ये डरे हुए लोग हैं

इंदू जी ने तस्लीमा के इंटरव्यू और हमले के बारे में डाले गये पोस्ट पर लम्बी टिप्पणी की है। हालांकि जब मैं उनके ब्लॉग बतकहियां-इंदू पर गया तो मुझे उनकी कोई पोस्ट नहीं दिखी। मुझे लगा कि क्‍यों न इंदू जी कि इस टिप्पणी को उनके पहले पोस्ट का दर्ज़ा मिले। इंदू जी ने क्या कहा, आप भी पढ़ें-

तसलीमा पर हमला कोई अचरज की बात नहीं है.... यही तो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की खासियत है। अगर हमें ये लगता है कि देश मे कोई राजनीतिक पार्टी इसके खिलाफ बोलेगी तो हम मुगालते में जी रहें हैं, क्योंकि वोट्स पर आधारित राजनीति में किसी विचार धर्म या व्यक्ति की महत्ता नहीं है, वोटों के लिए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं.....लेकिन तथाकथित प्रगतिशील ताकतें, महिला संगठन, बुद्धिजीवी क्यों नहीं खुलकर बोलते इस हमले के खिलाफ, विशेष रूप से औरतें...

तस्लीमा, हो सकता है एक अच्छी लेखिका न हो, लिटरेरी भी न हो, ज्यादा बोल्ड हो, तो भी उन्होने धर्म की मूलभूत बुराइयों पर चोट करने का साहस किया, यह साहस की ही बात कही जायेगी । रुश्दी और तस्लीमा के लेखन से हमें असहमति हो सकती है, लेकिन अभिव्यक्ति का जवाब हमले से देना तो असभ्यता ही नहीं, मध्ययुगीन बर्बरता की ही तरफ इशारा करता है।

ज़रूरत इस बात की है कि ऐसे माहौल में प्रगतिशील सोच वाले लोग खुलकर अपनी आवाज़ मुखर करें। अगर मुस्लिम औरतें तस्‍लीमा के पक्ष में आगे आयें तो धर्म के इन ठेकेदारों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकता है। साथ ही इसका ज़्यादा प्रभाव पड़ सकता है।

दरअसल ये लोग बहुत डरे हुए हैं, जो किसी लेखक या एक्टिविस्ट पर इस तरह चोट पहुंचाने की कोशिश करते हैं। इनका डर ही है, जो इन्हें ऐसे हमले करने को उकसाता है। इन डरे हुए लोगों से क्यों घबराया जाये। इन्हें जो करना है, ये करेंगे, लेकिन इन्हें ये भी अहसास दिलाना ज़रूरी है कि तस्लीमा अकेली नहीं हैं। हिंदुस्तान की हज़ारों औरतें उनके हक में बोलने को तैयार हैं।

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