आप कैसा इस्‍लाम या मुसलमान देखना चाहते हैं

प्रभात जी, मैं जानता हूँ आपने उकसाने के लिए ये टिप्‍पणी नहीं कर रहे। लेकिन जिस माहौल में हम रह रहे हैं, वहाँ आपका सवाल और फरीद का जवाब, ये बता रहा है कि हमारे समाज में कहीं कोई कड़ी टूट गयी या गायब हो गई है। हम अपने ही समाज को, वहाँ रहने वाले जीते-जागते इंसानों के बारे में कितना कम जानते हैं। आज कोई हिन्‍दू रोजा रखता है या कोई मुसलमान छठ का व्रत, तो यह हमारे लिए खबर होती है। लेकिन मुझे कभी ताज्‍जुब नहीं हुआ क्‍योंकि मैं ऐसे ही समाज से निकला हूँ। मुझे ताज्‍जुब तब होता है, जब ऐसा नहीं होता।
रही बात आपके सवालों की, तो आपने देखा होगा, मैं उकसाने वाले ब्‍लॉगजगत के विद्वानों की बात का जवाब न देना ही पसंद करता हूँ।

लेकिन आप उनमें से कतई नहीं हैं। मैं आपके सवालों पर तैयारी के साथ पोस्‍ट लिखना चाह रहा था। पर अब बात शुरू हुई है तो कुछ कह रहा हूँ। इतिहास की मुझे बहुत जानकारी नहीं है। लेकिन जहाँ तक मुझे मालूम है, औरंगजेब को छोड़ आप किसी मुगल बादशाह को तथाकथित कट्टर की श्रेणी में नहीं रख पाएँगे। यहाँ तक कि औरंगजेब ने आपके पड़ोस चित्रकूट में श्री राम वनवास के प्रतीकों की हिफाजत कराई है। खैर। बाबरनामा हो या आइन ए अकबरी, आपको पढ़कर अंदाजा लग जाएगा, य‍े कैसे बादशाह थे। दूसरी बात, अगर तलवार ही चलती तो जरा सोचिए मुगलों के पूरे इतिहास में रिआया का कितना हिस्‍सा गैर मुस्लिम बचता। बाकि एक चीज हमेशा ध्‍यान में रखना चाहिए- राजा, राजा होता है, प्रजा, प्रजा। इन दोनों के बीच कैसा रिश्‍ता होगा, यह बात समझी जा सकती है।
रही बात इस्‍लाम की। इस्‍लाम का कोई एक चेहरा नहीं है। हम वही चेहरा देखना पसंद करते हैं, जो हम देखना चाहते हैं। आपके ही शहर में चंद रोज पहले एक मुस्लिम महिला ने पहली बार निकाह पढ़ाया। यह ऐतिहासिक कदम है। लेकिन कितने इस कदम को देखना या सपोर्ट करना चाहते हैं। अगर कहीं, कोई उलट फतवा आ गया होता, तो आप देखते दुनिया कितनी चर्चा करती। मीडिया कितना उत्‍साहित दिखती। कितनी पोस्‍ट लिखी जाती। यानी अपने मुल्‍क में मुसलमानों का कोई एक चेहरा नहीं है। यह वक्‍त-वक्‍त पर बहुत साफ दिखता है।
रही बात, पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, बंगलादेश की। बंगलादेश का जन्‍म ही कट्टरवाद के खिलाफ हुआ। धार्मिक राज्‍य के विरुद्ध्। बंगलादेश उन हिन्‍दू महासभाइयों, हिन्‍दुत्‍ववादियों और मुस्लिम लीगियों के मुँह पर तमाचा है- जो यह मानते हैं कि हिन्‍दू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्‍ट्र हैं। वहाँ के कट्टरवाद से वहाँ का मुसलमान ही लड़ रहा है, कोई बाहरी नहीं। जहाँ तक मेरी जानकारी है, बंग्‍लादेश का राष्‍ट्रगीत उसी गुरुदेव की पंक्तियाँ हैं, जिसकी पंक्तियाँ इस मुल्‍क का राष्‍ट्रगीत बनीं। यह कैसे मुमकिन हुआ। आज जिस तरह अपने मुल्‍क में साझी संस्‍कृति को मिटाने की कोशिश हो रही है, वैसे ही बंग्‍लादेश में भी कुछ ताकतें लगी हैं। यह नहीं हो सकता कि आप बंगलादेश के कट्टरपंथ को तो कोसे और अपने मुल्‍क के कट्टरपंथ को सींचे।
यही हाल पाकिस्‍तान का है। पाकिस्‍तान का जो चेहरा आप हिन्‍दुस्‍तानी मीडिया में देखते हैं, उससे उलट वहाँ एक बड़ी जमात है जो कट्टरवाद के खिलाफ लड़ रही है। यकीन न हो तो फिल्‍म 'खुदा के लिए' देखिए। पचासों फतवे के बावजूद, वह फिल्‍म वहाँ सुपर हिट रही। यही नहीं एनडीटीवी इमेजिन पर जुनून देखिए। पाकिस्‍तानी गायकों की सरगम सुनिए- इस बात का अंदाजा लग जाएगा।
इसलिए इस्‍लाम या मुसलमान का एक ही चेहरा नहीं है। हम कौन सा चेहरा देखना पसंद करते हैं, अब सवाल इसका है। और इसका जवाब मुसलमानों के पास कम, समुदाय के बाहर आप जैसे लोगों के पास ज्‍यादा है। अब आप जैसे लोगों को तय करना है कि आप कैसा इस्‍लाम या मुसलमान देखना चाहते हैं।
प्रभात जी और फरीद, यह आपलोगों की बातों का जवाब नहीं है। बल्कि जवाब तलाशने निकले लोगों के झुंड में मैं भी शामिल हूँ। शायद किसी बोधि वृक्ष के नीचे कोई बुद्ध मिले जो हमारे सवालों का सही-सही जवाब दे।
अब मेरा एक सवाल है, आधुनिक दुनिया को उपनिषदों और गीता से किस शख्‍स ने परिचय कराया।

टिप्पणियाँ

Avinash Das ने कहा…
बहुत अच्‍छा और संतुलित जवाब। लोगों से कौम बनती है। सब तरह के लोग उनमें होते हैं। इतना कायदे से नासिर भाई ने लिखा है कि अब शायद इसके बाद हमारे असमंजस से भरे सा‍थियों को लाइन लेने में मुश्किल न होगी।
अच्छे लेख के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें...दरअसल हिन्दुस्तान में इस्लाम की ग़लत तस्वीर पेश करने की कोशिश की जाती है और मुस्लिम विरोधी लोग इसमें कामयाब भी होते हैं. अगर कोई मुस्लिम मर्द अपनी पत्नी को तलाक़ दे देता है तो पूरा मीडिया चीख़ने लगता है. मगर आए दिन दहेज के लिए जलाई जाने वाली महिलाओं की चीख किसी को सुनाई नहीं देती. इस्लाम वो मज़हब है जिसने औरत को हर वो हक़ दिया है जो और मज़हबों ने उसे नहीं दिए. यह मुसलमानों की हिन्दुस्तान के मुसलमानों की बदकिस्मती है कि तालीमयाफ्ता न होने की वजह से मुस्लिम महिलों को उनके हक़ूक़ नहीं मिल पाए हैं.
पाकिस्तान की महिलाएं भारतीय महिलाओं से काफ़ी आगे हैं. पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के मुकाबले संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है। दुनियाभर में घोर कट्टरपंथी माने जाने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश में महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर आसीन रही हैं। यूनिसेफ द्वारा कई चुनिंदा देशों में 2001-2004 के आधार पर बनाकर जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 8।3 फ़ीसदी, ब्राजील में 8.6 फ़ीसदी, इंडोनेशिया में 11.3 फ़ीसदी, बांग्लादेश में 14.8 फ़ीसदी, यूएसए में 15.2 फ़ीसदी, चीन में 20.3 फ़ीसदी, नाइजीरिया में सबसे कम 6.4 फ़ीसदी और पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा 21.3 फ़ीसदी रहा। इस मामले में पाकिस्तान ने विकसित यूएसए को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 1996 में भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7.3 फ़ीसदी और 1999 में 9.6 फ़ीसदी था।

भारत में इस्लाम का जो रूप प्रचलित है, इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हज़रत मुहम्मद उसे नापसंद करते थे। क़ुरान में महिलाओं को सम्मानजनक दर्जा दिया गया है। यहां तक कहा जाता है कि मां के क़दमों के नीचे जन्नत है। हज़रत मुहम्मद के वक़्त में भी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए थे। वे मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढती थीं और पुरुषों की तरह ही घर से बाहर जाकर काम करती थीं। अनगिनत युध्दों में महिलाओं ने अपने युध्द कौशल का लोहा भी मनवाया। प्रसिध्द अहद की जंग में जब हज़रत मुहम्मद ज़ख्मी हो गए तो उनकी बेटी फ़ातिमा ने उनका इलाज किया। यही है मेरा इस्लाम...
अच्छे लेख के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें...दरअसल हिन्दुस्तान में इस्लाम की ग़लत तस्वीर पेश करने की कोशिश की जाती है और मुस्लिम विरोधी लोग इसमें कामयाब भी होते हैं. अगर कोई मुस्लिम मर्द अपनी पत्नी को तलाक़ दे देता है तो पूरा मीडिया चीख़ने लगता है. मगर आए दिन दहेज के लिए जलाई जाने वाली महिलाओं की चीख किसी को सुनाई नहीं देती. इस्लाम वो मज़हब है जिसने औरत को हर वो हक़ दिया है जो और मज़हबों ने उसे नहीं दिए. यह मुसलमानों की हिन्दुस्तान के मुसलमानों की बदकिस्मती है कि तालीमयाफ्ता न होने की वजह से मुस्लिम महिलों को उनके हक़ूक़ नहीं मिल पाए हैं.
पाकिस्तान की महिलाएं भारतीय महिलाओं से काफ़ी आगे हैं. पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के मुकाबले संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है। दुनियाभर में घोर कट्टरपंथी माने जाने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश में महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर आसीन रही हैं। यूनिसेफ द्वारा कई चुनिंदा देशों में 2001-2004 के आधार पर बनाकर जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 8।3 फ़ीसदी, ब्राजील में 8.6 फ़ीसदी, इंडोनेशिया में 11.3 फ़ीसदी, बांग्लादेश में 14.8 फ़ीसदी, यूएसए में 15.2 फ़ीसदी, चीन में 20.3 फ़ीसदी, नाइजीरिया में सबसे कम 6.4 फ़ीसदी और पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा 21.3 फ़ीसदी रहा। इस मामले में पाकिस्तान ने विकसित यूएसए को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 1996 में भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7.3 फ़ीसदी और 1999 में 9.6 फ़ीसदी था।

भारत में इस्लाम का जो रूप प्रचलित है, इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हज़रत मुहम्मद उसे नापसंद करते थे। क़ुरान में महिलाओं को सम्मानजनक दर्जा दिया गया है। यहां तक कहा जाता है कि मां के क़दमों के नीचे जन्नत है। हज़रत मुहम्मद के वक़्त में भी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए थे। वे मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढती थीं और पुरुषों की तरह ही घर से बाहर जाकर काम करती थीं। अनगिनत युध्दों में महिलाओं ने अपने युध्द कौशल का लोहा भी मनवाया। प्रसिध्द अहद की जंग में जब हज़रत मुहम्मद ज़ख्मी हो गए तो उनकी बेटी फ़ातिमा ने उनका इलाज किया। यही है मेरा इस्लाम...
अच्छे लेख के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें...दरअसल हिन्दुस्तान में इस्लाम की ग़लत तस्वीर पेश करने की कोशिश की जाती है और मुस्लिम विरोधी लोग इसमें कामयाब भी होते हैं. अगर कोई मुस्लिम मर्द अपनी पत्नी को तलाक़ दे देता है तो पूरा मीडिया चीख़ने लगता है. मगर आए दिन दहेज के लिए जलाई जाने वाली महिलाओं की चीख किसी को सुनाई नहीं देती. इस्लाम वो मज़हब है जिसने औरत को हर वो हक़ दिया है जो और मज़हबों ने उसे नहीं दिए. यह मुसलमानों की हिन्दुस्तान के मुसलमानों की बदकिस्मती है कि तालीमयाफ्ता न होने की वजह से मुस्लिम महिलों को उनके हक़ूक़ नहीं मिल पाए हैं.
पाकिस्तान की महिलाएं भारतीय महिलाओं से काफ़ी आगे हैं. पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के मुकाबले संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है। दुनियाभर में घोर कट्टरपंथी माने जाने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश में महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर आसीन रही हैं। यूनिसेफ द्वारा कई चुनिंदा देशों में 2001-2004 के आधार पर बनाकर जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 8।3 फ़ीसदी, ब्राजील में 8.6 फ़ीसदी, इंडोनेशिया में 11.3 फ़ीसदी, बांग्लादेश में 14.8 फ़ीसदी, यूएसए में 15.2 फ़ीसदी, चीन में 20.3 फ़ीसदी, नाइजीरिया में सबसे कम 6.4 फ़ीसदी और पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा 21.3 फ़ीसदी रहा। इस मामले में पाकिस्तान ने विकसित यूएसए को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 1996 में भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7.3 फ़ीसदी और 1999 में 9.6 फ़ीसदी था।

भारत में इस्लाम का जो रूप प्रचलित है, इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हज़रत मुहम्मद उसे नापसंद करते थे। क़ुरान में महिलाओं को सम्मानजनक दर्जा दिया गया है। यहां तक कहा जाता है कि मां के क़दमों के नीचे जन्नत है। हज़रत मुहम्मद के वक़्त में भी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए थे। वे मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढती थीं और पुरुषों की तरह ही घर से बाहर जाकर काम करती थीं। अनगिनत युध्दों में महिलाओं ने अपने युध्द कौशल का लोहा भी मनवाया। प्रसिध्द अहद की जंग में जब हज़रत मुहम्मद ज़ख्मी हो गए तो उनकी बेटी फ़ातिमा ने उनका इलाज किया। यही है मेरा इस्लाम...
Farid Khan ने कहा…
उपनिषद और गीता से ग़ैर भारतीयों को दाराशिकोह ने, जो शाहजहाँ का बेटा था, परिचय करवाया। उसने उपनिषद का फ़ारसी में अनुवाद किया था....उसके पहले उपनिषद का हिन्दी में भी अनुवाद या किसी भारतीय भाषा में अनुवाद नहीं मिलता है।
उससे पहले अलबैरूनी के माध्यम से भी भारतीय ग्रंथों के बारे में पता चलता है। अलबैरूनी ने कई ग्रंथों का फ़ारसी और अरबी में अनुवाद किया था....और आज वे ही स्रोत हमारे पास उपलब्ध हैं भारतीय इतिहास के।

अब बात यह कि आप क्या देखना चाहते हैं। यहाँ आप दारा शिकोह को मुसलमान के रूप में देखना चाहते हैं तो इसका मतलब है कि आप उसे भारतीय विद्वान नहीं मानते.... जबकि मैं उसे एक भारतीय विद्वान की तरह सम्मान देता हूँ और मेरे लिए किसी हिन्दू द्वारा कुरान पढ़ा जाना कोई हैरत की बात नहीं है। वह मेरे लिए एक सामान्य सी बात है.... पर मैं इन दिनों उपनिषद पर स्क्रिप्ट लिख रहा हूँ तो मुझे ऐसी तारीफ़ें मिलती हैं कि मैं एक मुसलमान हो कर उपनिषद पर लिख रहा हूँ इसीलिए मैं तारीफ़ के क़ाबिल हूँ ।मुझे ऐसी तारीफ़ों से चिढ़ है। मेरी मेहनत, मेरी प्रतिभा, सब पर पानी फिर जाता है। ऐसा लगता है मानो कुछ लोग मुझे विदेशी मान रहे हैं।
अनुनाद सिंह ने कहा…
आप अपवाद को ही नियम मानने की गलती कर रहे हैं।

लाखों में एकाध गाय भी कभी-कभी बहुत 'हिंसक' हो जाती है ; शेर भी कभी-कभी बहुत 'उदार-मना' हो जाता है (एन्ड्रोक्लीज और सिंह) --> इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सभी जानवर हिंसक होते हैं । कोई यह भी निष्कर्ष निकाल सकता हैं कि कोई जानवर हिंसक नहीं होता।

प्रभात जी के सवालों का जवाब कहाँ है आपके लेख में?
Batangad ने कहा…
मैंने पहले के लेख नहीं पढ़े हैं। ये बात आपकी एकदम सही है कि आप कैसा इस्लाम या मुसलमान देखना चाहते हैं। लेकिन, आपके लेख पर एक टिप्पणी में जो आया है कि देश में मुसलमानों को गलतियों को ज्यादा उजागर किया जाता है, ये तो बिल्कुल ठीक नहीं है। इसे दुर्भाग्य कहेंगे सही इस्लाम-मुसलमान खुद को छिपाए बैठे रहते हैं और दूसरा चेहरा इतना विकराल रूप से दिखने लगता है कि सिर्फ वही दिखता है।
हर्षवर्धन की बात पर सहमति नहीं है। ये मीडिया है जो सनसनी बिखरने और अपनी टीआरपी के चक्कर में तथा वे संगठन हैं जो राजनीतिक लाभ लेने के लिए एक ही चेहरा बार बार दिखाए जा रहे हैं। आप समाज में जाकर देखें। आप को इस का सबूत मिल जाएगा। आम हिन्दुस्तानी तो चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या सिख या ईसाई एक जैसा है। हिन्दुस्तान के मिजाज जैसा संबको समेटने वाला।
Dr Prabhat Tandon ने कहा…
हम अपने ही समाज को, वहाँ रहने वाले जीते-जागते इंसानों के बारे में कितना कम जानते हैं।

हाँ ,आपकी बात मे वजन है और आपकी बात से सहमत भी हूँ । हम वही चेहरा देखते हैं जो हमे बार-२ दिखाया जाता है । कभी पुल के पास खडॆ ४ लोगों के समूह को देखें जो कुछ न होते भी पानी मे झाँकते रहते हैं और उसके साथ ही साथ एक अच्छी खासी भीड का जमावडा तमाशा देखने के लिये आ जाता है । हम वह चेहरे तो याद करते हैं जो विध्यवंसम्कारक हैं लेकिन हम उन अनजान और गुमनाम लेकिन इतिहास को एक सूत्र मे पिरोने वाले चेहरों की तरफ़ एक नजर भी उठा के नही देखते । आपका धन्यवाद जो इतनी संजीदी से रिशतों के मर्म को समझा और उनका प्रत्युत्तर दिया ।

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