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देखें/ सुनें और महसूस करें इस मौसिकी का जादू (Khuda ke liye)

सरहद पार की फिल्म 'खुदा के लिए' {Khuda Ke liye : In the name of god} संगीत के इर्द गिर्द घूमती फिल्म है। इसके कई मायने निकाले जा सकते हैं। एक मायने तो यही हो सकता है कि संगीत लोगों को/ दुनिया को जोड़ने का काम करता है। दूसरा मायने यह भी है कि संगीत आदम जात को नरमदिल इंसान बनाता है। उसमें भावनाओं के कोंपल जगाता है। आइये देखें/सुनें और तय करें कि क्या वाकई में इस फिल्म की मौसिकी ऐसी ही है।

खुदा के लिए Khuda Ke liye, एक जरूरी फिल्‍म

एक खूबसूरत और झकझोर देने वाली फिल्‍म है- खुदा के लिए (Khuda ke liye- In the name of God)।  फिल्‍म कई मायनों में अहम है। यह पाकिस्‍तानी है। इसने पाकिस्‍तानी सिनेमा (Pakistani Film) को फिर से जिंदा कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत-पाकिस्‍तान के बीच एक-दूसरे की फिल्‍मों के दिखाने पर लगी पाबंदी भी,  इसीसे खत्‍म होगी। करीब दो महीने पहले दिल्‍ली में इस फिल्‍म का खास शो देखने का मौका मिला था। पाकिस्‍तान फिल्‍मों की जो छवि दिमाग में बसी है, यह फिल्‍म उसे पूरी तरह तोड़ देती है। यह तो हुईं ऊपरी बातें। फिल्‍म का तानाबाना 9/11  के आतंकी हमले की पृष्‍ठभूमि में बुना गया है। यह फिल्‍म आज  के समाज के सवाल से टकराती है। यही इस फिल्‍म को खास बनाती है। मुसलमानों की नई और उदारवादी पीढ़ी के कशमकश को जबान देती है।  एक ओर समाज के अंदर पुरातनपंथी  विचार से उसको जूझना पढ़ रहा है तो दूसरी ओर, दुनिया उसे एक खास बने बनाए खाँचे में ही देखना चाहती है। यानी वह आतंक का हरकारा है।  यह पीढ़ी कई ओर से पिस रही है। अंदरूनी समाज उसे अपनी जकड़न में कैद रखना चाहता है तो बाहरी समाज उसमें दुश्‍मन की छवि देख रहा है और अ