मर्दाना वाइब्रेंट गुजरात और महिलाएं
मायावी वाइब्रेंट गुजरात की चकाचौंध में महिलाएं कहां हैं? मर्दानगी के दंभ में डूबे 'विकास पुरुष' के विकास के नक्शे पर महिलाओं का वजूद कहां है? विकास, कंक्रीट और गारे का नाम नहीं है। विकास का मतलब हाड़ मांस के लोगों की जिंदगी का विकास है। हम इसे मुसलमानों-दलितों या आदिवासियों के संदर्भ में नहीं देख रहे बल्कि हम तो इसे आधी आबादी के रूप में देखने जा रहे हैं। हालांकि कुछ राज्यों की ही तरह गुजरात के संदर्भ में महिलाओं को आधी आबादी कहना सही नहीं होगा। क्यों? आइये थोड़ा जायजा लें।
बिटिया मारो
गुजरात के बच्चों की आबादी में से चार लाख सड़सठ हजार आठ सौ बिरयानबे (4,67, 892) लड़कियां गायब हैं। यानी लड़कों के मुकाबले करीब 12 फीसदी लड़कियां कम हैं। कोई समाज बेटियों के प्रति कितना संवेदनशील है, उसके नापने का एक तरीका है, जिसे लिंग अनुपात कहा जाता है। यानी प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की तादाद। शिशु लिंग अनुपात 0-6 साल के उम्र के लड़के-लड़कियों का होता है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि गुजरात का शिशु लिंग अनुपात 883 है यानी प्रति हजार लड़कों में करीब 117 लड़कियां कम हैं। यही नहीं कुछ जिले तो इससे भी नीचे हैं। जैसे मेहसाणा (801), गांधीनगर (813), अहमदाबाद (836), आनंद (849), राजकोट (854)। बिटिया मारने वाले पढ़े-लिखे और पैसे वाले लोग हैं। लिंग जांच करके बताने वाले डॉक्टर हैं।
मुझे नहीं मालूम कि कितने डॉक्टरों को गुजरात में इसलिए गिरफ्तार किया गया कि वे लिंग जांचते हैं या लिंग चयनित गर्भपात में शामिल हैं। मुझे यह भी नहीं मालूम कि कितने अल्ट्रासाउंड सेंटर बंद किये गए या कितने जगह छापे डाले गए। कितने ससुराली इस बात के लिए पकड़े गए कि वे अपनी बहुओं की कोख में सिर्फ बेटा देखना चाहते हैं। क्या गुजरात के चुनाव का मुद्दा यह नहीं होना चाहिए था। क्या बिन बेटियों के सिर्फ 'मर्दाना' विकास होगा।
खौफ के साये में जिंदगी
गुजरात में हर रोज एक से ज्यादा महिला के साथ दुराचार (बलात्कार) हुआ। पिछले साल के जो आंकड़े मिले, उसके मुताबिक पुलिस के पास कुल 388 बलात्कार के मामले दर्ज हुए।
आप कहने को कह सकते हैं कि यह तो हर जगह होता है। पर जनाब हम कुछ और कहना चाहते हैं। हम जानना चाहते हैं कि इस वाइब्रेंट गुजरात में महिलाओं को भय मुक्त माहौल मिल रहा है या नहीं। क्योंकि बिना भय मुक्त माहौल के विकास ?
गुजरात पुलिस के आंकड़े बता रहे हैं,
एक वर्ष में 854 महिलाओं का अपहरण हुआ।
5,284 महिलाएं ससुराल में उत्पीड़न/ मारपीट की शिकार हुई।
महिला उत्पीड़न में अहमदाबाद का नम्बर सबसे ऊपर है।
इसी सच्चाई के मद्देनजर गुजरात के महिला संगठनों ने पिछले दिनों नफरत और असुरक्षा का माहौल पैदा करने वालों को चुनाव में हराने की एक अपील जारी की। इस अपील पर दस्तखत करने वालों में, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई, कल्पना शाह, इला पाठक, सरुप ध्रुव, शीबा जार्ज, सोफिया खान, शबनम हाशिमी, अमिता वर्मा, तृप्ति शाह, दीप्ता अचर शाहिर शामिल हैं।
जो लोग वाइब्रेंट गुजरात के धुर समर्थक हैं, उनके लिए तथ्य देना जरूरी है। वरना वे यही समझेंगे कि यह सब हमारे दिमाग की उपज है। टाइम्स ऑफ इंडिया के 14 मार्च 2005 के अंक में छपे एक खबर के मुताबिक, गुजरात में सन् 2004 में 580 युवतियों का अपहरण हुआ। इसी दौरान 1377 युवतियों के लापता होने की शिकायत भी दर्ज कराई गई।
जो समाज 'हम' और 'वो' में बंटा हो, वहां पहले 'वो' पर हमला होता है। जब 2002 में 300 से ज्यादा औरतों के साथ सार्वजनिक-सामूहिक बलात्कार हुआ, उनके साथ सरेआम यौन हिंसा हुई, तब समाजा का बड़ा तबका इसे मौन स्वीकृति दे रहा था। क्यों, क्योंकि यह सब 'वो' के साथ हो रहा था। अब आस पड़ोस में 'वो' रहे नहीं। उन्हें तो कहीं दूर फेंक दिया गया। लेकिन नफरत फैलाने वालों को हमेशा एक 'वो' चाहिए। अब 'अपने' ही समुदाय की महिलाएं उनके लिए 'वो' हैं। एक बार खून की आदत लग जाए तो बड़ी मुश्किल से जाती है। आज भी गुजरात के बड़े हिस्से में 2002 में हुई हिंसा को लेकर कोई पछतावा या विरोध नहीं है। जब दूसरे के साथ नाइंसाफी पर आवाज उठाने की आदत खत्म हो जाएगी, तो यह नाइंसाफी अपना दायरा फैलाएगी और फैला रही है। ऐसे किसी भी सामाजिक नाइंसाफी का सबसे पहला शिकार महिलाएं होती हैं और वे हो रही हैं... इसलिए यह आंकड़े महज संख्या नहीं है... जीती जागती महिलाएं हैं। यह है वाइब्रेंट गुजरात का अमानवीय और महिला विरोधी विकास।
हिंसा... हिंसा और सिर्फ हिंसा
महिलाओं के साथ हिंसा, यह भी बताता है कि कोई समाज अपनी महिलाओं की कितनी इज्जत करता है। उसे आदमी का दर्जा देता है या नहीं। अहमदाबाद वीमेंस एक्शन ग्रुप (आवाग) ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट- अहमदाबाद के साथ मिलकर एक सर्वेक्षण किया। पता चला कि उस सर्वे में शामिल अहमदाबाद महानगर की 58 फीसदी महिलाएं गंभीर रूप से मानसिक तनाव का शिकार हैं। यह भी निकल कर आया कि संभ्रांत घरों की महिलाओं को थप्पड़ मारे जाते हैं, घूँसे पड़ते हैं, दांत काटे जाते हैं, लात मारे जाते हैं और तो और जलती सिगरेट से दागा जाता है।
सर्वेक्षण के मुताबिक करीब 65 फीसदी महिलाओं ने माना कि उन्हें सरेआम और पड़ोसियों के सामने बेइज्जत किया जाता है। 35 फीसदी ने माना कि उनके बच्चे खासतौर से बेटियां, पिता की हिंसा की शिकार हैं। कितनी महिलाएं, कितने तरह की हिंसा की शिकार हैं, इसकी एक बानगी देखिये- गाली-गलौज/ धमकी- 70 फीसदी महिलाओं ने माना, थप्पड़- 68 फीसदी, ठोकर या धक्का- 62 फीसदी, घूंसा- 53 फीसदी, किसी सख्त चीज से प्रहार- 49 फीसदी, दांत काटा- 37 फीसदी, गला दबाने की कोशिश- 29 फीसदी, सिगरेट से जलाया- 22 फीसदी ने महिलाओं ने माना।
हर पितृसत्तात्मक समाज, मर्दानगी हिंसा की बुनियाद पर टिका होता है। विकास का मतलब, मर्दानगी हिंसा को खत्म करना है। जेण्डर विभेद की बुनियाद पर बने समाज को बदलना भी है। बिना जेण्डर विभेद मिटाए कोई भी विकास कामयाब नहीं हो सकता। क्या वाइब्रेंट गुजरात का यह मुद्दा?
वक्त हो तो इसे भी पढ़ें
- गांधी जी की ताबीज और वाइब्रेंट गुजरात
- कौन हैं 'गुजराती' ?
- क्या मोदी की पारी के अंत की शुरुआत हो गई?
- एक "गुजराती" की तलाश
टिप्पणियाँ