आइये मौसम की बात करें

देखो रंग बदल रहा है आसमान का
मौसम बदल रहा है। पिछले दिनों की तपिश, लू... पछिया और पुरवैया का ज़ोर... गर्मी के मारे घर के अंदर कुलबुलाते लोग... पसीने से तरबतर जिस्म। जगह-जगह से लू की वजह से लोगों के मरने की खबर। ... लेकिन मंगलावर की देर शाम और फिर बुधवार की भोर से मौसम ने अपना मिजाज़ बदला... और पिछले दो दिनों से लगातार बारिश हो रही है... एकाएक मौसम बदल गया ... हिन्दुस्तानी मौसम ऐसे भी एक जैसे कहाँ रहते हैं। जहाँ रहते हैं, वैसी जगहें आप उँगली पर गिन सकते हैं और उनके मिजाज़ को भी भाँप सकते हैं।

मौसम बदला तो जहाँ पहले कूलर और एसी भी ठंडक पहुँचाने में नाकाम थे, वहीं गुरुवार को तो एक वक्त ऐसा आया कि पँखे की हवा में भी खुनकी का अहसास होने लगा। हालाँकि हम शहरी लोग जितनी तेज़ गर्मी से घबराते हैं, उतनी ही तेज बारिश से भी। जब तक बारिश नहीं हुई थी, सबको बारिश का इंतज़ार था... हाय गर्मी... हाय गर्मी... जिससे मिलो वही सवाल पूछ लेता... यार, मौनसून कब आ रहा है... केरल में आया क्या... कलकत्ता में तो बारिश हो गयी... यहाँ कब। और अब ... दो दिन की बारिश में लोग कहने लगे, ये बारिश कब बंद होगी... बहुत बारिश हो गयी। यह शहरी मिजाज़ है, स्थिर नहीं रहता। किसी मामले में भी नहीं। बहुत जल्दी उकताने लगता है। सचाई से कतराने लगता है।

शहरी मिजाज़ इतना ज्यादा गतिशील रहता है कि प्रकृति की गति को भी अपने ही मुताबिक चलाना चाहता है। ... पर प्रकृति को अपने मुताबिक कौन चला पाया है? जिन शक्तियों ने चलाने की कोशिश की उन्हें अब प्रकृति बचाने के लिए जी आठ की बैठक करनी पड़ रही है। पर शिखर सम्मेलनों के शिखर पुरुषों से कब मानी है प्रकृति, जो अब मानेगी। उसे तो अपने को धारण करने वाले उन करोड़ों बेटे-बेटियों पर भरोसा है, जो सदियों से निस्वार्थ भाव से उसे सँजोते आये हैं, उसकी विभिन्नताओं पर रश्क करते आये हैं... बचाने के लिए लड़ते आये हैं... उसे तो असंख्य की शक्ति पर ही यकीन है... संख्य पर नहीं।

अभय जी ने बताया मुम्बई में मानसून आ गया है... बारिश हो रही है... दुआ करें इस बारिश में पहले की तरह सारे कचरे फिर ऊपर न उफना जाये ... आइये नालियाँ साफ करें... पर ईमानदारी से... ऐसा नहीं कि हम तो साफ करें और आप अपनी गंदगी जस की तस रखें... ऐसे में नाली फिर उफना जायेगी... तो आइये मौसम की बात करें... बदले मौसम की... बदले मिजाज़ की ताकि कोई असहज न हो... ताकि सवालों से बचा जा सके... ताकि कहा जा सके... छोड़िये कहां पड़े हैं चकचक में... मौसम की बात कीजिये... सुहाने मौसम की... पर पता है... मौसम भी निरपेक्ष नहीं है... जी हां...

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
दोस्तों आप को सलाम
dhurvirodhi ने कहा…
मौसम ने दिल्ली में भी पैर रख दिये हैं
अभय तिवारी ने कहा…
बढि़या पोस्ट लिखी नासिर.. मौसम के साथ दिल को भी बड़ी ठण्डक पहुँची..
हरिराम ने कहा…
यह सही लिखा है कि 'प्रकृति ने शिखर पुरुषों की कब मानी है..." किन्तु प्रकृति को बिगाड़ा भी तो मानव ने ही है, वह चाहे तो इसे अब सुधार भी सकता है, ग्लोबल वार्मिंग से बचा जा सकता है कुछ विशेष उपाय करने का प्रयास करके।

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