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आतंकवाद का हिन्‍दुत्‍ववादी (हिन्‍दू नहीं) चेहरा (Hindutava terror)

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क्‍या वाकई हम सब, पुलिस और खुफिया निजाम आतंकवाद से लड़ना चाहते हैं। अगर हाँ, तो वक्‍त आ गया है कि आँख में आँख डालकर सच कहने और सुनने की हिम्‍मत पैदा करें। पिछले कई पोस्‍ट में ढाई आखर से यह मुद्दा उठता रहा है कि आतंकवाद को किसी खास मजहब या खास समुदाय या खास नामधारियों के मत्‍थे मढ़ने से काम नहीं चलेगा। इससे आतंकवाद खत्‍म नहीं किया जा सकता। लेकिन जब पूरा का पूरा निजाम, खासतौर पर पुलिस और खु‍फिया एजेंसियाँ और उनकों वैचारिक खाद-पानी देतीं, हिन्‍दुत्‍ववादी पार्टियाँ (हिन्‍दूवादी नहीं)  हों  तो हर जाँच एक खास चश्‍मे से ही की जाएगी। इसी मायने में इंडियन एक्‍सप्रेस की आज की एक खबर हंगामा मचाए है। इंडियन एक्‍सप्रेस के मुताबिक ईद के ठीक पहले मालेगाँव और मोदासा में हूए बम धमाकों में हिन्‍दुत्‍ववादी संगठनों के हाथ होने की खबर है।  खबर कहती है कि इंदौर के एक हिन्‍दुत्‍ववादी संगठन हिन्‍दू जागरण मंच इन धमाकों के पीछे है। धमाका करने वालों का रिश्‍ता अखिल भारतीय विद्यार्थ...

भारतीय मुसलमानों का अलगाव (Alienation Of Indian Muslims)

यह लेख जामिया मिलिया इस्‍लामिया विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली के कुलपति प्रोफेसर मुशीरूल हसन  का लिखा है। इसे यहाँ अंग्रेजी में ही पेश किया जा रहा है। जामिया मीलिया, भारतीय धर्मनिरपेक्षता की सबसे मजबूत कडि़यों में से एक है। लेकिन बटला हाउस इनकाउंटर के बाद जामिया और मुशीरुल दोनों पर 'तथाकथित राष्‍ट्रवादी'  लगातार हमले कर रहे हैं। इनके सुर में सुर मिलाया 'निष्‍पक्षता' के अलमबरदार मीडिया ने। मुशीरुल की यह टिप्‍पणी उसी संदर्भ में है। मुशीरुल हसन के बारे में कोई भी टिप्‍पणी करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि उनके नाम से उनकी शख्सियत की 'पहचान' नहीं है। मुशीरल हसन देश के उन-गिने चुने लोगों में से थे, जिन्‍होंने सलमान रुश्‍दी की पुस्‍तक पर पाबंदी लगाए जाने पर सवाल खड़े किए थे। वह इस मुल्‍क के बड़े  इतिहासकार हैं। यह टिप्‍पणी काउंटरकरंट्स   से साभार यहाँ पेश की जा रही है। Alienation Of Indian Muslims By Mushirul Hasan T he extent to which the Indian society is getting polarised along religious lines is ...

एक पागल की डायरी का पुनर्पाठ

लू शुन की कहानी 'एक पागल की डायरी' का पुनर्पाठ अपूर्वानन्‍द के शब्‍दों में- पचीस वर्ष हो गए हैं जब हमने पटना इप्टा की ओर से चीनी लेखक लू शुन की कहानी ' एक पागल की डायरी'   का मंचन किया था.  जावेद अख्तर खान ने मुख्य भूमिका निभाई थी.  ज़ोर देने पर भी याद नहीं आ रहा कि तब क्यों हमने इस कहानी को मंचित करने के बारे में सोचा था. इन पचीस बरसों में यह कहानी दिमाग की दराज में पड़ी रही. कहानी के आखरी दो वाक्य जैसे एक मन्त्र की स्मृति की तरह रक्त में घुल गए : "शायद बच्चों ने आदमी को नहीं खाया है? बच्चों को बचा लें... ." एक विक्षिप्त हो गए मनुष्य की कातर, आर्त पुकार है.  नफरत के निरंतर प्रचार के बीच लगभग नब्बे साल पहले चीन से  उठी यह चीख  मेरे मस्तिष्क   के आकाश में मंडराती रही है. कथा का वाचक अपने स्कूल के दो दोस्तों से कई साल बाद मिलने जाता है. उसे उनमें से एक के बीमार रहने कि ख़बर मिली थी. उनके घर जाने पर बड़ा भाई  बताता है कि छोटा भाई अभी-अभी   बीमारी से  उबरा  है  और कोई सरकारी नौकरी उसे मिल गई है....

ईद के मौके पर गांधीगीरी

ऐसी न शब्‍बरात न बकरीद की खुशी, जैसी है हर दिल में इस ईद की खुशी।। नजीर अकबराबादी की ये दो लाइनें ईद की अहमियत बताने को काफी हैं। ईद से पहले एक महीना होता है- रमजान। रमजान यानी इबादत, संयम, विवेक, खुद पर काबू रखने की सलाहियत पैदा करना,  अपनी बुराइयों पर विजय पाना, झंझावात में भी इंसानियत का जज्‍बा सम्‍हाल कर रखना, पडो़सियों का हक अदा करना, गरीबों की मदद करना, बेसहारों को सहारा देना... और ढेर सारे आदि-आदि। यानी उन सब की चीजों की याद दिलाना, जिससे इंसान, इंसान बना रहे। यही असली जिहाद भी है। सर्वश्रेष्‍ठ जिहाद। लेकिन यह ईद कुछ अलग है। इस बार रमजान में बम‍ विस्‍फोट, एनकाउंटर, तनाव, खौफ, नफरत के बोल, मीडिया के हर क्षण होते ब्रेकिंग न्‍यूज... हावी रहे। रोजदारों के सूखते गले, पपडि़यों पड़े काँपते होंठ  और खोई- खोई आँखें ढेर सारे सवालों का जवाब खोजती रही। खुशी पर खौफ और नफरत का साया छाया रहा। फिर भी ईद एक ऐसा त्‍योहार है जो आता ही इसीलिए है कि दूरियाँ कम हों, नफरत और खौफ का साया खत्‍म हो। गले यूँ ही थोड़े मिलते हैं। इ...

सवाल उठाने की इजाजत चाहता हूँ

सवाल उठाने पर सवाल पृथ्‍वी गोल है। सूरज पूरब से उगता है। गंगा नदी है। हिमालय पर्वत राज है- अगर इन प्राकृतिक सचाइयों को छोड़ दें तो सच वही नहीं होता जो अक्‍सर बताया या दिखाया जाता है। सच के भी कई रूप होते हैं। सच को हम अपने मुताबिक स्‍वीकार या इनकार करते हैं। पिछले कुछ दिनों में सच की ढेर सारी शक्‍लें सामने आ रही हैं। ये शक्‍लें वैसी हैं, जिन्‍हें हम अपने मुताबिक ढालने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्‍ली में विस्‍फोट और कई बेगुनाहों की हत्‍या। विस्‍फोट करने वाले कथित लोगों का बटला हाउस में इनकाउंटर। फिर तफ्तीश का ब्रेकिंग न्‍यूज... मैं मॉस कॉम का विद्यार्थी रहा हूँ। मॉस कॉम सिद्धांत और रिसर्च में मेरी दिलचस्‍पी है। मॉस कॉम का एक मूल और सामान्‍य सा सिद्धांत है जो सच की सचाई को बताती है। इसके मुताबिक सच का चेहरा कलम को पकड़ने वाले हाथ, टाइपराइटर या कम्‍प्‍यूटर पर चलने वाली उंगलियाँ, कैमरे के पीछे लगी आँखें और सबसे बढ़कर 'गेटकीपर' तय करते हैं। ( गेटकीपर यानी खबरें जिन आँखों से गुजरती और खबरों के होने न होने पर जिनका नियंत्रण होता है।) सच वही होता है, जो ये सभी बताते, लिखते, दिखाते...

शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी (Flood in Bihar-5)

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एक बार फिर हाजि़र हैं, नागेन्‍द्र अपनी पैनी निगाह और मामूली से अल्‍फाज के साथ, मामूली से लोगों की बेहाल जिंदगी बयान करने के लिए। ऐसी बेदर्दी, ऐसी है‍वानियत... उफ्फ... संकट की घड़ी में ऐसा सुलूक... सच है, शर्म वाकई  में मगर हमें/इनको नहीं आएगी। इन्‍हें आप किन अल्‍फाज़ से नवाज़ेंगे। इनके लिए आप किस सजा की तजवीज करेंगे। ये शब्‍दों से ऊपर हैं और सजा तो शायद इनके लिए है ही नहीं।  ढाई आखर के पाठकों के लिए हिन्‍दुस्‍तान, भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक नागेन्‍द्र (Nagendra) की यह रिपोर्ट। हिन्‍दुस्‍तान से शुक्रिया के साथ। शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी बाढ़ग्रस्त इलाकों की चिकित्सा व्यवस्था में छेद ही छेद हैं सुपौल और सहरसा से लौटकर नागेन्‍द्र बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में सरकारी चिकित्सा इंतजामों की बार-बार ढँकी जा रही परत खोलने के लिए त्रिवेणीगंज की यह घटना पर्याप्त है। पिछले पाँच दिनों में वहाँ जो कुछ हुआ उससे आक्रांत लोग अब रेफरल अस्पताल छोड़ कर भागने लगे हैं। लिखते हुए भी शर्म आती है ले...

पेट में दाना नहीं, खाली है थाली (Flood in Bihar-4)

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तैरने वाला समाज डूब रहा है। बिहार के बाढ़ में फँसे मुसीबतज़दा लोगों को हम सबसे मदद की दरकार है। उनकी आँखें हमसे सवाल कर रही हैं- क्‍या हमें जीने का हक नहीं है। क्‍या हम जिंदा नहीं रह पाएँगे। कोशिश की जाए तो बूँद-बूँद से सागर बन जाता है। हम इनकी मदद के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करने की कोशिश करें। अपने लिए जीए तो क्‍या जीए... ढेर सारी संस्‍थाएँ, ढेर सारे लोग मदद के लिए आगे आए हैं। वे मदद कर रहे हैं। कई मदद करना चाहते हैं, पर वे समझ नहीं पा रहे हैं, कैसे मदद की जाए। मैं यहाँ कुछ गैर सरकारी प्रयासों के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहा हूँ। आपका जिस संगठन, संस्‍था या शख्‍स से दिल भरे या जिस पर सहज यकीन हो, उसके जरिए मदद की कोशिश कीजिए। (इस बीच खबर है कि कटिहार में थामस बांध टूट गया है जिससे करीब 50 हजार लोग बाढ़ से घिर गए हैं। ऊपर का चित्र हिन्‍दुस्‍तान से साभार।) रेडक्रास को चाहिए फेमिली पैक रेड क्रास सोसायटी, बिहार ने लोगों से फेमिली पैक देने की अपील की है। रेडक्रास के मुताबिक ऐसे करीब 50 से 60 हजार पैक की तुरंत जरूरत है ताकि लोगों को अपनी जिंदगी शुरू करने में मदद मिले। एक फेमिली...