इन बुज़ुर्गों से हम क्यों नहीं सीख लेते
एकता की अनूठी मिसाल हैं मौलाना यामीन और डॉ. हरपाल दोनों काफी बुज़ुर्ग हैं। दोनों के जवान बेटे फिरकापरस्त हिंसा की बलि चढ़ गये। अगर मज़हब के चश्मे से देखें तो एक हिन्दू है, दूसरा मुसलमान। पर ये 'हम' और 'तुम' के मज़हबी खानों में नहीं बँटे। ये एक-दूसरे के दुश्मन भी नहीं बने। न ही इन्हें, हर दूसरा मज़हब वाला दुश्मन नज़र आता है। ये हैं मौलाना मोहम्मद यामीन और डॉ. हरपाल सिंह। मौलाना मोहम्मद यामीन मज़हबी मामलों के जानकार हैं और मेरठ नगर निगम के पार्षद रह चुके हैं। डॉ़. हरपाल राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे हैं। नफरत के साये में रहने के बावजूद ये दोनों हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल हैं। मेरठ के हाशिमपुरा कांड की जद्दोजहद बीस साल से चलते रहने के पीछे भी यही दो बुज़ुर्ग हैं। चारों ओर बढ़ते नफरत के बीच ये लोग प्रेरणा की जीवंत मिसाल हैं। मेरठ। मई १९८७। वही दंगा जिसमें हाशिमपुरा कांड हुआ। एक नौजवान डॉक्टर, जिसने अभी-अभी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की थी, एक मुस्लिम डॉक्टर के बुलावे पर, मुस्लिम मरीज के ऑपरेशन के लिएं बेहोशी की दवा देने घर से निकलता है। दंगा, एक दिन पहले ही शहर में फैल