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अक्तूबर, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मायावती की कहानी मायावती की जुबानी

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वे यहाँ रहने वाली हैं... आप पसंद करे या नापसंद... वे हकीकत हैं... देश की पहली दलित मुख्यमंत्री हैं... पहली महिला मुख्यमंत्री हैं, जो चार बार इस पद तक पहुँची... शायद पहली दलित और दूसरी महिला हों, जो देश की बागडोर भी सम्हाल लें। जी हाँ, बात उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुशी मायावती की हो रही है... पिछले दिनों अंग्रेजी की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘न्यूजवीक’ ने उन्हें विपरीत हालात में शिखर तक पहुँचने वाली योग्य महिलाओं की वैश्विक सूची में शुमार किया है। पत्रिका ने बहिन जी की कहानी, उन्हीं की जुबानी छापी है। हम ‘ढाई आखर’ के पाठकों के लिए इसे न्यूजवीक से अनुवाद कर इसे साभार यहाँ पेश कर रहे हैं। मैं यहां तक कैसे पहुँची मैं दिल्ली में रहने वाले एक दलित परिवार में पैदा हुई। आठ भाई-बहनों के साथ एक घनी आबादी और भीड़-भाड़ वाले मोहल्ले में पली बढ़ी। मेरे पिता क्लर्क थे और निहायत ही कम  वेतन पाते थे। मेरी अनपढ़ माँ,  परिवार को चलाने के लिए कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहती थीं। अक्सर हम अपनी छुट्‌िटयाँ उत्तर प्रदेश की अपने पुश्तैनी गाँव में बिताया करते थे। इन्ह...

कहते हैं तुमको ईद मुबारक हो जानेमन

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त्‍योहार हो और नज़ीर की याद न आये मुमकिन नहीं। नज़ीर अकबराबादी ने जैसी शायरी की है, वो शायरी वही शख्‍स कर सकता है, जिसे हिन्‍दुस्‍तान की गंगा जमनी तहजीब की न सिर्फ समझ हो बल्कि जो इसमें पूरी तरह डूबा हुआ हो। अठाहरवीं सदी के शुरुआती दौर (सन् 1735) के इस शायर के बारे में, आप कितना जानते हैं, मुझे नहीं मालूम। ईद के खुशनुमा मौके पर ढाई आखर के लिए पाठकों के लिए पेश है नजीर की नज्‍म ईदुलफित्र। पढ़ें और ईद के माहौल का मज़ा लें। है आबिदों को ताअतो-तजरीद की खुशी। और ज़ाहिदों को ज़ुहद की तमहीद की खुशी। रिंद आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी। कुछ दिलबरों के वस्‍ल की कुछ दीद की खुशी। ऐसी न शब्‍बरात न बक़रीद की ख़ुशी। जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी। ( आबिद- उपासक, इबादत करने वाला, भक्‍त। ताअतो तजरीद - उपासना, आराधना, इबादत। ज़ाहिद- कर्मकाण्डियों। ज़ुहद - धार्मिक कृत्‍य, संयम। तमहीद - पालन। रिंद - रसिया, धार्मिक बंधनों से मुक्‍त। दिलबर- प्रेमपात्र। वस्‍ल- प्रेमी प्रेमिका का मिलन। दीद- दर्शन, दीदार।) रोज़े की ख़ुश्कियों से जो है ज़र्द-ज़र्द गाल। ख़ुश हो ग...

जगी इंसाफ की आस

उम्‍मीद जगी है। श्रावस्‍ती के धन्‍नीडीह की 50 महिलाओं को अपनी आवाज हाकिमों को सुनाने के लिए तीन महीने का इंतजार करना पड़ा। अपने साथ हुए जुल्‍म और यौन हिंसा की बात सुनाने के लिए इन औरतों को सड़क पर उतरना पड़ा था। इस आजाद मुल्‍क में चिल्‍ला-चिल्‍लाकर वो अपने से होने वाली जुल्‍म ओ ज्‍यादती का बयान कर रही थी, पर हाकिम उनकी बात नहीं सुन रहे थे। जब सब्र का बांध टूटा तो वे अपनी पहचान बताने में नहीं हिचकीं। फिर भी कुछ नहीं हुआ। सामाजिक संगठनों ने आवाज उठायी, वहां से लौटकर जांच रिपोर्ट दी। बम्‍बई से तीस्‍ता सीतलवाड आयीं। आखिरकार इन औरतों की तरफ से अदालत का दरवाजा खटखटाया गया। सीबीआई जांच का हुक्‍म देने की मांग की गयी। हाईकोर्ट के कडे रुख को देखते हुए श्रावस्‍ती पुलिस को आखिरकार मुकदमा दर्ज करना पड़ा। बलात्‍कार का मुकदमा। इस मुकदमे में मायावती सरकार के एक राज्‍यमंत्री ददन मिश्रा के भाई अशोक मिश्र समेत 35 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज किया गया है। जैसा की ढाई आखर में पहले एक पोस्‍ट में बताया गया था कि उत्‍तर प्रदेश के श्रावस्‍ती जिले में एक हिन्‍दू लड़की और मुसलमान लड़के के गायब हो जाने के...

चे- शहादत के चालीस साल

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दुनिया में बहुत कम लोग होते हैं, जो न सिर्फ अपने वक्त में बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों की प्रेरणा की वजह बनते हैं। ऐसे लोग तो और भी कम हैं, जिन्होंने निजी जीवन की सुख सुविधाओं को तज कर गरीबों और मजलूमों के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी हो और उनके ख्यालात आज भी लोगों को जद्दोजहद करने के लिए प्रेरित करते हों। अर्नेस्टो चे ग्वेरा ऐसी ही शख्सियत हैं। चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रों के साथ क्यूबा की क्रांति के नायक थे। अमरीका की दबंगई के खिलाफ क्यूबा के डटे रहने की नींव चे ग्वेरा ने ही डाली थी। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा कोना हो, जहाँ संघर्षशील नौजवान चे ग्वेरा से अपने आपने को जोड़ना पसंद न करते हों। चाहे मिस्र हो या अर्जेंटीना, पाकिस्तान, मलेशिया  या अपना हिन्दुस्तान या फिर विश्व सामाजिक मंच जैसा कोई प्रतिरोध जमावड़ा, चे ग्वेरा हर जगह नजर आते हैं। किसी के टीशर्ट पर तो किसी की टोपी पर... तो किसी के गले की लॉकेट में। कोई इन्हें फैशन में इस्तेमाल करता है तो किसी के लिए वो मजलूमों के लिए जद्दोजहद करने की याद दिलाने वाला चेहरा हैं। इसी चे ग्वेरा की नौ अक्तूबर को शहादत दिवस थी। चालीसवीं शहादत...