गये होंगे।
मैं नारद द्वारा की गई कार्यवाही का समर्थन नारद उवाच पर कर चुका और यहाँ भी करता हूँ। अगर कल को मैं भी कोई इस तरह की हरकत या गाली गलौज करता हूँ तो बेशक मेरा चिट्ठा नारद से हटा दिया जाना चाहिये। बाकी परिवार में रहते हैं तो सफाई का दायित्व जिन पर है उन्होने थोड़ी सफाई करी है तो हमें तकलीफ नहीं होनी चाहिये।
धन्यवाद।
आपकी टिप्पणी पोस्ट करने मे देरी होने के लिए माफ़ी चाहता हूँ। दो दिनों से लगातार बारिश हो रही है, जिसकी वजह से बिजली, टेलीफोन सब ध्वस्त है। हालांकि आपको लिखने के दौरान एक चूक हुई और यह पोस्ट के रूप में चला गया था। फिर मैंने हटाया और नारद से भी हटाने की गुजारिश कर दी है।