तो यह तैयारी की झलक है

तो यह तैयारी ऐसे ही वक्‍त के लिए थी। यह बात बृहस्‍पतिवार को समझ में आई। चकाचक क्रिज वाला भगवा शर्ट पहने... कान में मोबाइल की आवाज पकड़ने वाला मशीन लगाए...हाथों में चमकता त्रिशूल लहराते नौजवान..गदा उठाए... जी हाँ... ये हैं ‘तेजस्‍वी’ और ‘वीर बालक’। यह छवि उसी इंदौर की है, जहाँ ‘सांस्‍कृतिक’ काम करने वाले एक संगठन के लोग पिछले दिनों खुलेआम बंदूक से गोलियाँ दाग रहे थे। क्‍यों। क्‍यों क्‍या...प्रैक्टिस कर रहे थे...

ये लोग भी इन्‍हीं के भाई बंधु हैं, ऐसा कहा जाता है। यह सड़क पर उतरें और भू-डोल न हो, तो इनका उतरना बेमानी। इनका कमाल देखिए, रथ पर चलते हैं, पीछे-पीछे अपने-आप भू-डोल होता जाता है। बृहस्‍पतिवार को देश बंद कराने चले, तो हो गया भू-डोल। और फिर बंदूक चलाना और त्रिशूल लहराना, सीखने का फायदा क्‍या, जब उसका इस्‍तेमाल ही न हो। तो हो गया इस्‍तेमाल। लग गया इंदौर के कई इलाकों में कर्फ्यू।

राष्‍ट्रीय अस्मिता का सवाल है जनाब, थोड़ा बर्दाश्‍त तो करना पड़ेगा। न ही करेंगे तो मुश्किल होगी। क्‍या हुआ जो राष्‍ट्रहित में चाय की देगची उलट दी। मिठाई बनाने का दूध पलट दिया। किच-किच क्‍यों करते हैं, भगोने को दो लात ही तो मारी थी। दुत, टेसू बहा रहे हैं, राष्‍ट्र हित में एक दिन खोमचा बंद नहीं कर सकता था। दो हाथ ही तो दिया। जवानी का जोश है, भई। बर्दाश्‍त कीजिए। अब बताइये, यह क्‍या बात हुई, बंद करा रहे थे, तो व्‍यापारी जी ने आग लगा ली। अरे एक दिन शुभ लाभ न होता तो कौन सी आफत आ जाती... संस्‍कृति की रक्षा की खातिर भी हानि बर्दाश्‍त नहीं।

... यह तैयारी की झलक है, भई। दूसरे के साथ होता है, बड़ा मजा आता है। खून बढ़ जाता है। है न। पर जिनके मुँह स्‍वाद लग गया है, उनसे कोई कितने दिन बचा रह सकता है। पता हो तो जरूर बताइयेगा, गलियाइयेगा नहीं। प्‍लीज।

टिप्पणियाँ

Prabhakar Pandey ने कहा…
... यह तैयारी की झलक है, भई। दूसरे के साथ होता है, बड़ा मजा आता है। खून बढ़ जाता है। है न। पर जिनके मुँह स्‍वाद लग गया है, उनसे कोई कितने दिन बचा रह सकता है। पता हो तो जरूर बताइयेगा, गलियाइयेगा नहीं। प्‍लीज।

बहुत ही उम्दा और यथार्थ बात।

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