ईद के मौके पर गांधीगीरी
ऐसी न शब्बरात न बकरीद की खुशी,
जैसी है हर दिल में इस ईद की खुशी।।
नजीर अकबराबादी की ये दो लाइनें ईद की अहमियत बताने को काफी हैं। ईद से पहले एक महीना होता है- रमजान। रमजान यानी इबादत, संयम, विवेक, खुद पर काबू रखने की सलाहियत पैदा करना, अपनी बुराइयों पर विजय पाना, झंझावात में भी इंसानियत का जज्बा सम्हाल कर रखना, पडो़सियों का हक अदा करना, गरीबों की मदद करना, बेसहारों को सहारा देना... और ढेर सारे आदि-आदि। यानी उन सब की चीजों की याद दिलाना, जिससे इंसान, इंसान बना रहे। यही असली जिहाद भी है। सर्वश्रेष्ठ जिहाद।
लेकिन यह ईद कुछ अलग है। इस बार रमजान में बम विस्फोट, एनकाउंटर, तनाव, खौफ, नफरत के बोल, मीडिया के हर क्षण होते ब्रेकिंग न्यूज... हावी रहे। रोजदारों के सूखते गले, पपडि़यों पड़े काँपते होंठ और खोई- खोई आँखें ढेर सारे सवालों का जवाब खोजती रही। खुशी पर खौफ और नफरत का साया छाया रहा।
फिर भी ईद एक ऐसा त्योहार है जो आता ही इसीलिए है कि दूरियाँ कम हों, नफरत और खौफ का साया खत्म हो। गले यूँ ही थोड़े मिलते हैं। इसलिए बावजूद खौफ के खुशियों के नजारे कम नहीं हैं।
... और आज बापू का भी जन्म दिन है। ऐसे माहौल में बापू की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है। गांधी जी से प्रेम करने वाले जितने लोग हैं, घृणा करने वाले भी कम न थे और न हैं। उसी घृणा ने गांधी जी की जान भी ली। लेकिन गांधी, महात्मा बने घृणा से नफरत करने... बदले में प्यार लुटाने की सीख देकर और इससे लड़ने के लिए अहिंसा का रास्ता दिखाकर। अमन का संदेश देकर। नफरतों के बीच दीवार बनकर। ... इसीलिए आज जब दिल्ली, मालेगाँव, साबरकांठा से लेकर उड़ीसा तक घृणा का माहौल बना जा रहा है और चारों ओर हिंसा ही हिंसा है, वैसे में बापू की सीख और उनके बताए रास्ते से बेहतर क्या हो सकता है।
तो आइए इस ईद की दुआ उस गांधी के नाम करें जिसने बुराई का जवाब बुराई से नहीं दिया, जिसने नफरत करना नहीं सिखाया, जिसने मजहब को नफरत का हथियार नहीं बनाया, जिसने हक के लिए लड़ने का अहिंसा का रास्ता दिखाया। जिसने हमेशा मजलूमों का साथ दिया। जिसने अमन के लिए जान की बाजी लगा दी। आमीन।
आइए हाथ उठाएँ क्योंकि यह दुआ कामयाब होगी तो गले भी मिलेंगे और दिल भी। और तब नजीर संग पूरा देश झूमेगा ईद की खुशी में। दुआ की कामयाबी के लिए दुआ कीजिए क्योंकि आने वाले दिन दुर्गा पूजा और दीवाली की रंग बिरंगी खुशियों से भरपूर हैं। उन पर किसी बद की नजर न लगे। ... अगर बापू की याद को रस्म अदायगी नहीं बनानी है ... तो अमन की यह दुआ करनी ही पड़ेगी।
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टिप्पणियाँ
बापू शास्त्री का दिवस मना पड़ चुकी गले में माला है॥
मज़हब को क्यूँ बदनाम करे, खेले क्यूँ खूनी खेल अरे।
आँगन में मस्जिद एक ओर, तो दूजी ओर शिवाला है॥
क्यों हाथ कटार लिया तूने,क्यों कर तेरे हाथ में भाला है?
कहाँ पाक-कुरान को छोड़ दिया,कहाँ तेरी वो जाप की माला है?
जब आज नमाज अता करना,या गंगाजी से जल भरना।
तो ऊपर देख लिया करना, बस एक वही रखवाला है॥
तमाम गम के अंधेरे मिटा के दम लेगा ।
अजब उमंग से निकला है अबकी ईद का चाँद
मेरी जमीन को जन्नत बना के दम
लेगा
ईद की बहुत-२ बधाई !! जल्दी ही धावा बोलने आ रहा हूँ :)