सवाल उठाने की इजाजत चाहता हूँ
सवाल उठाने पर सवाल पृथ्वी गोल है। सूरज पूरब से उगता है। गंगा नदी है। हिमालय पर्वत राज है- अगर इन प्राकृतिक सचाइयों को छोड़ दें तो सच वही नहीं होता जो अक्सर बताया या दिखाया जाता है। सच के भी कई रूप होते हैं। सच को हम अपने मुताबिक स्वीकार या इनकार करते हैं। पिछले कुछ दिनों में सच की ढेर सारी शक्लें सामने आ रही हैं। ये शक्लें वैसी हैं, जिन्हें हम अपने मुताबिक ढालने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली में विस्फोट और कई बेगुनाहों की हत्या। विस्फोट करने वाले कथित लोगों का बटला हाउस में इनकाउंटर। फिर तफ्तीश का ब्रेकिंग न्यूज... मैं मॉस कॉम का विद्यार्थी रहा हूँ। मॉस कॉम सिद्धांत और रिसर्च में मेरी दिलचस्पी है। मॉस कॉम का एक मूल और सामान्य सा सिद्धांत है जो सच की सचाई को बताती है। इसके मुताबिक सच का चेहरा कलम को पकड़ने वाले हाथ, टाइपराइटर या कम्प्यूटर पर चलने वाली उंगलियाँ, कैमरे के पीछे लगी आँखें और सबसे बढ़कर 'गेटकीपर' तय करते हैं। ( गेटकीपर यानी खबरें जिन आँखों से गुजरती और खबरों के होने न होने पर जिनका नियंत्रण होता है।) सच वही होता है, जो ये सभी बताते, लिखते, दिखाते