यह तैयारी किसके लिए है
इससे पहले भी, उत्तर प्रदेश के कई शहरों में संघ परिवार से जुड़े संगठनों के कैम्पों में त्रिशूल को ‘सही’ पकड़ने और लड़कियों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दिए जाने की खबर आई थी।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि रक्षा मंत्रालय ने सीमा की हिफाजत का जिम्मा संघ परिवार को आउटसोर्स कर दिया है। भई आउटसोर्सिंग का जमाना है, कुछ भी मुमकिन है। सीमा की हिफाजत नहीं, तो हो सकता है, शहर और मोहल्ले की हिफाजत का जिम्मा मिल गया हो। लेकिन सवाल फिर वही, किससे, किसकी हिफाजत ? कौन है भई ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि वैसी ही हिफाजत की तैयारी हो, जैसा गुजरात नाम के राज्य में कभी हुआ था। गुजरात का नाम सुनकर भड़किए मत। बस बात जल्दी समझ में आ जाए इसीलिए नाम लिया। असल में स्कूल में उदाहरण सहित बताएँ या समझाएँ- वाला सवाल बहुत आता था। वही आदत बनी हुई है। खैर, यह क्यों कर रहे हैं, इनके दिल की बात राम ही जानें।
पर राम का नाम लेकर यह क्या-क्या हो रहा है। एक और खबर आई है, कि महाराष्ट्र के आतंक विरोधी दस्ते ने ठाणे और नवी मुम्बई के दो ऑडिटोरियम में बम धमाका करने के इलजाम में दो और दो, चार लोगों को गिरफ्तार किया है। इन सबका जुड़ाव सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति से है। यह हिन्दुत्व वाले हैं। (हिन्दू मजहब और हिन्दुत्व में फर्क है। यही जनाब वीर सावरकर समझाते हैं और मैं उनसे राज़ी हूँ।) इससे पहले भी नासिक में दो बजरंग दली बम बनाते मारे गए थे।
फिर वही सवाल कि बम किसके लिए बन रहा था/है और किन पर बम फेंका जाता/जाएगा ? भगत सिंह ने भी बम फेंका था लेकिन बहरों को सुनाने के लिए। उससे किसी को खराश तक नहीं आई थी। हॉं, पूरे मुल्क में एक वैचारिक बहस जरूर शुरू हो गई थी। ये तो मरने-मारने वाले बम हैं। किसे मारने का प्लान है ? किसे भगाने की योजना है ? कोई बताता ही नहीं।
लेकिन एक बात अटक रही है। ज़रा गौर करें। एक संगठन, जिसके नाम में कहीं मुस्लिम, तो कहीं इस्लाम, तंजीम या इदारा जैसे अल्फाज हों और इनके कारकुन इंदौर के किसी पार्क में हथियार की ट्रेनिंग ले रहे हों या इस तरह सरेआम फायरिंग कर रहे होते, तब तक क्या होता ?
एक और बात, फर्ज कीजिए अगर ठाणे और नवी मुम्बई के ऑडिटोरियम में हुए बम धमाकों में किसी इस्लामिक मूवमेंट या मुजाहिदीन या जेहादी टाइप नाम वाले संगठन के सदस्य पकड़े जाते तो मीडिया और दूसरे जिम्मेदार इस खबर को क्या वैसे ही लेते जैसे मंगलवार 17 जून 2008 को इनकी खबर को तवज्जो दिया गया है। (जनाब, इस दिन का अख़बार और टीवी चैनल खँगाल डालिए शायद ही यह खबर नजर आ जाए।)
क्या यह खबर, मिथकों और भ्रांतियों से जूझते समाज का आँख खोलने वाली नहीं होती ? क्या इस खबर से यह नहीं होता कि बम किसी मजहब की जागीर नहीं है और खून-खराबे पर किसी का कॉपीराइट नहीं। लेकिन नहीं... भ्रम बना रहे है, यही अच्छा है।
टिप्पणियाँ
likhne ke liye badhai..