(दोस्तो, तकनीकी कारणों से इसे दोबारा पोस्ट करना पड़ा। तकलीफ के लिए माफी।)राम के नाम पर एक बार फिर तनातनी ज़ारी है। हिन्दुत्ववादी अपने-अपने खोल से निकल आये हैं। हिन्दुत्ववादियों और हिन्दू मज़हब मानने वालों में फ़र्क़ है। हिन्दुत्व, एक राजनीतिक विचार है, जो दूसरे मज़हब वालों के साथ नफरत की बुनियाद पर टिका है। ठीक उसी तरह, जिस तरह तालीबानी एक राजनीतिक विचार है, और मज़हब उस विचार को फैलाने का महज़ एक सहारा। जिस तरह तालीबानी ही इस्लाम की नुमाइंदगी नहीं करते, उसी तरह हिन्दुत्ववादी, इस मुल्क के हिन्दू दर्शन के नुमांइदे नहीं हैं। महात्मा गांधी की तरह जो हिन्दू धर्म पर यकीन रखते हैं, उनके आचार-व्यवहार में नफ़रत की कोई जगह नहीं है। उनके लिए राम आराध्य हैं। नैतिकता के प्रतिमान। मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनके लिए राम, सत्ता के गलियारों में पहुंचने का साध्य नहीं। न ही राम का नाम, उनके लिए नफ़रत की फ़सल बोने और काटने का ज़रिया है।
हिन्दुस्तान में राम कथा, पर एकाधिकार भी किसी एक मज़हब का नहीं है। इस हिन्दुस्तान में खास तौर से उत्तर भारत में ऐसा शख्स मिलना मुश्किल है, जिसे राम कथा या राम कथा के किरदारों के बारे में पता न हो। फिर यह कौन लोग हैं, जो राम के नाम पर तलवारें भांज रहे हैं। नथूने फड़का रहे हैं और आंखें तरेर रहे हैं। यह तलवार किसके हक में है और किसके खिलाफ।
गंगा की गोद में पला-बढ़ा, मेरे जैसा शख्स हर सुबह 'जय राम जी की' के सलाम के साथ बड़ा हुआ है। हालांकि बड़े होने पर डराने के लिए उसी राम के सलाम को बदलकर 'जय श्री राम' का डरावना युद्ध घोष बना दिया गया। फिर भी मेरे जैसे लोगों ने 'जय श्री राम' और 'जय राम जी की' के फर्क को बख़ूबी याद रखा है। हम जैसों ने उस राम को याद रखा है, जिसने शबरी से नफरत नहीं की। निषाद राज को प्यार दिया। जिसने मर्यादा की खातिर, राजगद्दी तज दी।
क्या उसके बाज़ुओं में इतनी ताक़त न थी कि जंगल-जंगल फिरने की बजाय, वह युद्ध का एलान कर अपनी गद्दी का हक़ छीन लेता... पर उसे तो मिसाल कायम करनी थी... उसने की... गद्दी तजी... गद्दी के लिए बेगुनाहों और बेक़सों का ख़ून नहीं किया...। ... और इनके नाम पर कॉपीराइट का दावा करने वालों ने क्या किया... यह बताने की जरूरत है क्या।
राम, हम बिहारियों के दामाद भी हैं। ... इस बात पर तथाकथित ठेकेदार हमें धर्मद्रोही करार दें, तब भी मुझे फर्क नहीं पड़ता। हम बिहारियों को अपने जमाता पर गर्व भी है और शिकायत भी... जी हां शिकायत... उन्होंने हमारी सिया सुकुमारी को जंगलों जंगलों की ख़ाक छनवायी... आप कह सकते हैं कि यह पतिधर्म है... पर हम तो अपनी बेटी को देखेंगे... उसकी तकलीफ से हमें तकलीफ होती है भई...उसके नाज़ुक पांवों में कांटा चुभता है, तो दर्द हमें भी होता है जनाब... हमें तो यह भी शिकायत है कि 'पाहुन' आपने अग्निपरीक्षा के बाद भी हमारी बेटी तज दी... हम तो खूब शिकायत करेंगे... पर पाहुन हैं तो मान भी उनका ही करेंगे... हम जानते हैं कि उन्हें और भी बड़े काम करने थे। यह राम हमारे खून में हैं, जनाब हिन्दुत्ववादी। इसका न तो हमारे मज़हब से कोई लेना देना है, न उस राम के मज़हब से। वो हमारी विरासत हैं।
राम ने एक बार इनकी वैतरणी पार लगा दी।... उस कारामाती को भी इनकी हकीकत पता चल गयी है। अब देखना है कि आखिर में किसकी जीत होगी... 'जय राम जी कै' या 'जय श्री राम की'।
(टिप्पणी करने से पहले ऊपर दाहिने कॉलम में लिखी गयी गुज़ारिश को ज़रूर पढ़ें। उस पर अमल करेंगे तो अच्छा लगेगा)
टिप्पणियाँ
avinash said...
आपने बहुत अच्छा लिखा है। राम के लिए हमारे यहां गाते भी हैं- रे पहुना, मिथिले में रहना। लेकिन ये हिंदुत्ववादी तो इस पहुना को इतना डुला रहे हैं कि बेचारे जहां कहीं होंगे, गाली ही दे रहे होंगे।
September 21, 2007 4:34 PM
राम क्या हैं .. सबके अपने-अपने तर्क हैं, भावनाएं हैं पर क्या हर बात को तर्क और ऐतिहासिकता की कसौटी पर ही तौला जाना चाहिए ? राम मेरे मन में हैं, मेरी निजी श्रद्धा का विषय हैं , लेकिन मैं इसका ढिंढोरा नहीं पीटता चलूंगा ।
राम मेरे लिए वो पुरूष हैं, जिन्होंने हमारी इस तथाकथित 5/50 हजार सालों के इतिहास में शायद पहली बार आदमी को आदमी के बराबर समझा.. जिन्होंने पिछड़ों,दबे-कुचले लोगों , औरतों को आवाज दी.. जिन्होंने आतंक पीड़ित मानवता को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।
अब इसे हम पर, आप पर, लोगों पर है कि राम को किसी मजहब-धर्म विशेष के संदर्भ में लें आम भारतीय की सामान्य समझ के तौर पर ।
आज के संदर्भ में इसे लें, तो बाजार को हम आज का रावण कह सकते हैं .. जॉर्ज बुश, बिल गेट्स, अंबानियों को उसके दरबारी.. आम जनता आज की सीता है जिसका रोज हरण हो रहा है.. मानवता के लिए काम करने वाले लोगों को वानर यूथों की भी संज्ञा दे सकते हैं, जो बिखरे पड़े हैं.. लेकिन राम, हनुमान की प्रतीक्षा है।
वैसे ये अलग बहस का विषय है कि हम हिंदुस्तानियों को हर बात में नायकों की ही तलाश क्यों रहती है।
हालांकि हमारी सिया सुकुमारी को दिए गए देश निकाले को बस एक ही बात से हमारे खट्टर काका ने माफ कर दिया था कि हमारे पाहुन आजीवन एक पत्नीव्रत ही रहे.. तो हम भी माफ करते हैं
आपने बहुत अच्छा लिखा है ।