साबरमती आश्रम में गाँधी जी के साथ एक दिन- 1 (One day in Sabarmati Ashram with Gandhi ji)

गाँधी जी की शहादत का यह साठवाँ साल है। मैं इस दौरान अहमदाबाद गया था और एक दिन साबरमती आश्रम में गुजारने का मौका मिला। गुजरात बापू का जन्म स्थान है। वही गुजरात, जहाँ बापू की अहिंसा को दरकिनार कर, पाँच साल पहले हिंसा का नंगा नाच देखने को मिला। बापू की याद की छाँव तले दिन गुजारना वाकई में एक यादगार तजुर्बा रहा। इस दौरान मैंने वहाँ की कुछ तस्वीर उतारने की कोशिश की। तस्वीरें आप सब से साझा कर रहा हूँ। ( तस्वीरों के बारे में जानने के लिए स्लाइड शो में बाएँ क्लिक करें। आप चाहें तो शो की गति अपने मुताबिक भी कर सकते हैं।)

टिप्पणियाँ

अफ़लातून ने कहा…
बहुत सुन्दर।चित्रों के शीर्षक लगाना सम्भव नहीं होता?
ढाईआखर ने कहा…
अफलातून जी, शुक्रिया। चित्रों में शीर्षक लगाने के बारे में मुझे जानकारी नहीं है। हाँ, चित्र परिचय लगाने की मैंने कोशिश की है। उसे देखने के लिए आपको स्लाइड शो के बाएँ के दूसरे आइकन को क्लिक करना पड़ेगा है। उसके बाद चित्र परिचय दिखने लगेंगे। वैसे मैं और उपाय तलाशता हूँ।
Sanjeet Tripathi ने कहा…
बढ़िया चित्र! शुक्रिया!
अगस्त 2002 की यादें ताज़ा कर दी आपने तब एक कवरेज के सिलसिले में छत्तीसगढ़ पत्रकारों का अहमदाबाद जाना हुआ था और तभी साबरमती आश्रम भी पहुंचे थे हम।
Priyankar ने कहा…
आपने बहुत अच्छी तस्वीरें खींची हैं . बापू के आश्रम की सादगी और उस सादगी की गरिमा को देखकर भला कौन होगा जो प्रभावित नहीं होगा .
ghughutibasuti ने कहा…
गाँधीजी का गुजरात हिटलर का जर्मनी
मैंने बहुत लोगों से यह सुना है कि गाँधी के राज्य में हिंसा ठीक नहीं है । या गुजरातियों ने गाँधी को भुला दिया है । देखिये, किसी राज्य के लोग वहाँ कौन पैदा हुआ से पूर्ण रूपेण बदल नहीं जाते । यदि ऐसा होता तो जर्मनी के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी हिटलर जैसा बनने का यत्न करते । वहाँ आज भी मारकाट मची होती । हिंसा तो किसी भी राज्य या राष्ट्र में ठीक नहीं है ।

गाँधीजी यहाँ पैदा हुए इसलिये सदियों तक यहाँ नशाबंदी लागू रहे, यह कहाँ का औचित्य है ? यदि शराब बुरी है तो हर राज्य के लिए बुरी होनी चाहिये । कल कोई कहेगा कि गाँधीजी ने नियासिता की बात की थी। क्या यह भी गुजरात को माननी चाहिये ? गुजरात, जहाँ के जन मानस में सदा से व्यापार कर अधिक से अधिक पैसा कमाने , उसको और पैसा बनाने में लगाने की भावना रही है, यहाँ नियासिता की बात संभव ही नहीं है ।
बात लम्बी चल सकती है, कभी इसपर अपने चिट्ठे पर लिखूँगी ।
घुघूती बासूती

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