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प्रभाष जोशी: कमजोर और हिंदू आतंकवाद

वे सनातनी हिन्‍दू हैं। पर वे हिन्‍दुत्‍व के समर्थक नहीं हैं। उन्‍हें बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना और गुजरात में राज्‍य के समर्थन से की गई हिंसा से सख्‍त विरोध है। चूँकि वे मजबूती से अपनी बात कहते हैं, इसलिए अक्‍सर उन्‍हें विरोध का भी सामना करना पड़ता है। यह हैं प्रभाष जोशी। प्रभाष जोशी भारतीय पत्रकारिता का मशहूर नाम हैं। मैंने पिछले दिनों एक पोस्‍ट किया था ‘यह तैयारी किसके लिए है’ । उसके बाद प्रभाष जोशी की जनसत्‍ता में यह टिप्‍पणी पढ़ी। यह टिप्‍पणी मेरे पोस्‍ट से किसी न किसी रूप में जुड़ती है, और विचार के लिए कई मुद्दे उठाती है। इसलिए यहाँ जनसत्‍ता से साभार पेश कर रहा हूँ। प्रभाष जोशी: कमजोर और हिंदू आतंकवाद हिंदू आतंकवादी और हिंदू आतंकवादी संगठन पढ़ने में ही कितना अटपटा लगता है। लेकिन मुंबई में आजकल यही पढ़ रहा हूँ। क्या महाराष्ट्र और महाराष्ट्रियनों में ही ऐसा कुछ है कि वे इस तरह की व्यर्थ और सिरफिरी हिंसा की तरफ खिंचे चले आते हैं , और प्रतिशोध की नपुंसक हिंसा की कार्रवाई करते है , जैसी हिंदू जन जागृति समिति और सनातन संस्था के रमेश गडकरी और मंगेश निकम ने की ? ऐसा क्यों हुआ कि...

यह तैयारी किसके लिए है

यह तैयारी किसके लिए ? किसके खिलाफ ? किसकी हिफाजत के लिए ? क्‍यों और कौन लोग कर रहे हैं ? एक चैनल के जरिए खबर आई कि इंदौर में सरेआम राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ यानी आरएसएस के कार्यकर्ता एक पार्क में हवाई फायरिंग कर रहे थे। एक-दो नहीं बल्कि कई। जाहिर है, ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज़ सुनाई दी होगी तो आस-पड़ोस के लोग खुशी से झूम नहीं उठे होंगे। डर ही गए होंगे। तो ये किसे डराया जा रहा है ? यह तैयारी किनके खिलाफ काम आएगी ? इससे पहले भी, उत्‍तर प्रदेश के कई शहरों में संघ परिवार से जुड़े संगठनों के कैम्‍पों में त्रिशूल को ‘ सही ’ पकड़ने और लड़कियों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दिए जाने की खबर आई थी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि रक्षा मंत्रालय ने सीमा की हिफाजत का जिम्‍मा संघ परिवार को आउटसोर्स कर दिया है। भई आउटसोर्सिंग का जमाना है, कुछ भी मुमकिन है। सीमा की हिफाजत नहीं, तो हो सकता है, शहर और मोहल्‍ले की हिफाजत का जिम्‍मा मिल गया हो। लेकिन सवाल फिर वही, किससे, किसकी हिफाजत ? कौन है भई ? कहीं ऐसा तो नहीं कि वैसी ही हिफाजत की तैयारी हो, जैसा गुजरात नाम के राज्‍य में कभी हुआ था। गुजरा...

देखें/ सुनें और महसूस करें इस मौसिकी का जादू (Khuda ke liye)

सरहद पार की फिल्म 'खुदा के लिए' {Khuda Ke liye : In the name of god} संगीत के इर्द गिर्द घूमती फिल्म है। इसके कई मायने निकाले जा सकते हैं। एक मायने तो यही हो सकता है कि संगीत लोगों को/ दुनिया को जोड़ने का काम करता है। दूसरा मायने यह भी है कि संगीत आदम जात को नरमदिल इंसान बनाता है। उसमें भावनाओं के कोंपल जगाता है। आइये देखें/सुनें और तय करें कि क्या वाकई में इस फिल्म की मौसिकी ऐसी ही है।

खुदा के लिए Khuda Ke liye, एक जरूरी फिल्‍म

एक खूबसूरत और झकझोर देने वाली फिल्‍म है- खुदा के लिए (Khuda ke liye- In the name of God)।  फिल्‍म कई मायनों में अहम है। यह पाकिस्‍तानी है। इसने पाकिस्‍तानी सिनेमा (Pakistani Film) को फिर से जिंदा कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत-पाकिस्‍तान के बीच एक-दूसरे की फिल्‍मों के दिखाने पर लगी पाबंदी भी,  इसीसे खत्‍म होगी। करीब दो महीने पहले दिल्‍ली में इस फिल्‍म का खास शो देखने का मौका मिला था। पाकिस्‍तान फिल्‍मों की जो छवि दिमाग में बसी है, यह फिल्‍म उसे पूरी तरह तोड़ देती है। यह तो हुईं ऊपरी बातें। फिल्‍म का तानाबाना 9/11  के आतंकी हमले की पृष्‍ठभूमि में बुना गया है। यह फिल्‍म आज  के समाज के सवाल से टकराती है। यही इस फिल्‍म को खास बनाती है। मुसलमानों की नई और उदारवादी पीढ़ी के कशमकश को जबान देती है।  एक ओर समाज के अंदर पुरातनपंथी  विचार से उसको जूझना पढ़ रहा है तो दूसरी ओर, दुनिया उसे एक खास बने बनाए खाँचे में ही देखना चाहती है। यानी वह आतंक का हरकारा है।  ...

सुनिए, जब फागुन रंग झमकते हों

अब सुनिए नजीर अकबराबादी (Nazir Akbarabadi) की शायरी ' जब फागुन रंग झमकते हों...'।  होली के मौके पर मैंने नजीर अकबराबादी की दो रचनाएँ पेश की थीं। जिसमें एक थी, 'जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की...' (Jab fagun rang Jhamakte hon tab dekh bahare Holi ki) । युनूस भाई की गुजारिश थी कि इसे सुना कैसे जाए। तब ही मुझे याद आया कि मेरे एक दोस्‍त मोहिब ने इसे कभी अपने ब्‍लॉग पर कई और गीतों के साथ पेश किया था। मैंने मोहिब से इसे भेजने की गुजारिश की और चंद घंटे बाद मेरे पास इस गीत की फाइल मौजूद थी। यह गीत मुजफ्फर अली द्वारा तैयार एलबम 'हुस्‍न ए जाना' का हिस्‍सा है। इसे आवाज दी है, छाया गांगुली ने। अगर किसी दोस्‍त के पास यह गीत किसी और गायक या गायिका की आवाज में हो तो भेजने की तकलीफ करेंगे। फिलहाल इसे साभार यहाँ आप सबके लिए पेश कर रहा हूँ। तो प्‍ले क्लिक कीजिए और फागुन की मस्‍ती में डूब जाइये।   इन्‍हें भी देखें 'जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की...' कहते हैं तुमको ईद मुबारक हो जानेमन Technorati Tags: ...

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की

हिन्दुस्तान की गंगा जमनी तहजीब का अगर कोई सबसे मजबूत वाहक है, तो वह हैं नजीर अकबराबादी । नजीर एक शायर नहीं, बल्कि परम्परा हैं। जो इस बात की मजबूत दलील पेश करते हैं कि इस मुल्क में रहने वाले लोगों के मजहब भले ही अलग-अलग हों, उनकी तहजीब की जड़ एक है। उस जड़ को बिना 'जड़' बनाए आगे बढ़ाते रहना ही, हिन्दुस्तान की असली परम्परा है। आज इसी मिली-जुली संस्कृति पर कई ओर से हमला हो रहा है। एक खास विचारधार इस बात पर यकीन करती है कि इस मुल्क में संस्कृति और धर्म के आधार पर मेलजोल मुमकिन नहीं है। इसके लिए वे नफ़रत और हिंसा फैलाने में यकीन रखते हैं। हमारे आस-पास नफ़रत फैलाने वाले ऐसे लोगों को पहचानना मुश्किल नहीं है। ऐसे में होली के मौके पर नजीर को याद करना जरूरी है। होली पर जितना नजीर ने लिखा है, उतना शायद ही किसी और ने लिखा हो। यह बात हर साल इसलिए याद दिलाने की जरूरत है ताकि कुछ लोग जो भारतीय संस्कृति के एकमात्र दावेदार होने की घोषणा करते हैं, नजीर की शायरी में अपना असली चेहरा देखें। नजीर की ढेर सारी होली कविताओं में से दो की चंद लाइनें आपके सामने पेश है। होली मुबारक!!!!!! हो ली - 1 जब खेली...

'मोदी नहीं हूँ मैं'

मुशर्रफ आलम जौकी उर्दू के साहित्‍यकार हैं। मुसलमानों की जिंदगी, उनकी कहानियों और उपन्‍यासों का‍ विषय रही है। उनका उपन्‍यास 'मुसलमान' काफी मशहूर रहा है। इसका हिन्‍दी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ है। अपने विचारों को लेकर वह काफी चर्चा में भी रहे हैं। उनकी एक कहानी है, 'मोदी नहीं हूँ मैं'। यह कहानी आम हिन्‍दू-मुसलमानों के रिश्‍तों की दास्‍ताँ है। यह कहानी साम्‍प्रदायिक हिंसा के बावजूद इंसानी रिश्‍तों के बचे रहने की कहानी है। इसी रिश्‍ते के बिना पर यह मुल्‍क आज खड़ा है और इसी रिश्‍ते को खत्‍म करने की लगातार कोशिश हो रही है। जब मैं यह कहानी पॉडकास्‍ट के रूप में यहाँ दे रहा हूँ तो मेरे जहन में असगर वजाहत की कहानी पर हुए विवाद की याद ताजा हो रही है। इसके बावजूद में मैं यह पोस्‍ट कर रहा हूँ। उर्दू की इस कहानी को पेश किया है, टूसर्किल डॉट नेट के सम्पादक काशिफ उल हुदा ने। तो सुनिये कहानी 'मोदी नहीं हूँ मैं'। Technorati Tags: मोदी नहीं हूं मैं , उर्दू कहानी , ढाई आखर , मुशर्रफ आलम जौक्‍ी , साहित्‍य , Modi Nahi hoon Main , Urdu storu , Musharraf Alam Zauki , Dhai ...