कहते हैं तुमको ईद मुबारक हो जानेमन
त्योहार हो और नज़ीर की याद न आये मुमकिन नहीं। नज़ीर अकबराबादी ने जैसी शायरी की है, वो शायरी वही शख्स कर सकता है, जिसे हिन्दुस्तान की गंगा जमनी तहजीब की न सिर्फ समझ हो बल्कि जो इसमें पूरी तरह डूबा हुआ हो। अठाहरवीं सदी के शुरुआती दौर (सन् 1735) के इस शायर के बारे में, आप कितना जानते हैं, मुझे नहीं मालूम। ईद के खुशनुमा मौके पर ढाई आखर के लिए पाठकों के लिए पेश है नजीर की नज्म ईदुलफित्र। पढ़ें और ईद के माहौल का मज़ा लें।
है आबिदों को ताअतो-तजरीद की खुशी।
और ज़ाहिदों को ज़ुहद की तमहीद की खुशी।
रिंद आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी।
कुछ दिलबरों के वस्ल की कुछ दीद की खुशी।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(आबिद- उपासक, इबादत करने वाला, भक्त। ताअतो तजरीद- उपासना, आराधना, इबादत। ज़ाहिद- कर्मकाण्डियों। ज़ुहद- धार्मिक कृत्य, संयम। तमहीद- पालन। रिंद- रसिया, धार्मिक बंधनों से मुक्त। दिलबर- प्रेमपात्र। वस्ल- प्रेमी प्रेमिका का मिलन। दीद- दर्शन, दीदार।)
रोज़े की ख़ुश्कियों से जो है ज़र्द-ज़र्द गाल।
ख़ुश हो गए वह देखते ही ईद का हिलाल।
पोशाकें तन में ज़र्द, सुनहरी, सफ़ेद, लाल।
दिल क्या कि हंस रहा है पड़ा तन का बाल-बाल।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(ज़र्द-ज़र्द- पीले। हिलाल- नया चांद।)
पिछले पहर से उठके नहाने की धूम है।
शीरो शकर सिवैयां पकाने की धूम है।
पीरो- जवां को नेअमते खाने की धूम है।
लड़कों को ईदगाह के जाने की धूम है।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(शीर- दूध, ईद के दिन सिवैयां जो दूध में डाल कर पकाये जाते हैं शीर कहलाते हैं। पीर-वृद्ध्। नेअमते- अच्छी चीज़ें।)
बैठे हैं फूल-फूल के मैख़ाने में कलाल।
और भंग ख़ानों में भी है सरसब्जियां कमाल।
छनती है भंगें, उड़ते हैं चरसों के दम निढाल।
देखो जिधर को सैर मज़ा ऐश क़ीलोक़ाल।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(मैख़ाना- मधुशाला। क़ीलोक़ाल- शराब बेचने वाला।)
कोई तो मस्त फिरता है जामे-शराब से।
कोई पुकारता है कि छूटे अज़ाब से।
कल्ला किसी का फूला है लड्डू की चाब से।
चटकारें जी में भरते हैं नानो-कबाब से।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(जाम-शराब का प्याला। अज़ाब- पापों का यमलोक में मिलने वाला दण्ड, दु:ख। नान- रोटी।)
महबूब दिलबरों से है जिनकी लगी लगन।
उनके गले से आन लगा है जो गुल बदन।
सौ सौ तरह की चाह से मिल-मिल के तन से तन।
कहते हैं तुमको ईद मुबारक हो जानेमन।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
क्या ही मुआनक़े की मची है उलट पलट।
मिलते हैं दौड़-दौड़ के बाहम झपट-झपट।
फिरते हैं दिलबरों के भी गलियों में ग़ट के ग़ट।
आशिक मज़े उड़ाते हैं हर दम लिपट-लिपट।
(मुआनक़े- गले मिलना। बाहम- आपस। ग़ट- झुंड के झुंड।)
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
काजल हिना ग़जब मिसी व पान की धड़ी।
पिश्वाज़े सुर्ख, सोसनी लाही की फुलझड़ी।
कुर्ती कभी दिखा कभी अंगिया कसी कड़ी।
कह ईद-ईद लूटे हैं दिल का घड़ी-घड़ी।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(हिना- मेंहदी। पिश्वाज़- नृत्य के समय पहना जाने वाला लहंगा। सोसनी-नीले रंग की। लाही- दिल पसंद।)
जो जो कि उनके हुस्न की रखते हैं दिल से चाह।
जाते हैं उनके साथ लगे ताब ईदगाह।
तोपों के शोर और दुगानों की रस्मो राह।
मियाने, खिलौने, सैर मज़े ऐश वाह-वाह।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(ताब- तक, ईदगाह तक। दुगानों- शुक्राने की नमाज़ की दो रक़अतें।)
रोज़ों की सख्तियों में न होते अगर असीर।
तो ऐसी ईद की न ख़ुशी होती दिल पज़ीर।
सब शाद हैं गदा से लगा-शाह-ता-वज़ीर।
देखा जो हमने ख़ूब तो सच है मियां 'नज़ीर'।
ऐसी न शब्बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
(असीर-बंदी, परेशान। पज़ीर-दिल पसंद। गदा- फक़ीर। शाह- बादशाह)
टिप्पणियाँ
घुघूती बासूती
सप्रेम
मन करता है नज़ीर पर कुछ लिखूं
घुघूती जी, कठिन शब्दों के मायने नीचे देने की कोशिश की थी। लगता उसने आपकी मदद नहीं की।
आप सोचिये हम कैसे समाज में रहते हैं, जहां आस पड़ोस में समाज के एक दूसरा हिस्से की मौजूदगी ही नहीं है। ऐसे माहौल मे पले बढ़े बच्चे न तो होली जानेंगे और न ही ईद। अहमदाबाद में तो यह और भी ज्यादा है। वैसे जहां तक ईद मुबारक कहने की बात है तो यह कहने के लिए किसी परिचित का होना जरूरी नहीं है। आप झुआपूरा या खानपुर इलाके में जाकर या फोनकर के लोगों को मुबारकबाद दे सकती है। यही ईद की स्प्रिट है। आप हमारे नजदीक होतीं तो हम आपको जी भर कर सिवइयां खिलाते।
अनामदास जी, मुझे नजीर की होली वाली रचना और आदमीनामा बहुत पसंद है। इसे भी दोस्तो के लिए पेश करूंगा।
काकेश, उड़नतशतरी जी, अफलातून जी आप सबको ढेर सारी मुबारकबाद।
मैथिली जी आपने सही कहा, नजीर जनकवि हैं। आप जरूर लिखिये, हमें पढ़ने का इंतजार है।
शिवरात्री में नज़ीर की नज़्म महादेवजी का ब्याह छपना मत भूलना.