हत्या को कहना चाहता हूँ, हत्या

नन्‍दीग्राम ने उन सारे लोगों को काफी परेशान कर दिया है, जो सालों से उस विचारधारा के हामी हैं, जिस विचार का होने का दावा पश्चिम बंगाल की सरकार करती है। ऐसे लोग किसी आधिकारिक कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्‍य भले न हो पर वे इस मुल्‍क में हर तरह की गैर बराबरी के खिलाफ चलने वाले आंदोलनों से किसी न किसी रूप में जुड़े हैं। हालांकि जब ऐसे लोग अब सवाल कर रहे हैं तो उन पर तथा‍कथित क्रांतिकारियों ने हमले बोल दिए हैं।

दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के प्राध्‍यापक अपूर्वानन्‍द ने जब नन्‍दीग्राम में हिंसा पर टिप्‍पणियां लिखीं तो कई 'क्रांतिकारियों' ने उन पर तरह तरह के आक्षेप लगाने शुरू कर दिए। शायद आक्षेपों और उससे चल रही जद्दोजहद ने एक कविता की शक्‍ल ले ली। पेश है अपूर्वानन्‍द की कविता

हत्या को कहना चाहता हूँ, हत्या

ओ मेरी धर्षिता माँ
मैं सिर्फ़ खड़ा रहना चाहता हूँ तुम्हारे पास
पूछना नहीं चाहता कौन सा रंग था ध्वजा का जिसे तुम्हारी देह में गाड़ा था
कौन थे वे लोग पूछना नहीं चाहता
क्यों ऐसा लगने लगा है मुझे कि कहीं मैं तो नहीं था वह
यह एक ठंड भरी रात है
और रक्त

चंद्रमा की निर्विकार चाँदनी में मुझे कुछ दिखाई भी तो नहीं देता
तुम्हारे पास पहुँचने को मैं चलते-चलते बहुत थक गया लगता हूँ
मेरे पाँव खून की दलदल में फँस गए है और मैं और नीचे ही नीचे धंसता चला
जा रहा हूँ
क्या है यह खून का धुवां जो मेरे फेफड़ों में फँस गया है और मुझे खांसी आ
रही है लगातार
सैकड़ों शताब्दियों से मेरी छाती में जमा खूनी बलगम
थक्कों में गिर रहा है बाहर
आह, मैं साँस लेना चाहता हूँ ,
एक लम्बी और खुली साँस,
क्या यह बहुत कठिन है ईश्वर
मैं तुम्हें पुकारना चाहता हूँ
मैं एक प्रार्थना करना चाहता हूँ
अपने लिए
और मेरे पास देखता हूँ कोई शब्द ही नहीं है
मेर गले में एक अस्पष्ट सी घरघराहट है
लेकिन उसका तो कोई अर्थ नहीं
क्यों मुस्करा रहे हैं मेरी असमर्थता पर पाब्लो नेरुदा
क्यों ब्रेख्त हंस रहे हैं क्यों नाजिम
माय्कोव्सकी क्या कहना चाह रहे हो तुम
पिछली शताब्दी से ढेर सारी आवाजों का एक तूफान मेरे करीब आ रहा है
साइबेरियाई बर्फानी हवा
कराहती हुई घुसती जा रही है मेरे हर रोम छिद्र में
और एक संगीत जो पिस गया है इस तूफ़ान में
मेडल श्टाम क्या गा रहे थे तुम जब तुम्हारी उंगलियाँ गल रही थीं उस महायात्रा में
तुम्हारा वह गान इतना धुंधला क्यों सुनाई दे रहा है मुझे
मैं एक शब्द चाहता हूँ वाल्टर बेंजामिन
सिर्फ़ एक शब्द जो मुझे इस दलदल में सहारा दे
जिसकी ऊष्मा को पहन सकूं अपनी आत्मा पर
मैं धंस रहा हूँ और बचना चाहता हूँ
और मैं एक घुटी हुई चीख सुनता हूँ
सौ साल से जो मेरा पीछा कर रही है
' लगता है उन्होंने एक बाड़ा डाल दिया है मेरे गिर्द जिसे मैं फांद नहीं पाता
... उन्होंने घेर लिया है मुझे और मैं हिल भी नहीं सकता '

ओह, गोर्की , मैं क्यों नहीं था तुम्हारे पास उस क्षण , क्यों नहीं मैंने
हाथ बढाया अपना
मैं मैकबेथ नहीं हूँ , मैं चीखना चाहता हूँ , फिर भी क्यों मेरी
आत्मा पर हैं खून के धब्बे
एक शब्द चाहिए मुझे मेरे खुदा
कोई यकीन नहीं

एक शब्द
निरंग
विशेषणहीन
एक शब्द
जिसे मैं
इस घरघराती छाती पर मल सकूं
क्या ऐसा शब्द मनुष्य की भाषा से बहिष्कृत कर दिया गया ,
जाने कब से खोज रहा हूँ उसे मेरे मालिक
एक विशेषणहीन शब्द,

मैं

हत्या को कहना चाहता हूँ हत्या

जीवन को जीवन

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