अजगर तो छदम धर्मनिरपेक्षतावादी निकला!

मोहब्‍बत की बात करते- करते अजगर ने यह क्‍या लिख डाला। यह भी छदम धर्मनिरपेक्षतावादी ही निकला। शायद यह अजगर होते ही ऐसे हैं। तब ही तो इसने अपना नाम ही रखा है, आस्‍तीन का अजगर। तीन दिन पहले उसने एक पोस्‍ट डाली अपने ब्‍लॉग 'अखाड़े का उदास मुदगर' पर।

वही पोस्‍ट यहाँ दोबारा पेश कर रहा हूँ। कॉपी- पेस्‍ट लेकिन बिना किसी साभार के। यह आस्‍तीन का अजगर कौन है। है भी या नही। कहीं वर्चुअल वर्ल्‍ड का यह वर्चुअल क्रिएशन तो नहीं। दिखता है पर होता नहीं। क्‍या करता है। क्‍या खाता है। किस बिल में रहता है। जब यह मालूम नहीं तो साभार हवा में कैसे दे दिया जाए।

अजगर की इन लाइनों को पढ़कर लगता है, अजगर इन दिनों बेचैन है। उसके बदन में ऐंठन हो रही है। लगता है गला दबोचने वाले अजगर के गले पर किसी तरह का फंदा है। और वह फंदे से आजाद होने की कोशिश में है। खैर मेरा भाषण पढ़ने के बजाय, जिन दोस्‍तो ने अब तक आस्‍तीन का अजगर की ये लाइन नहीं पढ़ी है, जरूर पढ़ें और देखें अजगर ने जब पूंछ उठाई तो वह भी छदम धर्मनिरपेक्षतावादी ही निकला। सो, सावधान।

नासिरूद्दीन

बहुमत की लठैती वाले लोकतंत्र में आस्थाएं मरी जा रही हैं आहत होने के लिए


एक पूर्व गृहमंत्री अब प्रधानमंत्री बनना चाहता है. वह कह रहा है कि मालेगांव धमाके में जो आरोपी हैं, अगर वे दोषी हैं, तो उनपर कानून अपनी कार्रवाई करे.. ये वह आदमी कह रहा है, जिसने पूरे मुल्क में रथ यात्रा कर पहले दंगे करवाए, फिर बाबरी मस्जिद तुड़वाई, जिन्ना को गांधी के बराबर बताने की कोशिश की..वह कह रहा है वह ईसाई स्कूलों में पढ़ा है, उसे अच्छा नहीं लगता जब ईसाइयों का हिंदुस्तान में कत्लेआम होता है. और नन का बलात्कार. और एक कारगिल के बहादुर सिपाही मोतीलाल प्रधान के घर परिवार की तबाही. बात वहां तक नहीं पंहुचती. बीच में ही आई गई हो जाती है.

लालकृष्ण आडवाणी की भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष महोदय की तस्वीर उस साध्वी के साथ है, जिसका नाम मालेगांव धमाकों में बतौर प्रमुख अभियुक्त है. राजनाथ सिंह कह रहे हैं मासूम साध्वी प्रज्ञा को फंसाया जा रहा है. प्रज्ञा की ब्यूटीशियन बहन को मिलने नहीं दिया जा रहा है उस साध्वी से, जिसके फोटो की पूजा उसके जैविक पिता अपने पूजाघर में कर रहे हैं. पूजाघर में जो फोटो है, क्या उसमें वह मोटरसाइकिल भी है, जिस पर सवारी गांठकर प्रज्ञा घूमा करती थी और जिसका इस्तेमाल बम विस्फोट में किया गया.

इस तरह के चरित्र प्रमाणपत्र योगा मास्टर रामदेव भी दे रहे हैं, जिनकी चमत्कारी और शुद्ध और मंहगी आयुर्वेदिक औषधियों में इंसानी हड्डियों के होने का आरोप लगा था, जिसका खंडन तो उन्होंने किया था, पर ऐसी कोई कैमिकल एनालिसिस रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. एक हिमानी सावरकर हैं, जो खुद को वीर सावरकर के भाई की बहू बताती है, जो साध्वी और दूसरे आरोपियों के लिए कानूनी मदद जुटा रही हैं. वे ये नहीं बताती कि वे नाथूराम गोड़से की भतीजी और गांधी हत्या के दूसरे आरोपी गोपाल गोड़से की बेटी भी हैं. हिमानी सावरकरजिस अभिनव भारत की कल्पना को साकार करने में लगी हैं, राजनाथ सिंह उसकी तस्वीर का हिस्सा हैं. आडवाणी जी की मज़बूरी है कि प्रधानमंत्री बनने का उनके पास ये आखिरी मौका है. इसलिए अब वे पार्टी निर्माण, और राष्ट्र निर्माण जैसी बेकार की बातों में समय न गंवाते हुए सिर्फ पीएम की कुर्सी की तरफ फोकस कर रहे हैं. उन्होंने अपनी एक हिंदी वेबसाइट भी शुरू की है, जिसमें उस भाषा को लेकर उनका प्रेम छलकता है, जिसे वे अपने जबड़ों से चबाते हुए कहते हैं. हिंदी वह जुबान है, जिसे जबड़ों से चबाते हुए आडवाणी और उनके चपाटियों ने नफरत फैलाई है. (अगर वे देवभाषा संस्कृत में अपनी नफरत पेलते, तो शायद इस नागरिक समाज का इतना बुरा न होता, जितना आज है.) उनकी जिंदगी एक नाखुश आदमी के संघर्ष में निकली है. उन्होंने पार्टी को किस गर्त से किन ऊंचाइयों तक पंहुचाया. त्याग किया. बलिदान किया. तकलीफ सहीं. अरमानों पर पत्थर रखे. और अब जब लास्ट चांस है, तो चांस कैसे लिया जा सकता है.

इसलिए वे हिंदुस्तान की सरहद पर लड़ रहे मुस्लिम पैरामिलीटरी सिपाही के लिए कुछ नहीं कहते, जिसे धुले में बताया गया कि तुम्हें और तुम्हारे कुनबे को बख्शने के लिए ये वजह काफी नहीं. तुम्हें इस लिए मारा जा रहा है कि तुम मुसलमान हो. एक ईसाई सिपाही का मकान कंधमाल में जला दिया गया औरउसे अपने पैरालिटिक भाई की अस्थियां दफनाने के लिए हत्या के ४५ मिनट बाद १० मिनट का समय दिया गया. कहा सुरक्षा नहीं दी जा सकती. उसका परिवार एक शरणार्थी शिविर में है. उसके पक्ष में कोई खड़ा नहीं होता. पर एक फौजी अफसर जिसका नाम हिंदू जेहादियों में लिया जा रहा है, उसे अदालत के कठघरे में खड़ा किये जाने पर भी ऐतराज किया जा रहा है. यह देश हिंदू आस्थाओं का देश है. इस देश में हिंदुओं के अलावा किसी भी और संप्रदाय के लोगों की जानमाल की गारंटी लेने वाला कोई नहीं है, ऐसा दो बातों से पता चलता है- एक जो उन पर हमला करते हैं. दूसरा जिन्हें इस मुल्क के संविधान ने उन लोगों को बचाने का काम सौंपा था. यानी मुख्यमंत्री, खुद को सैक्यूलर कहने वाली पार्टियां, पुलिस और प्रशासन.

मुंबई में राज ठाकरे की आस्था आहत है और कांग्रेस सरकार अपनी टांगों में दुम दिये बैठी है. 93 साल का मकबूल फिदा हुसैन अदालत के फैसले के बाद भीहिंदुस्तान नहीं लौट रहे, क्योंकि उसे बाल ठाकरे की गारंटी चाहिये, आडवाणी का क्षमादान (देखिये आइंदा हमारी देवियों को बिना ब्रा-पैंटी- ब्लाउज- साड़ी के आप पेंट नहीं करेंगे... अदालतें जो भी कह रही हों, आपको पता है न हम आपका क्या हाल कर देंगे मकबूल जी) चाहिए, राज ठाकरे का प्रोटेक्शन चाहिए. 93 साल का एक बूढ़ा भारतीय जो पद्मविभूषण है, वह उन हिंदू आस्थाओं का दुश्मन है, जो इस्लामिक जेहादियों के तेवर अपना चुकी हैं. अगर मकबूल फिदा हुसैन हिंदू देवी देवताओं को नंगा दिखाकर असम्मान करते हैं, तो खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों और अजंता के चित्रों को यह देश अपने विरासत में क्यों गिन रहा है. वे कामसूत्र और वात्साययन पर शर्मिंदा क्यों नहीं हैं और उनपर प्रतिबंध क्यों नहीं लगातीं. करोड़ों हिंदू औरतें सांपों के बीच शिव के लिंग को दूध चढ़ा रहीं है एक अच्छे से पति के लिए, पर इसमें कोई असम्मान, अश्लीलता का सवाल नहीं है. (अच्छा पति नहीं मिलने पर भी उनकी आस्था आहत नहीं होती..) वे ताज़ महल को हिंदू मंदिर बताने वाले थ्योरिस्ट की बात को मानते हुए वहां भजन कीर्तन और शाखा क्यों नहीं शुरू करवा देती. यह देश तस्लीमा नसरीन को सुरक्षा, शरण, घर सब दे सकता है, मकबूल फिदा हुसैन को नहीं. तस्लीमा की अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा भी जरूरी है, पर हुसैन को ठीक करना जरूरी है.

सिलेक्टिव आस्थाओं का दौर है. और आस्थाएं आहत होने के लिए कमबख्त मरी जा रही है. और आस्था किसी भी बात से आहत हो सकती है. बहुसंख्य की आस्था लठैती हो गई है. लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है. लोकतंत्र में अल्पमत मायने नहीं रखता, ये नई सीख है. और वह सब पर लागू होती है. चाहे वह सरहद को बचाने वाला हो, या फिर कोई और. अगर हिंदू नहीं है, तो मर सकता है. कई बार जान बूझ कर, कई बार गलती से, कई बार तैश में, कई बार आस्थाएं आहत होने पर, कई बार सिर्फ इसलिए कि एक ईसाई नन या बिलकीस बानो का बलात्कार करने से हिंदूत्व का झंडा थोड़ा और ऊंचा हो जाता है. इस ऊंचे झंडे के बूते आडवाणी और उनके लोग इस मुल्क पर राज करना चाहते हैं. एक बार और. बस एक बार. उनमें ऐसा क्या खास है, जो मुझमें नहीं.

जब ये सब हो रहा होता है, तो नवीन पटनायक और विलास राव देशमुख और डॉ मनमोहन सिंह और शिवराज पाटिल जो बोलते हैं उसमें से बेचारगी की ऐसी आवाज़ निकलती है- चूंचूंचूंचूंचूं.. कहीं ऐसा न हो कि जो मुंह में दही जमाकर बैठे हों, उसमें ख़ल़ल पड़ जाए. जैसे सरकार चलाने की जगह उन्हें भंडैती करने का जनादेश मिला हो. वे पता नहीं किस ख़ौफ में सबकी नाफरमानी कर रहे हैं- संविधान की, जनादेश की, अदालतों की, इंसानियत के तकाजे की. लोग तो ये शरीफ लगते हैं, पर वे हमेशा कम्प्रोमाइजिंग पोजिशन में क्यों पाये जाते हैं. इन शरीफ और पनीले लोगों के कारण समाज में शराफत से रहना ही मुश्किल हो गया है.

अब ये मसला कानून और व्यवस्था का नहीं है. आस्था का है. आस्था कुछ भी करवा सकती है. कत्ल, ब्लात्कार, बम विस्फोट..

लोकतंत्र, संविधान, गणतंत्र, मानव अधिकार खुशी से तेल लेने जा सकते हैं.

टिप्पणियाँ

admin ने कहा…
आस्था कुछ भी करवा सकती है. कत्ल, ब्लात्कार, बम विस्फोट..

यहाँ पर "बहुमत की आस्था" ज्यादा सटीक रहता। धारदार लेखन के लिए बधाई।
बेनामी ने कहा…
Taslima ko suraksha? Shayad Aflatoonji /Azgar ji ne ye post kai mahine pahle likhi hai?
Aur Hussain saheb ko painting banane ka itna shauk hai to Hazrat Mohammad ki tasveer banayein poore kapdon sahit.
editor ने कहा…
Nasiruddin bhai,
Uff kya tevar haiN.....
satya prakash ने कहा…
nasir saheb
kya aap is article ke writer ko pseudo secular bata kar apna nam ''rashtrawadi musalmanon'' ki list mein likhana chahte hain?

satya prakash
ranchi
satya prakash ने कहा…
nasir saheb
kya aap is article ke writer ko pseudo secular bata kar apna nam ''rashtrawadi musalmanon'' ki list mein likhana chahte hain?

satya prakash
ranchi
babu123 ने कहा…
thora soh samajh kar likha kare kisi ke are main kuch bhi likh dena acchi bat nahin hai.
RDS ने कहा…
नासिर जी, आपकी कलम की धार पैनी है यह अच्छा है | आप देश के बारे में सोचने वाले बिरले लोगों में से एक हैं | परन्तु मेरा आग्रह है कि आप अपने सोच और लेखन में हिंदू आस्था को आतंक के पर्याय के रुप में न लें |

दरअसल, हिंदू आस्था भी अन्य मतावलम्बियों की तरह सम्मान की उच्चतम अधिकारिणी है | मैं, नितांत वैज्ञानिक सोच रखने के बावज़ूद हमारे अनंत आस्थावान नागरिकों की सरलता पर मुग्ध हूं, नत मस्तक हूं | यही जीवन है | मक़बूल फिदा हुसैन ने यश कमाया धन कमाया सम्मान कमाया परन्तु अपने ही देश के भोले आस्थावान नागरिकों का मान रखना भूल गए | चूंकि वे मूर्ख नहीं है इसलिए अपेक्षा थी कि वे अपने सम्मान के लिए अन्य की भावनाओं का ध्यान रखते | आपसे भी अपेक्षा है कि देवी देवता का ज़िक्र करते समय ब्रा / पैंटी शब्दों सरीखे ओछे शब्द न जोडें | ये शब्द किसी लेखक की तुच्छता, कुटिलता और विष का सार्वजनिक प्रदर्शन से करते प्रतीत होते हैं जो आप के लिए शोभा नहीं देते |


शुभकानाएं ||

- RDS
RDS ने कहा…
नासिर जी, आपकी कलम की धार पैनी है यह अच्छा है | आप देश के बारे में सोचने वाले बिरले लोगों में से एक हैं | परन्तु मेरा आग्रह है कि आप अपने सोच और लेखन में हिंदू आस्था को आतंक के पर्याय के रुप में न लें |

दरअसल, हिंदू आस्था भी अन्य मतावलम्बियों की तरह सम्मान की उच्चतम अधिकारिणी है | मैं, नितांत वैज्ञानिक सोच रखने के बावज़ूद हमारे अनंत आस्थावान नागरिकों की सरलता पर मुग्ध हूं, नत मस्तक हूं | यही जीवन है | मक़बूल फिदा हुसैन ने यश कमाया धन कमाया सम्मान कमाया परन्तु अपने ही देश के भोले आस्थावान नागरिकों का मान रखना भूल गए | चूंकि वे मूर्ख नहीं है इसलिए अपेक्षा थी कि वे अपने सम्मान के लिए अन्य की भावनाओं का ध्यान रखते | आपसे भी अपेक्षा है कि देवी देवता का ज़िक्र करते समय ब्रा / पैंटी शब्दों सरीखे ओछे शब्द न जोडें | ये शब्द किसी लेखक की तुच्छता, कुटिलता और विष का सार्वजनिक प्रदर्शन से करते प्रतीत होते हैं जो आप के लिए शोभा नहीं देते |


शुभकानाएं ||

- RDS
Ashwani Rathi ने कहा…
Aap achchha likhte hai lekin lagta hai Hindu logo se koi dushmani hai..
bablu japla ने कहा…
nasir ji =agr bhusankhyk ka mayne kuch hota to ram, krishn ki drti par ram mandir bangya hota.denmark me ak cartoon banne par jo hangama duniya me hua? makbul fidahussain ne jo hindu devi devta ki jagah muslim devi devta ke liye karta tab kya hota andaja aap lgaye. hinu ke khilaf ya ksi bahusnkhyak ke khilaph jo india me hota hae. yesa kkahi bhi whan ke bahusankhyak ke sath sambho na hi hai

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